Book Title: Vilasvaikaha
Author(s): Sadharan, R M Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 13
________________ विलासवई-कहा कर्या पूर्वे) 'साधारण' ए उपनामथी प्रसिद्ध हता. अमना रचेला स्तुति-स्तोत्रो देशभरमां गवाती हता. आवा कविए भिन्नमाळ-कुळना, गोपगिरिशिखर(हालना प्रसिद्ध ग्वालियर)ना रहेवासी साधु ( सद्गृहस्थ ) लक्ष्मीधरनी विनंतिथी 'समराइच्चकहा'(आचार्य हरिभद्रसूरि-रचित प्राकृतभाषा-निबद्ध महाकथा 'समरादित्यकथा')मांथी वस्तु लईने, शुद्ध सन्धिबन्धमां, कुतुहलपूर्वक आ प्रसन्न मधुर वाक्योवाळी विलासवती-कथा रची छे. गुजरातना धंधुकानगरमा विक्रम संवत् ११२३ (ईस्वी सन १०६७) ना पोष चतुर्दशीने सोमवारना दिवसे रचना पूर्ण थई. अनुष्टुभ् छन्दना मापथी गणतां लगभग त्रण हजार छसो वीश (३,६२०) गाथा आमां छे. पाठकोने उपदेश करवा खातर मूळ वस्तुमा पोतानी कल्पनाथो केटलोक उमेरो कर्या बदल कवि सज्जनो पासे क्षमा याचे छे. अंते इन्द्रनी अप्सराओ जेना चरणकमलने वंदे छे, जे बुधजनोने वाचा आपनारी छे, जे सकल सुखनी खाण छे एवी पद्मासना सरस्वतीनो जय वांछी कवि प्रशस्तिनु समापन करे छे. भगवान महावीरनी शिष्य-परपरामां दशमा पट्टधर आर्य सुहस्तीना बार शिष्यो पैकी पांचमा आर्य सुस्थितसूरि(ई. स. पूर्व २८४)थी शरू थयेल कोटिक गणनी १. उच्चनागरी, २ विजाहरी, ३. वईरी अने ४. मज्झिमिल्ला ए चार शाखाओ अने ए शाखाओना अनुक्रमे १. बंभलिज्ज २. वत्थलिज्ज ३. वाणिज्ज अने ४. पण्हवाहणय कुळो हतां. आमांनी रोजी वईरी-वज्रशाखानो उद्भव आर्य वज्रस्वामिथी (ई. स. २१-५७, वीर सं. ५४८५८४) मनाय छे.' आ वज्रशाखाना नागेन्द्रकुल, चन्द्रकुल वगेरे उपकुलो हता. कवि आमांनी वज्रशाखाना हता अने वाणिज्यकुल एमनु मुख्यकुल तथा चन्द्रकुल उपकुल हतुं. आ परंपरामां कनोजना राजा आमराजने प्रतिबोधनार आचार्य बप्पमट्टिसूरि (ई. स. ७४४-८३९) थया. ते ज सुप्रसिद्ध आचार्यनो पर परामां, यशोभद्रसूरि-गच्छमां प्रस्तुत कवि थया. यशोभद्रसूरि-गच्छ कोनाथी अने क्यारे स्थपायो ते विशे कोई माहिती प्राप्त थती नथी. कविना गुरु-प्रगुरु विषये पण कोई उल्लेख अन्यत्र मळतो नथी. प्रशस्तिपरथी एटलं जाणी शकाय छे के यशोभद्रसूरि-गच्छ मथुराप्रदेशमां ते काळे विद्यमान हतो. आचार्य बप्पट्टिसूरिनी कर्मभूमि मोढेरा (गुजरात) थी मांडी मथुरा अने पटणा सुधीना विशाळ प्रदेशमा विस्तरेली हती. मोढेरानां मोढ-गच्छ अने मोढ-वणिकोना संबंधन पगेरु धंधुका सुधी आवे छे'-अहीं ए नोंधq रसप्रद थशे के आ धंधुकामां ज महान आचार्य हेमचन्द्रसुरि, 'विलासवतीकथा'ना रचनाकाळ पछी त्रेवीसमा वर्षे (वि.सं. ११४५, ई.स. १०८८मां) मोदज्ञातिमा ज जन्म्या हता--आम कवि सिद्धसेनसूरिनु कार्यक्षेत्र धंधुकाथी मांडी प्रशस्तिमा जे गोपगिरिनो उल्लेख छे ते ग्वालियर सुधी विस्तृत हशे अम मानी शकाय. 'साधारण'उपनामथी गृहस्थ-जीवनमां ज प्रसिद्धि, स्तुति-स्तोत्रो सर्वत्र प्रचलित हता तथा विलासवतीनी रचना आचार्यपदे हता ते दरमियान पूर्ण करी, आ बघा उल्लेखोथी अमनी १. जुओ जैन परंपरानो इतिहास भा. १ पृ. २११-२१९. २. एजन पृ. २८४-३०० ३. एजन पृ. १७७ ४. पट्टावली समुच्चय खं. १ पृ. ५२. ५. प्रभावकचरितम- २१ श्री बप्पभट्टिसूरिचरितम्, पृ. ८०-१११. ६. जैन परंपरानो इतिहास भा. १ पृ. ५२२-५२४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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