Book Title: Vasupujya Jin Punya Prakash Stavan
Author(s): Shobhna R Shah
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 16
________________ अनुसंधान- ३० १३८ व्रत विचार व्रतनां फल जायां पूछइ राजा कहो मुझ साचां । विमलबुद्धि मंत्रीशो ||३|| १३९ विमलबुद्धि मंत्री तिहां बोलइ राजन व्रतनां फल कुण तोलइ । सुरगिरि कुण तोलइ ||४|| 30 १४० मुनिनि कंटकिउ जिणि लोचनं । तस फल चहवु भव मोचनं । विशद संयम जइ प्रभु पालि तिणि कां न विमुक्ति निहालइ ॥५॥ राग - मल्हार || एक वरसीजी ऋषभ करइ - ए ढाल ॥ १४१ इणइ अवसरि रे पंचवरण जगि विस्तर्युं । अजूआलू रे नगर मांहि ते अति भयुं ॥१॥ त्रोटक १४२ तिहां तेज - भरिडं लोक देखइ गगनिथी बहु उतरि । सुर विमाना मधुरगानां नगर वनमां संचरइ । देव देवी तणां भूषण रयण जे चित्रविचित्र रे । तेणि अचिरज नगरजननां नयन होइ पवित्र रे ||२|| १४३ इणि अवसरि रे वनपाल नृप वीनव्यो । तुझ वनमां रे मुनिवर आव्यो सुरि नम्यो ||३|| त्रोटक १४४ सुर नम्यो कंचण सहसदल वर- कमलि बइठो सोहइ । तिहां मिल्या बहुविध भाविक नयनां चंद्रनी परि भोहए । सुवज्रनाभ मुणिंद केवलनाण दिनकर तम हरइ । तस नमइ मुनिनि नगरि आवइ ते नरा भवदुःख तरइ ||४|| १४५ सुणी हरख्यो रे राय दिइ तस भूषणां । तस हरिआं रे रायई दरिद्र दूखणां ॥ ५ ॥ त्रोटक १४६ दूखणां हरतो राज चिन्हह अति महोत्सव वंदीउ । वज्रनाभ केवली चरण वंदी राय अति आनंदिओ । वज्रनाभ मुणिंद सुगुरो आज धन मुझ वासरो । हूओ हूति: पापदर्शनि हूओ पुण्यउपासरो ||६|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47