Book Title: Vasupujya Jin Punya Prakash Stavan
Author(s): Shobhna R Shah
Publisher: ZZ_Anusandhan
View full book text
________________
December-2004
ढाल सरसति अमृतनो ॥
राग
केदारो ॥
१४७ तिहां प्रणमती सुरीय धुणंति वज्रनाभ मुनि सुगुण गणंती ।
कहइ जग-जीव - दयालो ॥१॥
w
-
१४८ अमरसंघ आवइ इक जावई देखी नरपति अचिरज पावइ । गुरु महिमा चित्त भावइ ||२||
त्रोटक
१४९ पुर - नरा तिरिआ तिहां मोहिआ । सुगुरुनादि रह्या निहा रोहिआ । तिहां मिल्या भविआ बहु देशना । ते सुणइ गुरु अमृत देशना ॥३॥ १५० वाघ सिंह जरखादि सीआला । जे हूंता जगि अतिविकराला । तेपि हूआ सुकुमाला ॥४॥ १५१ वानर मांकड़ रानबिलाडा ।
गज दीसई दंतूसलि जाडा । दीसंति सूअर काला ॥५॥
त्रोटक
१५२ रिंझरोझ ससला मृगला मिल्या | चीतरा नकुला हय गोधला । अरिहधर्म्म सुणइ श्रवणंजलि । ते पिबंति मुदंति गुरु मिलइ ||६||
ढाल सामि सुहाकरनी ।
१५३ मुनिवर जाण्यउ त्रिभुवन दीवडओ । बारम जिनवर ए नृप जीवडो ॥ १ ॥ त्रोटक
१५४ एवडु मोटा जीव जाणी गुरु करइ गुरु देशनां । संवेगजनकी कथा कहइ -- भवि सुणइ बहु-देशनां ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
31
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47