Book Title: Vasupujya Jin Punya Prakash Stavan
Author(s): Shobhna R Shah
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 7
________________ December-2004 21 ४९ ५० ४६ लीलापान अंगुठडइ यम मानइं सुख बाल रे । तिम युवति सुख भंतिमां । जाइ मुद्धा मुझ काल रे ।।३।। तपनो. सुरसुख खीणां जो देखीइं नरसुखनी कुण वात रे । विविध उपद्रवई भव भरयो दीसइ खिण सुखपात रे ॥४॥ तपनो. ४८ गजवर लिखित सलोकनो भाव धरी गुरु पासि रे । राजा उपशम वासीओ चित दिइ संयमवासि रे ॥५॥ तपनो. । सीख दिइ निज राजनी नही मुझ राजस्युं काज रे । हस्ती जस सिरि ढालस्यइ कलसो सो तु तुम्ह राज रे ॥६॥ तपनो० । धन शुभ खे. रे वावरी राज तजी सब भोग रे । संयमधरी महोत्सवई साधइ संयम योग रे ॥७॥ तपनो० । शासन हूई प्रभावना धर्म मिल्या बहु लोक रे । वीनवीओ गजराजीओ राजा कोई विलोक रे ॥८॥ तपनो० । ५२ हस्ती राजनां विहवलां करि धरि वनमाहि जाइ रे । सूतां नर शिरि ढालीओ जय जय पुरिजन गाइ रे ॥९॥ तपनो० । राग - श्री राग तथा गोडी । ढाल - स तस्सेद (सतरभेद ?) पूजा । ५३ देखो सुअणो पुण्यविचारी वनि सूतो पणि पूरव पूण्यई । हूओ राजनो धारी ॥१॥ देखो सुअणा पुण्य विचारी । आंचली । टूटा पंगुल सरिखो देखी सो नर तनु संकोची । गजवर राज दिउं तस देखी किंस्युं करि जन शोची ॥२॥ देखो० । राजिभिलाषी रह्या जे हूंता, जे जे खत्रीपूता 1 ते निरास होइ जन हसिआ जई निज घरि सूता ॥३।। देखो० । ५६ धनावहो सो राय न मानइ अद्ध राजनो धारी । तिणि संग्राम रायस्यु कीनो नृपदल शस्त्र निवारी ॥४॥ देखो० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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