Book Title: Vitrag Vigyana Pathmala 3
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 25
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates पाठ ६ । ज्ञानी श्रावक के बारह व्रत [पंचम गुणस्थानवर्ती] जिसे यथार्थ सम्यग्दर्शन प्रकट हो चुका है, उसे ही ज्ञानी कहते हैं। ऐसा ज्ञानी जीव जब अनन्तानुबंधी और अप्रत्याख्यानावरण कषाय के उदय के प्रभाव में अपने में देशचारित्रस्वरूप आत्मशुद्धि प्रकट करता है, तब वह व्रती श्रावक कहलाता है। ___जो आत्मशुद्धि प्रकट हुई, उसे निश्चय व्रत कहते हैं और उक्त प्रात्मशुद्धि के सद्भाव में जो हिंसादि पंच पापों के त्याग तथा अहिंसादि पंचाणुव्रत आदि के धारण करने रूप शुभभाव होते हैं, उन्हें व्यवहार व्रत कहते हैं। इस प्रकार के शुभभाव ज्ञानी श्रावक के सहज रूप में प्रकट होते हैं। ये व्रत बारह प्रकार के होते हैं। उनमें हिंसादि पाँच पापों के एक-देश त्यागरूप पाँच अणुव्रत होते हैं। इन अणुव्रतों के रक्षण और उनमें अभिवृद्धिरूप तीन गुणव्रत तथा महाव्रतों के अभ्यासरूप चार शिक्षाव्रत होते हैं। २२ Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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