Book Title: Vilasvaikaha
Author(s): Sadharan, R M Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 15
________________ विलासवई-कहा कुमार जन्म्यो. कुमारना जन्मसमये ज नैमित्तिको(ज्योतिषीओ)ए भाख्यु के आ कुमार सकल विद्याधर राजाओनो अधिपति थशे. कुमारनुं नाम सनत्कुमार पाडवामां आव्यु'. बधाने प्रिय एवो कुमार वैभवपूर्वक उछरवा लाग्यो. (३) ___ एक वखत अश्वक्रीडाएथी पाछा वळतां कुमारे रक्षको द्वारा पकडीने मारवा माटे लई जवाता केटलाक चोरोने जोया. चोरोनी शरण-याचनाथी कुमारे तेमने छोडाव्या. नगरजनो आ जाणी गुस्से थया. रक्षकोए आ वात राजाने कही. राजाए कुमारथी खानगो रीते, नगरजनो ने जाण थाय ए रीते चोरोनो वध करवा रक्षकोने आज्ञा करी. कुमारथो आ छूपु न रहयु अने ते पोताना पिताथो रिसाईने त्यांथी चाली नीकळ्यो. (४) पोताना परिजनोए वारवा छतां ते केटलाक वफादार माणसोने साथे लईने नगरी छोडी चाली नीकळ्यो, ने समुद्रतीरे आवेली ईशानचंद्र राजानी राजधानी ताम्रलिप्ति नगरीए आवी पहोंच्यो. तेना आगमननी जाण थतां ईशानचंद्र राजाए सपरिवार सामे जईने तेनु स्वागत कर्यु, नगरमां लई जई सुसज्ज निवासस्थान आप्यु अने आ पण तेनु पोतानु ज राज्य छे एम गणवा का . सनत्कुमार त्यां सुखपूर्वक समय पसार करवा लाग्यो. (५) ईशानचंद्र राजाए तेने कोई मनगमतो आजीविका स्वीकारवा कह्युपण कुमारे ना पाडी. एटलामा बहुविध विलासवाळो मनहर वसंतमास (वर्णन) आवी पहोंच्यो. अने मदननो महोत्सव उजववा नगरजनोनी साथे ज मित्र-परिवार सह कुमार पण अनंगनंदन नामना उद्यान तरफ चाल्यो. (६-७) राजमार्गे पसार थता कामदेव समा कुमारने पोताना महेलनी बारीमा बेसी मार्गर्नु अवलोकन करती ईशानचंद्र राजानी रूपवती पुत्रो विलासवतीए जोयो. जाणे के पूर्व-जन्मनी प्रीत होय तेम तेणीने कुमार तरफ भाव प्रगट्यो. पोताना हाथे गूंथेली बकुलमाळा तेणे नीचेथी पसार थता कुमार उपर फेंको, ते बराबर कुमारना गळामां जई पडी. जेवू कुमारे ऊंचे जोडे के अनुरागवती राजकन्याने जोई. तेने पण अत्यंत प्रेम उत्पन्न थयो. कुमारना प्रिय मित्र वसुभूतिए आ बधु जोयु अने तेने पण आ बन्नेना परस्पर अनुरागनी तत्क्षण झांखी थई. (८) उद्यानमां जईने मनोहर क्रीडाओमां जोडावा छतां कुमारनुं हृदय तो विलासवतीना सुंदर मुखनं ज चितन करतुं रा. पछी नगरीमा पाछा फरी पोतानुं कामकाज आटोपी तेणे दिवस जेमतेम पूगे कर्यो. पण प्रियाविरहे तेनी रात्रि लांबी अने दुःसह बनी गई. (९) प्रभाते मित्रो आव्या. तेमनी साथे कुमार क्रीडा माटे भवनोद्यानमा गयो. पण कोई रमतमां तेनो जीव लाग्यो नहीं. वसुभूतिए आ जोयु अने तेणे कुमारने माधवीमंडपमां लई जई विषादनुं कारण पुछ्युं. शरमना मार्या कुमारे प्रथम तो बहानां बताव्यां पण अंते पोतानी विरहपीडानो एकरार को. (१०) वसुभूतिए हसीने पोते ए जाणे छे एम कही आश्वासन आप्यं के 'मित्र ! तारा उार ए कुंवरी पण एटली ज आसक्त छे, ए तेणे फेंकेली बकुलमालिकारूपी प्रणयदती ज साबित करे छे. एटले ते पण तारो समागम ईच्छे छे ज, माटे शोक न कर. (११) पोते विलासवती साथे कुमारनो मेळार करावी आपवा जरूर उपाय करशे एम कुमारने मनायो, वसुभू तेए विला सवती नी धावमातानी पुत्रो अनंगसुंदरी साथे संबन्ध जोडवानी युक्ति अजमावी. थोडा दिवस अमज पसार थतां कुमारने वसुभूतिना वचनमां पण विश्वास न रह्यो अने ते कामज्वरथी खूब पीडावा लाग्यो. (१२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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