Book Title: Vitrag Vigyana Pathmala 3
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 32
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates ___ मुक्ति का मार्ग प्रवचनकार - यह तो सर्वमान्य एवं सर्वानुभूत तथ्य है कि संसार में सब प्राणी दुःखी हैं और सब दुःख से मुक्ति चाहते हैं, तदर्थ यत्न भी करते हैं; पर उस मुक्ति का सही मार्ग पता न होने से उनका किया गया सारा ही प्रयत्न व्यर्थ जाता है। अतः मूलभूत प्रश्न तो यह है कि वास्तविक मुक्ति का मार्ग क्या है ? ___मुक्ति का मार्ग क्या है ? इस प्रश्न के पूर्व वास्तविक मुक्ति क्या है - इस समस्या का समाधान अपेक्षित है। मुक्ति का प्राशय दुःखों से पूर्णतः मुक्ति से है। दुःख आकुलतारूप हैं, अतः मुक्ति पूर्ण निराकुल होना चाहिए। जहाँ रंचमात्र भी आकुलता रहे वह परिपूर्ण सुख नहीं अर्थात् मुक्ति नहीं हैं। मुक्ति का मार्ग क्या है ? इसका निरूपण करते हुए प्राचार्य अमृतचन्द्र लिखते हैं - एवं सम्यग्दर्शन बोध चरित्रत्रयात्मको नित्यम्। तस्यापि मोक्षमार्गो भवति निषेव्यो यथाशक्ति ।।२०।। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र इन तीनों की एकता ही मोक्षमार्ग है। प्रत्येक जीव को इसका सेवन यथाशक्ति करना चाहिए। अतः यह तो निश्चित हुआ कि सम्यग्दर्शन अर्थात् सच्ची श्रद्धा, सम्यग्ज्ञान अर्थात् सच्चा ज्ञान और सम्यक्चारित्र अर्थात् सच्चा चारित्र तीनों की एकता ही सच्चा मुक्ति का मार्ग है। पर प्रश्न उठता है कि सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र क्या हैं ? निश्चय से तो तीनों प्रात्मरूप ही हैं अर्थात् प्रात्मा की शुद्ध पर्यायें ही हैं। पर-पदार्थों से भिन्न अपनी आत्मा का वास्तविक स्वरूप स्वसन्मुख होकर समझकर उसमें आत्मपने की श्रद्धा सम्यग्दर्शन, पर-पदार्थों से भिन्न अपनी आत्मा की तथा परपदार्थों की स्वसन्मुख होकर यथार्थ जानकारी सम्यग्ज्ञान और पर-पदार्थों एवं पर-भावों से भिन्न अपने ज्ञानस्वभावी आत्मस्वरूप में लीन होते जाना ही सम्यक्चारित्र है। इनका विशेष खुलासा करते हुए आचार्य अमृतचन्द्र लिखते हैं - जीवाजीवादीनां तत्त्वार्थानां सदैव कर्तव्यम् । श्रद्धानं विपरीताऽभिनिवेश विविक्तमात्मरुपं तत् ।।२२।। विपरीत मान्यता से रहित जीवादिक तत्त्वार्थों का श्रद्धान (प्रतीति) Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com

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