Book Title: Vilasvaikaha
Author(s): Sadharan, R M Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 12
________________ प्रस्तावना (७) सामासिक शब्दोने - चिह्न (हाइफन) द्वारा छूटा पाडी दर्शाव्या छे. (८) अस्पष्ट के अनिर्णित स्थान (?) चिह्न थी अंकित कर्या छे. (९) पाठान्तरो कडवक अने पंक्ति-संख्या थी दर्शाव्या छे. (१०) अभ्रंशमां ह्रस्व ए, ओ दविवा जरूरी होवा छतां अलग टाइप न होवाने लीधे ते विना चलावी लेवू पडयु छे. (११) एत्यंतरे एत्थं तरि, तीय-तीए जेवा अनेक वार मळतां पाठोनी नोंध मात्र शरूआतमां ज लीधी छे. २. ग्रंथकार-परिचय विलासर्वई-कहा ना रचयिता सिद्धसेनसूरि अपरनाम 'साधारण' कविना जीवन-कवन विशे आ कृतिनो प्रशस्ति सिवाय बोजी कोई जगाओथी वधु माहिती प्राप्त थती नथो. प्रशस्ति नीचे मुजब छे वाणिज्ज-मूलकुले कोडिय-गणे विउल-वइर-साहाए । विमलम्मि य चंद-कुले वंसम्मि य कव्व-कलाण संताणे ॥ रायसहा-सेहर-सिरि-बप्पहटि-सूरिस्स । जसभद्दसृरि-गच्छे महुरादेसे सिरोहाए ॥ आसि सिरि-संतिसूरि तस्स पए आसि सूरि जसदेवो । सिरि-सिद्धसेणसूरि तस्स वि सीसो जडमई सो । साहारणो त्ति नामं सुपसिद्धो अत्थि पुव्व नामेणं । थुइ-थोत्ता बहु-भेया जस्स पढिज्जंति देसेसु ॥ सिरि-भिल्लमाल-कुल-गयण-चंद-गोवइरि-सिहर निलयस्स । वयणेण साहु-लच्छिहरस्स रइया कहा तेण ।। समराइच्च-कहाओ उद्धरिया सुद्ध-संधि-बंधेण । कोऊहलेण एसा पसन्न-वयणा विलासवई ।। एक्कारसहिं सएहिं गएहिं तेवीस-वरिस-अहिएहिं । पोस-च उद्दसि सोमे सिद्धा धंधुक्कय-पुरम्मि । एसा य गणिज्जतो पाएणाऽणुठ्ठभेण छंदेण । संपुण्णाई जाया छत्तीस-सयाई वीसाई ॥ जं चरियाओ अहियं किं पि इह कप्पियं मए रइयं । पडिबोह-कारणेणं खमियव्वं मज्झ सुयणेहिं ॥ जयइ तियमिंद-सुंदरि-वंदिय-पय-पंकया कयारूढा । बुयण-विदिण्ण-बाणी सरस्सई सयल-सुह-खाणी ।। कवि पोताने वाणिज्यकुल, कोटिक गण अने विशाळ वज्रशाखामां, काव्य-कलाकोविदोनी परंपरावाळा चंद्रकुल (उपकुल) मां उत्पन्न गणावे छे. राजसभाना मुकुटसमान श्री बप्पमट्टिसूरिनी परंपरामां स्थपायेला प्रसिद्ध यशोभद्रसूरि-गच्छमां, मथुरा प्रदेशमा जे अग्रणी के संघपति हता तेवा श्री शांतसूरिना पट्टशिष्य श्री यशोदेवसूरि हता. कवि नम्रतापूर्वक पोताने आ श्री यशोदेवसूरिना 'जडमति' शिष्य तरिके ओळखावे छे. तेओ पूर्वाश्रममां (मुनि-जीवन अंगीकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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