Book Title: Vilasvaikaha
Author(s): Sadharan, R M Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 10
________________ प्रस्तावना १. प्रति-परिचय अने संपादन-पद्धति प्रति-परिचय जेसलमेरना जैन ग्रन्थ भण्डारमा उपलब्ध थती 'विलासवई-कहा' नी बे ताडपत्रीय प्रतोनी फोटोस्टेट नकलो स्व० पूज्य आगम-प्रभाकर मुनिराज श्री पुण्यविजयजीए वर्षो पूर्वे करावेली. जेसलमेर ग्रन्थ भण्डारोना तेमणे ज सम्पादित करेल सूचिपत्रमा नोंधायेली नं. २६७-२६८ नी ताडपत्रीय प्रतिओनो ज आ फोटोस्टेट कोपीओ छे'. आ फोटोकोपीओना आधारे में आ संपादन कयु छे. आ बन्ने फोटोकोपीओनी विगत नीचे मुजब छे (१) ला० प्रति-श्री लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर, अमदावादना ग्रन्थालयमां आ फोटोकोपी क्रमांक २८३४२ नी छे. जेसलमेरना उपर जणावेला सूचिपत्रमा नं. २६७ नी जे प्रति छे तेनी ज आ फोटो-नकल छे. अन्तिम फोटो प्लेटमां 'जे. भ. १६७' आवी नोंध मूकायेली छे. आ १६७ जूनो नंबर छे. ११४९१ (से. मी. २८४२४) नो साईझनी ४२ प्लेटोमां ताडपत्रना कुल २०६+२ (प्रकीर्ण) पत्रो (जेनुं माप सूचिपत्र मुजब १६१४२३" छे) समायेल छे. १०८ मुं पत्र आमां खूटे छे. अन्य २०७ पत्रोमां प्रतिपृष्ठ ५ पंक्ति अने प्रतिपंक्ति ६० थी ६५ अक्षरो (नागरी लिपोमां) छे. मूळना अक्षर सुवाच्य होवा छतां फोटो कोपी जूनी अने झांखी पडी गयेली होवाथी वाचनमां खूब ज मूश्केल छे. ___आ प्रतिमां भलेमीडुंना प्रतीक पछी तरत ज "बहुरयण ..."थी काव्यनी शरूआत थाय छे अने ११ मी सन्धिना अन्ते प्रशस्ति पछी "जय तियसिंद सुंदरि-वंदिय-पय-पंकया कयारूढा । बुहयण-विदिन्न-वाणी सरस्सई सयल-सुह-खाणी । __ए सरस्वतीना जयशब्दोथी समापन थाय छे. (२) पु० प्रति-आ फोटोनकल उपर दर्शावेल जेसलमेर-सूचिपत्रनी नं. २६८नी प्रतिनी छे. स्व. पू. आगमप्रभाकरश्रीना अंगत संग्रहनी आ फोटोकोपी पण हाल ला. द. भा. सं. विद्यामन्दिर, अमदावादना संग्रहमा ज छे. एनो क्रमांक २८ ३ ४ ३ छे. आमां ११११४९" (से.मी. २९४२४) ना मापनी २७ फोटो-प्लेटमां ताडपत्रना १४४२" ना मापना) कुल २०३ पत्रो आवेल छे. आमां मूळना पत्र-२, ५४, ९९, १३० अने १३८ना फोटो कोई कारणसर लेवायेल नथी. मूळ प्रतिमा प्रतिपृष्ठ ५ पंक्ति अने प्रतिपंक्ति ५० थी ५२ अक्षर छे. अक्षर सुवाच्य छे. फोटो पण प्रथम प्रति करतां अधिक स्पष्ट छे. आ प्रतिना प्रारंभ 'भलेमोंडु'ना चिह्न पछी "नमो वीतरागाय ॥ बहुरयण..." थी थाय छे. अने अंते १. जेसलमेरु-दुर्गस्थ हस्तप्रतिसंग्रह-गतानां संस्कृत-प्राकृतभाषा-निबद्धानां ग्रन्धानां नूतना सूची, संकलयिता-मुनिराज श्री पुण्यविजयजी, पृ. १११-११२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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