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श्रीसकलचन्द्रवाचककृत
श्री वासुपूज्य जिन पुण्य प्रकाश-स्तवन
सं. डॉ. शोभना आर. शाह
प्रस्तुत प्रत १०.५ से.मी. लांबी अने २४.५ से.मी. पहोळी छे. उपर नीचे बने तरफ हांसियो आपवामां आव्यो छे. दरेक पानानी अंदर १२ थी १३ लीटीओ छे बन्ने बाजु लखेली प्रत छे. पृष्ठ क्रमांक जमणी बाजुओ लखेला छे. ला.द.भारतीय संस्कृति विद्यामंदिरमांथी प्रत क्रमांक ८०६ ४ना आधारे आ प्रत तैयार करी छे. हांसियामां खूटता शब्दो उमेरेला छे.
प्रस्तुत प्रतमां कुल २० पृष्ठ छे. प्रतनी भाषा - जूनी गुजराती छे. तेनो लेख समय संवत् १७३८ वर्षे वैशाखवद एकम अने शुक्रवार छे. तेना लेखक वन्दावन अनहिल्लपत्तनपुरना चातुर्वेदी मोढ ज्ञातिना छे
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आ प्रतमां कुल ५९ ढाळ छे. प्रत्येक ढाळनी साथे तेना ढाळ तथा राग आपवामां आवेला छे. ढाळ देश्य भाषामां छे. कुल कडी ४८५ छे. कर्तानो परिचय :
आ स्तवनना कर्ता वाचक सकलचन्द्र गणि छे. स्तवननी छेवटनी कडीमां तेओ पोताने 'सकलमुनि' तरीके ओळखावे छे. तपागच्छमां श्री आनन्दविमलसूरिनी पाटे विजयदानसूरि अने तेमनी पाटे हीरविजयसूरि थया, तेमना शासनमा पोते आ रचना कर्यानुं छेल्ली ढाळमां निर्देश छे. बावती (खंभात) नगरमां थंभण पार्श्वनाथना सांनिध्यमां वि.सं. १६२८ (वसु श्रवण हृदयांबुजे जीवं सूंरो) मां आ स्तवन रच्युं छे. कर्तानो सत्ताकाल १६मा शतकनो पश्चार्ध तथा सत्तरना शतकनो पूर्वभाग हतो.
श्रीसकलचन्द्रवाचककृत
श्री वासुपूज्य जिन पुण्यप्रकाश
॥ ॐ ॥ श्री गणेशाय नमः ॥ राग गोडी ||
ऋषभ अजित संभव जिनो | अभिनंदन सुमतीशो । पदमप्रभ सुपासोरिहो | चंद्रप्रभ सुविधीशो ॥ १२॥ ० ॥
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अनुसंधान-३०
चंदिइ सीतल जिन सिअंसो । वासुपूज्य जिणंद रे । नमो विमल अनंत धर्मों सांतिनाथ मुणिंद रे । कुंथु अर जिन मल्लि सुव्रत । नमो श्री नमि नेमि रे ।
पास जिनवर वीर जगगुरु । त्रिविध धुरि सुमरेमि रे ॥२॥ ३ नमी कर्मक्षय सिद्धनइ । तिम नमी आगमसिद्धा । ते गौतम प्रमुखा मुनी विभु-कुंअर तप सिद्धा
दृढप्रहारी तपसिद्धा ॥३॥ त्रू० । अति विसुद्धा सुद्ध बुद्धा नमी जिनना गणधरा । सिद्धि बुद्धि सुलद्धि धारक प्रणमीइ मंगलकरा ॥ पंच वर आचारपालक अट्ठ गणिसंपदधरा ।
पुण्यदिनकर-उदयकारणि प्रणमीइ जगि गणिवरा ॥४॥ ढाल । सरसति अमृत वसइ मुखि वाणी ॥ . राग - केदारो ॥
श्रीजिनवर-प्रवचनना वाचक । जे जगि वरति सुविहित वाचक । श्रुत वाचक दातारो । अढीयदीपना अनोपम मुनिवर । सकल जंतुना अनोपम हितकर ।
ए पद त्रिभुवन सारो । ते प्रणमीइ त्रिकालो ॥५॥ त्रू० । नाम गोअ सवण थविराणहो । . महफल भणि गुणावहो । वंदणं नमणं पडिपुंछणं । बहुपातक-संतति-मोछणं ॥६॥ जइ वि सक्ति नही तपदाणनी । चरण सक्ति नही जस दाणनी ।
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सकल सिद्धिसुखं जगि जो करइ !
