Book Title: Vasupujya Jin Punya Prakash Stavan
Author(s): Shobhna R Shah
Publisher: ZZ_Anusandhan
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December-2004
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२९४ प्रभो गलिं मंदार माला भरो प्रभु तंबोल गाला । . गल तलवर मुगताफल हारा जाला ।
मस्तकि मुकुट स्युं लटकति कानि कुंडल ।
प्रभु तनुभूषण झाकझमाला ||४|| २९५ नालिकेरां भरोरी डाला खजूरां केलेई जाला ।
धउ साजन तु रीझा बाल गोपाला पंच शबद नीसाण वाजइ ।
गगनि तस नाद गाजइ तिलक करो सब साजन भालि ॥५॥ २९६ मेलीइ तिहां भूमीपाला दिइ धवलां देवी बाला ।
नाचति नाटक मेलति ताला देखति पुरजन कुमर ने साला ।
उत्सव छात्रह दीजति विहार विशाला ॥६|| २९७ श्याम जईसा मेघमाला पंथि गाजइ हस्ती काला ।
चपला करइ निज सुंडिना चाला । आगलि ति जाइ तुरकी तोसार माला । पुर नृप कुमरा देवा तिफाला
॥७॥
२९८ प्रभो तुं सब कला शाला बालको प्रणितां ही बाला ।
इति निपुण ति मुगधा महीपाला | चलितासन इंद्रो आई साजण सभा बोलइ प्रभु पंडित ।
तुंही किसी नेसाला ॥८॥ ढाल - जाननो विवाह अवसर आवीओ रे । राग - मारुणी ॥ २९९ इंद्राणी सारिखीअ आणी वधू प्रभुनि काजि राजवत्सल तणी ।
पदमावती रे प्रभु परणो आज कि कुलवधू किम कहेई । धरणी विणु घर नवि होइ घरणी घर-सार करेई ।
धरणी तिणि लोक चरेई रे पूता कुलवधू इम कहेई ॥१॥ ३०० विविध मोटा मांडवा रे कनकमणिना थंभ ।।
मत्रत पकवान करस्यं भोजनना आरंभ तो ।
: तिहां नरनारी वृंदकि जोइ ज्योतिषी व्यंतर इंदा । सुरो धवल दिइ आनंद रे पूता ।।२।। कुलवधू० ।
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