Book Title: Vilasvaikaha
Author(s): Sadharan, R M Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 25
________________ विलासवई-कहा नी एक गुफामां राखी, वसुभूतिने तेनी रक्षानो भार सोंप्यो. पछी पांच जातना पुष्पो तथा बीजां जरूरी उपकरणो समीपे राखीने, मुद्रा तथा मंडळर्नु आलेखन करीने, पद्मासने बेसीने कुमारे लक्ष मंत्र-जाप शरू कर्यो. (२३) ___ जप शरू करतां ज प्रचंड कोलाहल साथे धरतीकंप थयो अने पछी भयानक वनगज, दुष्ट पिशाचिका, वेताल अने डाकणो, क्रूर सिंह, उग्र विषधर सर्प अने अनेक राक्षसीओए आवी कुमारने चलायमान करवा प्रयत्न कर्यो (वर्णन). पण कुमारे आ बधां ज उपसर्गो स्वस्थ, शांत चित्ते सहन करीने जाप चालु राख्यो. अंते विद्यादेवीए पोतानुं सुंदर स्वरूप एनी समक्ष प्रगट कर्यु. (२४-३०) अजितबलादेवीए कुमारना सत्वथी प्रसन्न थई तेने दर्शन आप्या. कुमारे शेष जाप पूर्ण करी पछी देवीने वंदन कर्यु. अनेक विद्याधरो जयशब्द बोलता त्यां आवी लाग्या. देवीए चंडसिंह नामे शूरवीर सेनापतिना आधिपत्य नीचेनुं विशाळ विद्याधर-सैन्य कुमारने सोंप्यु अने विद्याधरेन्द्र तरीके तेनो अभिषेक करवा इच्छा दर्शावी. सनत्कुमारे विला. सवती अने वसुभूतिनी उपस्थितिमा ज अभिषेक करवा विनंति करी. (३१-३३) संधि-७ वसूभूतिने बोलाववा छतां कई जवाब न मळयो. आथी कुमारे गुफामां तपास करी तो त्यां विलासवती पण न जणाई. आशंका साथे कुमार विद्याधर-सैन्यने लई गगनमार्गे सघळो मलयगिरी घूमी वळयो त्यारे एक वनकुंजमां वसुभूतिने विक्षिप्तावस्थामा एकलो भमतो जोयो. कुमार तथा विद्याधर सैन्यने विलासवतीने उठावी जनार समजी विक्षुब्ध वसुभूति वृक्षनी डाळी लई सामो थयो. कुमारे तेने अटकावीने पोतानी ओळख आपी शांत कर्यो. पछी विलासवतो विशे तेने प्रश्न कर्यो. कोई विद्याधरोद्वारा एक मोटा विमानमां, मदद माटे अवाज करती विला. सवतीने लई जवायानी अने पोते पाछळ पडवा छतां कई न करी शकवानी वात वसुभूतिए खेद साथे करी. कुमारे तेने आश्वासन आप्युं के अजितबला-विद्यानी मददथी विलासवतीने पाछी मेळववा पोते समर्थ छे. (१-३) एटलामा अजितबला देवी ज त्यां आवी पहोंची अने विलासवतीना अपहरणना समाचार जाणी तेणीए पवनगति वगेरे पोताना आकाशगामी अनुचरोने दशे दिशामां तपास माटे मोकली दीधा. कुमार सपरिवार मयलशिखरे रह्यो. त्रोजा दीवसे हर्षभर्या पवनगतिए कुमार पासे आवी विलासवतीनो पत्तो लाग्याना समाचार आपतां कडं-'वैताब्य पर्वतनी जमणी हारमाळामां रथनूपुरचक्रवाल नामे नगर छे. त्यां जतां मने त्यांना नगरजनो पासेथी भाळ मळी के ते नगरनो गर्विष्ठ अने अनीतिमान विद्याधर राजा अनंगरति कोई साधनामग्न महापुरुषनी पत्नीनु अपहरण करी लावो, बलात्कारे तेने पोतानी राणी बनाववा प्रयत्न करी रह्यो छे.' आटलं सांभळतां ज कुमारनो क्रोधाग्नि भडकी ऊठ्यो. ते दुष्टने हवा ते तलपापड थई गयो. पण पवनगतिए तेने शांत पाडी आगळ वात चलावी-'अनंगरतिना आवा दुराचारथी कोपायमान महाकाळीदेवीए प्रत्यक्ष थई तेने वार्यो अने सती स्त्री प्रत्ये आवं आचरण करवाथी ते जो रूठशे तो सत्यानाश करशे एवी बीक बतावी. आवो बीकथी ते दुष्टे विलासवतीदेवीने एक उद्यानमां आम्रवृक्ष नीचे विद्याधरोना पहेरा हेठळ राखेल छे. आपनी आज्ञा न होवाथी मळ्या विना दूरथी ज देवीना दर्शन करो हुं पाछो फर्यो छु. हवे आपने योग्य लागे ते प्रमाणे करो.' पवनगतिनुं निवेदन पूरुं थतां सनत्कुमारे वसुभूतिनी सलाह मागी. वसुभूतिए दूत मोकली विलासवतीनी मागणी करवानी सलाह आपी. (४-९) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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