पंचमंगल का नवि सो धरइ ॥७॥ ढाल । राग - आसाउरी
विहरमान जिन मंडलं समरीय मणि उल्हास । वासुपूज्य जिनवर तणु भणस्युं पुण्यप्रकाश ॥८॥ सशिकर सम शुचि देहना हंसगमनि श्रुतदेवि । तुं मुझ मति तुझ मयाकारी मुज वदनांबुज सेवि ॥९॥ वासुपूज्य जिन पुण्यप्रकासो सुणतां निजमति भावी । बहुभवसंचित पातक जातां माणीसि वली मनावी ! सुणी पुण्य पुन्याढरायनो संयम लेई प्रतिबुद्धो ।
श्री पदमोत्तर राजऋषीसो जिनपद फासति सूद्धो ॥१०॥ गाथा ॥ ११ सिरि वासुपुज्य जिनवर पुण्योदय कित्ति कुंडले सवणे ।
भविआण सुणताणं विलसति पुण्योदउ भवणे ॥१॥ राग - मालवीगोडी । १२ मंगलावती विजय राजति रत्नाकरमिव रत्नपुरं । जन तनु भूषण रयण कांतिभर रयणि विणासित तिमिर भरं ॥१२॥
मंगलावती. १३ पुष्करवर-पुष्करणि सोभित-पुष्करार्ध शुचि दीप वरे ।
तिहां बहु जीवित पुरवविदेहिं जिनधर मंगलदीप भरे ॥१३|| १४ मेरु शिखिर सम बहु जिनवर घर पुर नरनारी प्रमोदकरं ।
वापी कूप सरोवर मंडित बहु विवाहारी रत्नघरं ॥१४॥ तिहां सिरिवासुपूज्यजिना जीवो पद्मोत्तर नरनाथ वरो ।
दुर्जनदमनपरो अति चतुरो राजनीति सुगणाण धरो ॥१५॥ १६ सरणागत जिन वत्सलदाता सूरवीर जनजन जतन करो ।
निजभुजबल-बहु-साधित-जनपद विश्व यशोभर कीतिधरो ॥१६॥
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राग
ढाल
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राग
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—
गोडी
जग जीव मेलो
—
एक दिन राजसभा ठिउ अंगद सोभित बाहिं ।
गयांगणि जिम चंदलो हरि यम सुर तरु छाहि रे ॥१७॥
।
भुजबल संसीइ राउ रे पुण्य प्रसंसी सची विबुद्धि उपायो रे भुज बल संसीइ ॥१८॥
विमलबुद्धि मंत्री प्रतई राय भणि सुणि वात । नृपई अधिकं भुजबल जेणइ कीजइ रिपुपातो रे ||१९|| भुज० ।
अनुसंधान- ३०
वलतुं मंत्री इम भणइ सुणि तूं अम नरदेव ।
पुण्य विना भुज बल नही पुण्यई सुर नर सेवो रे ॥२०॥
पुण्य प्रसंसी | आंकणी ।
पुण्यई लछी घरि रमइ पुण्यइ तनु नीरोग ।
पुण्य इंद्री पडवडां पुण्यई वंछित भोगो रे ||२१|| पुण्य० ।
عد
पुण्यई सुभोजन रसवती पुण्यई सुसीली नारी ।
पुण्यई सुखभरि जीवीइ गज गाजि घरबारि रे || २२ || पुण्य० ।
पुण्यई भगता सुत सुता रूप भलूं सुख भोग ।
शोक नही घरि प्रभुपणुं प्रणमइ त्रिभुवन लोगो रे ||२३|| पुण्य० ।
पुण्यई पुण्या ढो हवो जगि अतुलीबल राय ।
तस पवित्रं चरितं सुणो ते सुणतां सुख थाइ रे || २४|| पुण्य० ।
वेइराडी ॥
पदमपुरं जग जाणी । सुरपुर सरिखुं अ ठाम रे ।
