Book Title: Veer Vikramaditya Author(s): Mohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni Publisher: Jain Vishva BharatiPage 11
________________ हो रही थी। उसका उत्तरीय श्वेत था-कानों के कुण्डल चमक रहे थे। उसके गले में मुक्ता और माणक की माला झूल रही थी। उसके बाजूबंद हीरक-मंडित होने के कारण चमक रहे थे। इस प्रकार अचानक प्रकट होती हुई इस आकृति को कोई पहली बार देखने वाला पहली नजर में ही फट जाए, अवाक् हो जाए और यदि वह दुर्बल हो तो वहीं मर जाए। यह मानवाकृति और कोई नहीं, स्वयं अग्निवैताल की ही थी। उसने रोष भरी दृष्टि से पलंग की ओर देखा। दो क्षण तक पलंग पर पड़े व्यक्ति की ओर देखकर वह अपनी तलवार हाथ में ले पलंग की ओर बढ़ा। पलंग के पास आकर उसने खांसा, किन्तु श्रीपति गहरी नींद में सो रहा था। अग्निवैताल ने उसे एक हाथ से ऊपर उठाया। मधुर स्वप्न में खोया हुआ श्रीपति जागा और वह अग्निवैताल की ओर देखने लगा। अग्निवैताल ने श्रीपति को पलंग पर पटकते हुए कहा- 'नालायक! मेरे सिंहासन पर तू क्यों बैठा? हाथ में तलवार ले, अन्यथा मैं तुझे चूस लूंगा।' श्रीपति के हाथ जुड़ गए और वह कांपने लगा। अग्निवैताल ने अट्टहास करते हुए कहा- 'कायर! बुजदिल ! राजसिंहासन कायरों से कभी शोभित नहीं होता, तलवार उठा!' श्रीपति की जीभ तलवे पर चिपक गई थी। अग्निवैताल ने श्रीपति के कांपते पैर को पकड़ लिया। श्रीपति बोला-'आप....आप....यहां कैसे आ गए?' 'अरे! मुों के सरदार!' यह कहकर अग्निवैताल ने श्रीपति के पैर का अंगूठा अपने मुंह में ले लिया। कुछ ही क्षणों में श्रीपति का शरीर निष्प्राण हो गया। अग्निवैताल ने उसकी निष्प्राण काया नीचे फेंक दी और वह एक मुक्त वातायन से अदृश्य हो गया। दूसरे दिन प्रात:काल के समय श्रीपति के दास ने शयनकक्ष का द्वार खटखटाया किन्तु द्वार को खोले कौन ? दास ने मन ही मन सोचा-महाराज रात में विलम्ब से सोए थे, अत: निद्राधीन हैं। किन्तु जब एक प्रहर दिन बीत गया, फिर भी शयनकक्ष का द्वार नहीं खुला, तब सारेदास-दासी घबरा गए। महामंत्री बुद्धिसागर भी मंत्रणा के लिए आ गए। उन्होंने भी द्वार खटखटाया, फिर अन्त में द्वार को तोड़कर अंदर गए। श्रीपति का निष्प्राण शरीर नीचे गलीचे पर पड़ा था। ऐसा लग रहा था मानो उसके शरीर से सारा रक्त चूस लिया गया है। वहां कल आनन्द-मंगल था, वहां आज करुण क्रन्दन होने लगा। श्रीपति के माता-पिता अपने इकलौते पुत्र की यह दशा देखकर मूर्छित हो गए। ४ वीर विक्रमादित्यPage Navigation
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