Book Title: Vasupujya Jin Punya Prakash Stavan
Author(s): Shobhna R Shah
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 30
________________ 44 २८५ तुं त्रिभुवनजन - मोद विधायी तुं मुझ नंदन त्रिजगधणी । तुं जव जाय तुं जगसुख दायक तव सुर २८६ सुरपति नारी हूलाई लडायो हूं पणि इंद्र तुं सुत रवि जायो तस दिनथी घरि पाय २८७ मात हुलावति चंद्र देखावति रयणमाल सुत गलि रोपी । चंद्र-बिंब मागई जब नंदन तव दीसइ प्रभु सिर टोपी ॥ ९ ॥ लालमणी रे ला० । २९० २८८ नीलकमल दल लोचन मोहन चंद्र वदन सुत हरि रूपी । होठ गुलाल रंग परि शोभित नाभि सुधारस भर कूंपी ||१०|| लालमणी रे ला० ॥ ... अनुसंधान- ३० २८९ जितसुरशाखि सुचीवरयुगलो वदन केतकीगंधो री । सत्तर देह मणिबंधो सकल कलागुण सिंधो रे ॥११॥ रणझणी घाट घणी ॥७॥ लालमणी रे ला० । प्रणमि धुणी । ठेलीइ कोडि मणी ॥८॥ लालमणी रे० ॥ - ढाल । राग - सबाख ॥ इहा पोसोई तुं ढाल 1 २९१ चलो पूता पाठशाला नरा जे ज्ञानहं विशाला । सहस अठोत्तर लक्खण धारक प्रकृति विचक्षण वाधइ रे । रूपई सुंदर विजितपुरंदर सर्व कामगुण साधइ रे ॥ १२ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only लालमणी रेला० ॥ शोभति ते जिम सुरतरुडाला सोभति नरा - निव-सभामां हि नाणिवाला । राजति जिम नवि नारीसिर टाला ॥१॥ चलो पूता पाठशाला ॥ लालमणी रेला० ॥ २९२ खोलीइ उरडे ताला । भरी लाइ कनक थाला भरी निपकवान थाली । प्रीसीइयु जिमइ साजन थाला ॥२॥ २९४३ भणि कंचण दोऊ साजन सार भूषणां देती । मत करो किसइ कूरी टाला ॥३॥ www.jainelibrary.org

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