तिहां तपनो वरनायको दुरित समई जस नामई रे || २५ || पद० ।
एक धनावय सेठिउ तेणि गज आणीइड एक रे ।
ऐरावण सम आपीउ हरख्यो राय विवेक रे ॥ २६ ॥ पद० |
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२७. अरद्ध राज तस आपीउ बहु साध्या तिणि देस रे ।
नगरी महोत्सव आवीओ हस्ति दीइ उपदेसो रे ॥२७॥ पद० ।। २८ खटिकाखड लिई लिखइं गज इक भीत सिलोगं रे ।
नृप जन पुरि-जन देखता कोइ न लहइ अनुयोग रे ॥२८॥ पद० । श्लोक २९ अविज्ञातन्नयी(त्रयी?) सत्त्वो मिथ्यासत्वो लसद्भुजः ।
हा मूढ ! शत्रु-पोषेण किं मित्राणि दूष्यसि ? ॥२९॥ राग - आसाउरी || ढाल - त्रिभुवन पतिजि० ॥ ३० बहु बुधजन जगि पूछिआ पणि को न लहइ तस पारो रे ।
पारो रे जन पंगु न लहइ जलधी तणो इ ॥३०॥ ३१ मंत्री एक कहइ सुणो कोइ सुगुरु मिलइ नवि जाय रे ।
भावे तेन विणु एहनु पामीइ रे ॥३१॥ ३२ नरपति गुरु तेडावीआ आणंदचंद मुणिंदो रे ।
कंदोरे सो प्रवचन-सुरशाखी तणो रे ॥३२॥ ३३ श्लोकार्थं गुरु पूछतां तिहां गज प्रणमइ गुरु पायो रे ।
थाइ रे तिहां राजसभानई कौतुकां रे ॥३३॥ ३४ गुरु कहइ राजन सांभलो ए गज छइ चतुर विचारो रे ।
सारो रे जिम सुरपति घरि ऐरावणो रे ॥३४॥ ३५ कहइ तुझ तत्त्व मती नथी ए गज तो समकितधारी रे ।
सो रीए कह(इ) छइ मति करी आपणी रे ॥३५॥ ढाल - वइराही ३६ राजन ज्ञान धरो चित- भाई राजन ज्ञान करो। जुगि दुलहो सो हित दाई राजन दुढि ज्ञानवंतना धन जगिमाई ।
ज्ञानी शुभ गति जाई ।१॥राजन० ।
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अनुसंधान-३०
३७ अरिहा देव नमो थुणि अरिहो अरिहा सिरि करि देवो ।
अरिहा मंगल शरण करावई करि अरिहाणं सेवो ॥२॥ राज० । निस्संगी गुरु सुविहित लिंगी उपशम संयम रंगी ।
तस वंदण उपदेस सुणीनई तुं भव समकित संगी ॥३॥ राज० । ३९ संगी देव तजे तुं राजन गुरुपणि तजे संयोगी । गुरु नमि संयम योगी धर्म धरे चित्त जिनपति भाखित ।
इम समकितहो भोगी ॥४॥ राजन० । ४० मिथ्यामतिउ परं तन-रोगो मिथ्यामति चित-रोगो ।
मिथ्यामति अति-अंधारुं मिथ्यामति विष सारुं ॥५॥ राजन० । तिण अवतार सफल जगि कीनो जिणइं तत्वई मति वासी ।
लक्षण दूषण भूषण जाणी विरति लीइ गुणरासी ॥६॥ राज० । ४२ मिथ्यामति असती जन संगति पापी पोष न कीजइ ।
पुण्यखेत धन पोषी राजन दया अनुकंपा कीजइ ॥७॥ राज० । ४३ इधणि आगि न होवति पूरो जलधि नदी नइ लेखइ ।
तिम सुखि भोग जीवन ही पूरो निजहित करि गुरु शीखइ ।।८। राज० । ढाल - नेमि जिनेसर राजीओ ।। राग - रामगिरि ४४ तपनो राय संवेगीउ निज चितनइं कह चेत रे ।
