Book Title: Vitrag Vigyana Pathmala 3
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates उपयोग दर्शनलाल - भाई ज्ञानचन्द ! यह मेरी समझ में नहीं आता कि पिताजी ने अपने ये नाम कहाँ से चुने हैं ? ज्ञानचन्द - अरे! तुम्हें नहीं मालूम ये दोनों ही नाम धार्मिक दृष्टि से पूर्ण सार्थक हैं। अपनी आत्मा का स्वरूप ही ज्ञान-दर्शनमय है। मोक्षशास्त्र में लिखा है 'उपयोगो लक्षणम्' ।। २।।८।। अर्थात् जीव का लक्षण उपयोग है और ज्ञान-दर्शन के व्यापार अर्थात् कार्य को ही उपयोग कहते हैं। दर्शनलाल - अरे वाह! ऐसी बात है क्या ? मुझे तो ये नाम बड़े अटपटे लगते हैं। ज्ञानचन्द - भाई! तुम ठीक कहते हो। जब तक जिस बात को कभी सुना नहीं, कभी सुना नहीं, तब तक ऐसा ही होता है। आचार्य कुंदकुंद स्वामी ने भी लिखा है - इस जीव ने विषय-कषाय की बातें तो खूब सुनी, परिचय किया और अनुभव की हैं, अतः वे सरल लगती हैं; परन्तु आत्मा की बात आज तक न सुनी, न परिचय किया और न आत्मा का अनुभव ही किया है, अतः अटपटी लगेगी ही। दर्शनलाल - भाई ज्ञानचन्द ! तो आप इस उपयोग को थोड़ा और खुलासा करके समझयो जिससे कम से कम अपने नाम का रहस्य तो जान सकूँ। ज्ञानचन्द – अच्छी बात है, सुनो। चैतन्य के साथ संबंध रखने वाले (अनुविधायी) जीव के परिणाम को उपयोग कहते हैं, और उपयोग को ही ज्ञान-दर्शन भी कहते हैं। यह ज्ञानदर्शन सब जीवों में होता है, और जीव के अतिरिक्त अन्य किसी द्रव्य में नहीं होता; इसलिये यह जीव का लक्षण है। इससे ही जीव की पहिचान होती है। इस उपयोग के मुख्य दो भेद हैं: (१) दर्शनोपयोग (२) ज्ञानोपयोग । दर्शनलाल - दर्शनोपयोग और ज्ञानोपयोग में क्या अतंर है ? यह समझाइये। ज्ञानचन्द - जिसमें सामान्य का प्रतिभास [ निराकार झलक] हो उसको दर्शनोपयोग कहते हैं, और जिसमें स्व-पर पदार्थों का भिन्नतापूर्वक प्रवभासन हो उस उपयोग को ज्ञानोपयोग कहते हैं। १२ Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51