Book Title: Vilasvaikaha
Author(s): Sadharan, R M Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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विलासवई-कहा
कुमार तरफ अनंगवतीने राग उत्पन्न थयो अने कार्याकार्यनो विवेक भूली ते कुमारर्नु चिंतन करवा लागी. आ तरफ विलासवतीए पोताना प्रणयीजन कुमारने अनंगसुंदरी द्वारा कुसुम, तंबोल वगेरेनी भेट मोकलावी. कुमारे अत्यन्त आदरपूर्वक ते उपहारनो स्वीकार कर्यो. आ रीते ते सुखपूर्वक काळनिर्गमन करवा लाग्यो. (२६-२७) संधि-२
___ एक दिवस अनंगवतीए दासी द्वारा सनत्कुमारने पोताना महेले पधारवा आमन्त्रण मोकलाव्यु. राणीने माता समान समजी निर्दोषभावे कुमार महेले गयो. पण राणीए तेनी पासे अघटित मागणी करी. (१-२) सनत्कुमार आ जाणी चोंकी उठ्यो. तेणे राणीनी मागणीनो इन्कार को अने पोते तेणीना पुत्र समान होई आई अपकृत्य पोतानी पासे नहीं कराववा अनुरोध को तथा राणोने पण आवी दुष्टभावनाथी पर थवा उपदेश आप्यो. शील अने नीतिमां कुमारनी मक्कमता जोई राणीए पण फेरवी तोळ्यु अने पोते तो मात्र तेनी परीक्षा ज करतो हती तेवो देखाव करी कुमारने जवा दीधो. पोताना निवासस्थाने जई सनत्कुमार वसुभूति वगेरे मित्रो साथे फरी क्रीडामग्न बन्यो. (३-४)
एवामां राजानो विश्वासु मित्र नगररक्षक विनयंधर कुमार पासे आव्यो अने एकांतमां कईक कहेवानी अनुमति मागी. कुमारे रजा आपता तेणे वात शरू करी- " तमारा पिताना राज्यमा स्वस्तिमती नामना गाममा वोरसेन नामे एक वोर, उदार अने परोपकारो सुभट रहेतो हतो. तेनी गर्भवती पत्नोने लईने एकदा ते जयस्थलपुर नामे नगरमां आवेला पोताना श्वसुरगृहे जवा नीकळयो. श्वेताम्बो नगरोना पादरे ते आव्यो त्यारे राजानो गुनो करीने भागी छूटेला एक चोरे तेनो आश्रय मागी पोतानु जीवन ब वाधवा विनंति करी. तेनो गुनो नहि जाणता उदार वोरसेने पत्नीना वारवा छतां तेने शरण आप्यु. (५-७)
. चोरने शोधवा नी कळेला राजाना सैनिको ते जगाए आवी पहोंच्या. वोरसेने चोरने रक्षण आप्यु छे ते जाणो तेमणे वीरसेन पासे राज्यगुनेगारने पाछो सोंपवानी मागणी करी. टेकीला वीरसेने कोई पण भोगे शरणागतने सोपवा इन्कार को. राजाज्ञाथी सैनिकोए तेना पर हुमलो कयौं. त्यां एक धिंगाणुं (वर्णन) मची गयु. ए ज वेळाए तमारा पिता यशोवर्मदेव (ते काळे युवराज) अश्वक्रिडा करी त्यांथी पसार थता हता. तेमणे समग्र वृत्तांत सांभळी वीरसेनने शर णागत-वत्सल जाणो बचावो लीघो. वीरसेन निर्भय बनी सपत्नीक जयस्थलपुर पहोंच्यो. त्यां तेनी पत्नीए पुत्रने जन्म आप्यो. ते पुत्र ते हुं (विनयंधर) पोते. आ रोते तमारा पिता मारा कुटुंबना उपकारी छे". (८-१२)
पछी पोते अत्यारे आववानु प्रयोजन जणावतां विनयंधरे आगळ का के “ राणी अनंगवतीए ईशानचन्द्र राजा पासे तमे (सनत्कुमारे) तेना पर कुदृष्टि करीने अपमानित कर्यानी फरियाद करी छे. आथो कोपायमान थयेला राजाए कोई न जाणे एवी रीते तत्काल तमारो वध करवानो मने आज्ञा करी छे. हवे आ कपरी अने अनिच्छित राजाज्ञा कई रोते पार पाडवी एनी मुंझवणमां पडेलो हुँ राजभवनमांथो नोकळ्यो, त्यां सिंहद्वारे ज कोईए छोंक खाधी. त्यां रहेला सिद्ध नैमित्तिके आ जोई भाख्यु- 'विनयंधर ! जा, तारं कार्य ईच्छा मुजब सफळ थशे.' आ पछी घेर पहोंचता मारी माताए मने उदास होवानु कारण पूछ्यु. में तेने सघळं का, त्यारे तेणे मने उपरोक्त उपकारनी वात करो अने तमारा जेवा उत्तम माणसने न मारवा कह्य'. आ पछी पण ओक सामुद्रिक लक्षगोथी तमारो निर्दोषतानी खात्रो मेळवतो हूं तमारी पासे आव्यो छु. हवे तमने योग्य लागे तेम उपाय करो". (९-१५)
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