गज तुझ पुण्यइ रीझवी मिलिउ गुरु हित हेत रे । आव्यउ आरय खेतर शुभनइं एह ज खेत रे । ऊघाडो चित नेत रे करि तुं मुगति संकेत रे आलिं नर भव हारीओ ।
हूं अविवेकी राय रे । ॥१॥ ४५ राजई रीद्धइं ही मोहीओ मोहई मुझ दिन जाई रे । रवि शशि जीवित खाइ रे पुंठि जरा-गज थाइ रे ॥२॥
__ तपनो राय संवेगीओ
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४६ लीलापान अंगुठडइ यम मानइं सुख बाल रे ।
तिम युवति सुख भंतिमां । जाइ मुद्धा मुझ काल रे ।।३।। तपनो. सुरसुख खीणां जो देखीइं नरसुखनी कुण वात रे ।
विविध उपद्रवई भव भरयो दीसइ खिण सुखपात रे ॥४॥ तपनो. ४८ गजवर लिखित सलोकनो भाव धरी गुरु पासि रे ।
राजा उपशम वासीओ चित दिइ संयमवासि रे ॥५॥ तपनो. । सीख दिइ निज राजनी नही मुझ राजस्युं काज रे । हस्ती जस सिरि ढालस्यइ कलसो सो तु तुम्ह राज रे ॥६॥ तपनो० । धन शुभ खे. रे वावरी राज तजी सब भोग रे । संयमधरी महोत्सवई साधइ संयम योग रे ॥७॥ तपनो० । शासन हूई प्रभावना धर्म मिल्या बहु लोक रे ।
वीनवीओ गजराजीओ राजा कोई विलोक रे ॥८॥ तपनो० । ५२ हस्ती राजनां विहवलां करि धरि वनमाहि जाइ रे ।
सूतां नर शिरि ढालीओ जय जय पुरिजन गाइ रे ॥९॥ तपनो० । राग - श्री राग तथा गोडी । ढाल - स तस्सेद (सतरभेद ?) पूजा । ५३ देखो सुअणो पुण्यविचारी वनि सूतो पणि पूरव पूण्यई ।
हूओ राजनो धारी ॥१॥ देखो सुअणा पुण्य विचारी । आंचली । टूटा पंगुल सरिखो देखी सो नर तनु संकोची । गजवर राज दिउं तस देखी किंस्युं करि जन शोची ॥२॥ देखो० । राजिभिलाषी रह्या जे हूंता, जे जे खत्रीपूता 1
ते निरास होइ जन हसिआ जई निज घरि सूता ॥३।। देखो० । ५६ धनावहो सो राय न मानइ अद्ध राजनो धारी ।
तिणि संग्राम रायस्यु कीनो नृपदल शस्त्र निवारी ॥४॥ देखो० ।
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अनुसंधान-३०
___ जो पुण्याढ्यराय नही मो(मा)नइ तस शिर वज्र लुणेसि ।
इम आकाशि सुणी सुरवाणी जण पुण्याढ्य थुणेसी ॥५॥ देखो० । ५८ धनावहो पणि अंबर-वाणी सुणीय राय-पगे लागो ।
देश देश पुण्याढ्य रायनो यशपडहो जइ वागो ॥६॥ देखो० । ५९ इंद्रसरीखो राज करतई राय भण्यो वनपाल ।
तपनराज ऋषि तुझ वति अम्हे दर्शन दुरितां गालइ ॥७॥ देखो० । ढाल - सीमंधर जिन त्रिभुवन भानुनो । अथवा चंदाइणिनो । ६० पुरि तिणि ज्ञानी चंदो उग्यो ।
