Book Title: Veer Vikramaditya
Author(s): Mohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 13
________________ २. भट्टमात्र मालव प्रदेश की सीमा से बीस कोस दूर पर स्थित चन्द्रावती नाम की एक नगरी थी। विक्रमादित्य वहां आ पहुंचे। नगरी स्वच्छ, सुन्दर और रमणीय थी। चन्द्रावती नगरी को देखते ही उनके स्मृतिपटल पर अवंती नगरी नाचने लगी। अवंती का स्मरण आते ही उनके मन में मालव देश के त्याग की स्मृति ताजी हो गई। उन्होंने कभी महाराज भर्तृहरि से यह प्रश्न भी नहीं किया था कि उन्हें मालव देश से क्यों निकाला जा रहा है। किन्तु बड़े भाई की आज्ञा को, आज्ञाकारी सैनिक की भांति स्वीकार कर वे घर से निकल पड़े थे। जब से देश-त्याग किया था, उसी दिन से वे इसके कारण की खोज में लगे रहे, पर आज तक उन्हें अपना कोई दोष दृष्टिगोचर नहीं हुआ। तब फिर महाराज भर्तृहरि ने उन्हें देश-त्याग करने के लिए क्यों कहा? मैं उनके सौभाग्य का विरोधी तो था नहीं, मैं उनकी सत्ता का विरोधी भी नहीं था, मेरे हृदय में उनके प्रति अगाध श्रद्धाभाव था.....तो फिर? 'तो फिर' का उत्तर कोई नहीं दे पा रहा था। चन्द्रावती नगरी को देखने के पश्चात् उनकी यह पुरानी स्मृति पुन: ताजा हो गई। उनके मन में यह विचार उठा कि उन्हें एक बार अवंती जाकर ही फिर आगे बढ़ना चाहिए-देखूतो सही कि मेरे मित्र क्या कर रहे हैं? क्या सोच रहे हैं ? बड़े भाई को संतान-प्राप्ति हुई या नहीं? मां के समान भावज कैसे हैं? इस प्रकार अवंती जाने का आकर्षण उनके मन में जागृत हुआ। साथ ही साथ यह विचार भी उभरकर सामने आया कि मुझे क्यों जाना चाहिए? तो क्या फिर इसी अवधूत वेश में जीवन को समाप्त कर दूं? मेरे पिता कौन थे? मेरा कुल कौन-सा है? मेरी जाति कौन-सी है? पुरुषार्थहीन होकर इस प्रकार भटकते रहने से लाभ ही क्या है ? मन में उठे हुए इन विचारों ने विक्रमादित्य को विचलित कर डाला। नहीं....नहीं....नहीं, जिस भूमि से देश-त्याग की बात कही गई, उस भूमि का मोह क्यों रखा जाए? इससे तो अच्छा है कि मैं मगध देश की ओर जाऊं, वहां राजगृह, चम्पा, वैशाली, विशाखा, रत्ना आदि अनेक सुन्दर नगरियां हैं। गिरिव्रज नगरी भी दर्शनीय है। ऐसे किसी स्थान पर पहुंचकर पुरुषार्थ करना-किसी राजा को संगीत से मुग्ध कर कुछ कार्य लेना, यह उपयोगी है। इस प्रकार अवधूत के वेश में जीवन समाप्त कर देने का कोई प्रयोजन नहीं है-और यदि अवधूत के वेश में ही जीवन-यापन करना है तो फिर किसी योगी के आश्रम में रहना ही श्रेयस्कर है-अथवा हिमगिरि पर जाकर साधना करनी चाहिए। ६ वीर विक्रमादित्य

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