Book Title: Vilasvaikaha
Author(s): Sadharan, R M Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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प्रस्तावना
११
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कुमारे तेनुं अभिवादन कर्यु कुमारने पासे बेसाडी तेणे पोतानी वात शांतचित्ते सांभळवा क; अने पछी वात कहेवी शरू करी - "आ भारतवर्ष मां वैताढ्य नामे श्रेष्ठ पर्वत ( वर्णन ) छे. तेना पर विद्याधरोनुं गंधसमृद्ध नामे प्रसिद्ध नगर आवेलु छे, जेनो सहस्रचल नामे राजा छे अने सुप्रभा नामे राणी छे. तेमनी मदनमंजरी नामनी हु प्राणप्रिय पुत्री छु. विलासपुरना राजकुमार पवनगति साथे मारा लग्न करवामां आव्या हता. ( २ - ३ )
एक खत विमानमा बेसी आकाशमार्गे बन्ने क्रीडनार्थे नंदनवनमां गया. त्यां अचानक सुवर्ण सिंहासनेथी पडी जतां पवनगतिए प्राण त्यज्या अत्यन्त शोकथी विलाप करती हुँ बेभान बनी गई. भान आवतां ऊडवानो प्रयत्न कर्यो तो ऊडी शकी नहीं; मारी आकाशगामिनी विद्या निष्फल गई. एकली हु अरण्यरुदन करती रही. एवामां मारा पिताना मित्र देवनंद विद्याधर तापसं त्यां वो चड्या. तेमणे मने रुदननु कारण पूछयु में अथेति वात करी. तेणे मने आश्वासन आप्यु अने संसारनी असारता समजावी. संसारमां प्रवज्या - व्रतग्रहण ए ज एक मात्र सुखनो मार्ग छे एवं प्रतिपादन करी तेमणे मने तापस-दीक्षा लेवा प्रेरी में तैयारी बतावी. पछी पोताना प्रभावथी मारा पिताने पण त्यां हाजर करी, श्वेतद्वीप उपर जई, विधिपूर्वक तेणे मने तापस- दीक्षा आपी.
(४-८)
आ ते व्रत धारण करती हुं एक वखत फळादिक माटे घूमती घूमती सागरतीरे ( वर्णन ) आवी. त्यां एक पाटिया साथे वळगेली बेभान लावण्यमयी कन्या में जोई, कमंडलु - जळनो छ'टकाव करी में तेने भानमां आणी. शोक अने भयथी विह्वळ बनेली तेने में पराणे फलाहार कराव्यो. आश्रमे लई जईने में कुलपतिने तेनी सोंपणी करी. (९-१०)
ते अभिजात कन्याए शरमना मार्या पोते ताम्रलिप्सिनी निवासी छे ते सिवाय बीजु कई कछु नहीं. संध्यावश्यक बाद में कुलपतिने ज तेना विशे पूछ्यु तपोबळथी कुलपतिए बतायुं के 'ते ताम्रलितिना राजा ईशानचन्द्रनी पुत्री छे अने प्रियतमना विरहथी आ अवस्था पाभी छे, कन्या होवा छतां मनथी ते यशोवर्मा राजाना पुत्र सनत्कुमारने परणी चूकीं छे. निर्दोष कुमारने ईशानचन्द्र राजाए मरावी नाख्यो एम सांभळी पोते आत्महत्या करवानो इरादो करी, एक रात्रिए चोकीदारो न जाणे तेम ते घरथी भागी छूटी, पण राजमार्गेथी चोरोना हाथमां पडी. चोरोए तेने लुंटी लईने पछी अचल नामना सार्थवाहने वेची. अचल तेने साथे लई वाणद्वारा बर्वरकुल तरफ रवाना थयो; पण वहाण अधवच्चे ज तूटी गयुं एक फलक हाथमां आवी नतां तेणी आ रीते किनारे घसडाई आवी. तेना पति साथे तेनो अवश्य संगम थशे अने तेनु जीवन सफळ थशे.' (११-१२ ) कुलपतिए तेनो पति पण शोकाकुल तेने में आश्वासन माटे तत्पर थई. पण में तेने प्रियतम जीवित होवानुं जाणी
जीवित होवानुं जणान्युं तेथी मने खूब ज हर्ष थयो. आपी संसारनी गति विषे उपदेश कर्यो, तेथी ते व्रतग्रहण अटकावो अने कुलपतिए करेल भविष्यवाणी तेने संभळावी. अति प्रसन्न थई. (१३-१५)
केटलोक काळ ते तापसकन्यारूपे ज पसार कर्यो. एकदा कुलपति भगवान पोताना धर्म - कुसुम-समिघ लईने पाछो फरतां तेने में रोतो दीठी. स्वजनोनी याद आवी गई. में तेने कुलपति आवसे आश्वासन आप्यु. पण ते दिवसथी तेणे देवपूजा, अतिथि
बंधुना दर्शनार्थे श्रीपर्वत गये त्यारे में पूछतां तेणे कछु के आज पाताना एटले तेना घेर पहोचाडशे एवं
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