तिण जन-तिमिर गयो अति-सुगो । गुहमुखि अमृत पीइ जन झूक्यो । तिणि मिथ्या-रोगि जन मूक्यो ॥१॥ राजऋषि सोइ धर्म सुणावइ । भविक सभानां पाप हणावइ । इति वचनामृत राय सुणीनइं । तस वनपाल दरिद्र हणीनई ॥२॥ हरखइ गजवरस्युं गुरु वंदइ । गुरुदरिशनि निजपाप निकंदइ । चतुविाह]धर्म सुणी गुरु पासि । भूपति धरमई निजचित वासि । शु(सु)गुरूवचनां सतत उपासई ॥३॥ कोइ जीव विवहारीय-रासी ।। जीवायोनि तिणि लाख चउरासी । भमता वार अनंता वासी ।
शठ न कहइ हित आप विमासी ॥४|| ६४ जे जगमा छइ वस्तु विनासी ।
तस कारणि मूढातिप्रयासी ।
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पाप जीव मरइ विषयासी ।
नरकि वसइ नर अभिषयलासी ॥५॥ ६५ अति होइ जगि अमिलवि सूनो ।
जस मोह लागो विभव वधूनो । जइ पणि जीव होइ अतिजूनो । तो हइ पणि रहइ माथा सूनो ||६|| चउगति जीव तणां दुख चिंती । चतुरा धर्मारामिति रमंति । भव अरण्यमां ते न भमंता । विषयविषं जगि ते हू विमंता ॥७॥ तपन-राजऋषिनी ए वाणी । सुणिय नराधिप शुभमति आणी । निजशरीर संकोच निदानं ।
पूछति सुगुरु ज्ञाननिधानं ॥८॥ ढाल-राग देशाख । चंद्रिका चोपड्यो चित ठरइ । अथवा धन समता शुचि
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लता ।।
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सुणिह तुं एक लखमीपुरं । हता मित्र तिहां तीज(न) रे । चउद वरसाति प्रेमालूआ । कुमारा कुलई पीनरे ॥१॥ पुण्यवंता जगे ते नरा जण्या तेह प्रमाण रे । जेहनइं साधुनां दरिशनं दिइ साधुनइ मान रे ॥२॥ पुण्यवंता० । एक दिनि गहनि रमता गया भला क्षत्रियपूत रे । वामण राम संग्राम भला सुणो तेहy सूत रे ॥३॥ पुण्यवंता० । निजशरीरइ निरहो मुनी विगतपाप निसंग रे ।। वामणि काउसगि देखीओ हवो वंदण रंग रे ॥४॥ पुण्यवंता० ।
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अनुसंधान-३० ७२ वामन कहइ सुणो बंधवा छते धर्मनइं योग रे ।
जे नरा साधुनई नवि नमइ ग्रह्या कुमती निरोगी रे | पुण्यवंता० । ७३ संयमी साधुनि दर्शन जस ऊपजि तोष रे ।
निज घरि शक्ति भगति करी करइ पात्रनु पोष रे ॥६॥ पुण्यवंता० । ७४ इम कही वामनि वंदिओ पड्यो वामन पूठि रे ।
मुनि परसेदनो बिंदुओ जोइओ चुअज ठिदे ॥७॥ (?) ७५ कंटक मुनितणई लोचनई कही आवीओ पइठ रे ।
नयणथी पणि रे खटकइ घणुं एतो वामण दीठ रे ॥८॥ ७६ बंधवा कंटको काढीइ निज पास स्युं एह रे ।
हुं अटारो कृतांतई करयो अति वामणो देह रे ।।९।। ७७ राम कहइ हुं पशु परि थई चडी तुं मुझ पूठि रे ।
कंटको काढी तुं वामणा निज पुण्य न ऊठि रे ॥१०॥ ७८ बाहिं संग्रामि अवलंबीउ चडी रामनी पूंठि रे ।।
