Book Title: Vilasvaikaha
Author(s): Sadharan, R M Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 21
________________ विलासवई-कहा सत्कार, कुसुमचयन बधां ज कामो बंध करो दोधां अने यौवनसहज कामचेष्टाओ दाखववा लागी. (१६-१७) ___बीजे दिवसे ते आश्रमथी बहार जवा नीकळी त्यारे मने तेना वर्तनमा शंका पडी. आथी हुँ पण तेनी पाछळ पाछळ छुपाती चाली नीकळी. अशोकवीथिकामां जईने तेणे रुदन करतां करतां विधाताने ठपको आप्यो. पछी हाथ जोडी वनदेवताओने संबोधीने पोताने प्रियतम अहीं ज मळेलो अने पोते शरमना भारथी तेने जवाब पण न आप्यो तेनो पश्चात्ताप करवा लागी. (१८-१९) ___ केटलीकवार पछी कोई जोतुं तो नथी ने एनी खात्री करी, गहन वृक्षझुडमां प्रवेशीने, प्रियतमने तथा माता समान एवी मने, वनदेवताओ द्वारा संदेशो पाठवोने, गळामां लतापाश नाखी आत्महत्या करवानी तेणे तैयारी करी. ते जोई चोंकी ऊठेली हुँ 'बचावो' 'बचावो' एवा साद साथे तेने बचाववा दोडी गई. तेनो पाश में खूचवी लीधो. आयु अकार्य आचरवा माटे में तेने ठपको आप्यो. तेनी वात में जाणी छे एम कही आश्वासन आप्यु; अने कुलपति भगवानना वचनमां श्रद्धा राखवा का. आ पछी तेने समजावीने आश्रमे लावी. तारी(कुमारनी) शोध माटे में पहेलां तो मुनिकुमारोने मोकल्या, छतां तेमने तारी भाळ न मळी एटले छेवटे हु ज तने शोधवा निकळी. हवे हे कुमार ! ते स्वजन विनानी सुकोमळ कन्याना प्राणनी रक्षा तारे हाथ छे, माटे तुं मारी साथे चाल.” (२०-२३) संधि-५ तापसीनी साथे कुमार दिव्य तपोवनमां आव्यो. त्यां विरहकृश विलासवती साथे ते नो समागम थयो. कुमारनो आश्रमउचित सत्कार करी तापसीए आश्रममां ज साधुजनोनी हाजरीमा तेना विलासवती साथे विधिपूर्वक लग्न कर्या. (१-३)। __लग्नबाद सुंदरवन नामे नंदनवन जेवा मनोहर उद्यान (वर्णन) मां आनंदप्रमोद करी कुमार अने विलासवती आश्रममां पाछा आल्या. आश्रमउचित कार्यो करता करतां सुखपूर्वक समय पसार करवा लाग्या. (४-७) अक दिवस समिध-काष्ठ वगेरे लेवा बन्ने वनमां गया. त्यां विलासवतीना स्नेहनी कसोटी करवा कुतूहलथी सनत्कुमारे नयनमोहन पट शरीरे ओढी लीधो. कुमारने न जोवाथी व्याकुळ विलासवती मुञ्छित थई जमीन पर पडी. आ जोई कुमारने पोताना कार्यनो पश्चात्ताप थयो. तेणे पट दूर करी विलासवतीने आश्वासन आपी भानमां आणो, नयनमोहन पटनी वात तेने कही अने ते तेने आप्यो. (८-९) ते पण ते वस्त्र जोई आश्चर्य साथे आनंद पामो. ___आनंदविनोदमां केटलोक समय पसार कर्या पछी कुमारे विचार्यु के गृहस्थोने माटे वनवास करतां नगरवास उत्तम, माटे पोते हवे स्वदेश प्रति जवू जोईए. विलासवतीए पण तेनी वातनु अनुमोदन कयु. आथी कुमारे दरिया-किनारे एक ऊंचा वृक्षनी टोचे भांगेला वहाणनी निशानीरूप ध्वज बांध्यो. थोडा दिवसो पछी केटलाक खलासीओ ए ध्वज बांधनारनुं नाम पूछता कांठे आवी लाग्या. (१०) सनत्कुमारे ध्वज बांध्यो छै एम जाणी तेमणे तेने कह्यं के 'अमे महाकटाहद्वीपना निवासी सानुदेव नामना सार्थवाहना खलासीओ छोए. अमारु वहाण मलयदेश तरफ जई रयु छे. तमारो ध्वज जोई अमारा मालिके अमने तपास करवा अने कोईने मलयप्रदेशे आवq होय तो लई आववा मोकल्या छे.' आ सांभळी कुमारे तापस-तापसीओनी अनुमति लई, विलासवती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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