वामणि कंटक तु काढीओ हवि सर्व मनि तुठि रे ॥११॥ वामणि कंटको काढतां मुनि तनू मलै दुरगंधि रे । व्याकुलि अंग संकोचीउ पड्यो अशुभ शुभ बंध रे ॥१२॥
पुण्यवंता जगि ते नरा ॥ ढाल-राग- आसाउरी ॥ जिनवर स्युं मेरु चित लीनो-ए ढाल ॥ ८० मुनि निकंटक लोचन करी बाल्यो जातिगारव इम चडीउ रे ।
मुझ खत्री विणुं ए कुण काढति बंध शुभाशुभ पडीओ रे । वेयावचादिक शुभ फल दायक सुकृत करी मद तजीइ रे । अतिकढिआ साकर रस सरीखो । शुभ अनुभोगो भजीइ रे ॥१॥
मुनिनि कं. । ८१ कंटकस्युं आपण उद्धरीओ भवसमुद्रथी जीवो रे ।
इति सुमित्र प्रति वामण बोल्यो एह पुण्य चिरंजीवो रे ॥२॥ मुनि० ।
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stional
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८२ हसति राम कुमर पणि बोल्यो हूं पशु परि तुम्ह कीनो रे ।
कहइ संग्राम रामनि हसतां हीन फलई शुभ दीनो रे ॥३॥ मुनि० । अनुक्रमि ते निजजीवित पाली सवि परलोक पहुतारे ।
राम-जीव तुझ हस्ति हुईनई तुम्ह तो मोहिं पूता रे ॥४॥ मुनि० । ८४ सो संग्राम जीव तपनो हुँ राजऋषि तुझ मिलीओ रे । तुं वामण निज जीवित पाली सुणि तुझ जिम भव फलीओ रे ॥५॥
मुनिः । ढाल - चेतन सांभलि ॥ राग - गोडी ॥ सासनादेवीय पाय पणमेविय-ए ढाल । ८५ राजन सांभलि तुं निज भव कजि जेणि तुं करम संकोचिउ ए ।
बहु धनवंतीय पुरी अवंतीय जन भरि पुरजन सुखकरिए ॥१॥ ८६ तिहां सुबाहु सुबाहुअ नर नायको राज करि अतिलोभिओ रे ॥२॥ ८७ तस इक किंकरो हीन-जातीय-कुलो छत्रनो धारक किंनरो ए ॥३॥
त्रोटक० । ८८ धरणी एक तस तरुणी हरणी नामई कूखई अवतरयो ।
सोइ वामण जीव तेणई सुपन लखमीनो धरयो । दोहलो रत्नाकर सुपानि अतिहिं दुःखभरि पूरीओ।
सुत जण्यो तेर्णि रूप सुंदर राज लक्षण पूरिओ ॥४॥ ८९ नामई सो सीदत थाप्यो रायनई बाध्यो सो मनि नवि गमइ रे ।।५।। ९० रायना मूंकीया घायक चूकीया मरण काजि तेणि जाणीआए ॥६॥ ९१ मरणना भय तणो ताणीओ निशि निज प्राणस्युं श्री दत वनि गयो रे
॥७॥
९२ भूख्यो तरस्यो सातमि वासरई तरुतलि प्राणधारणि रह्यो रे ।।८।।
त्रोटक ९३ ते रह्यो तरुतलि अतिहिं भूख्यो भख्यउं फल अणजाणीउ ।
साधु मल दुर्गंध पूरव कमि तुझ तनु ताणीउ ।
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ढाल-राग- देशाख
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तरुतलि तुं सोडिताणी उंघि सूतो घोरतो । हस्ति आवी राज दीधुं विचरि कर्मह चूरतो ॥ ९ ॥
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यथा गलिय - बलदीई रथ न चालइ | तथा तुझ शरीरई किरिया न चालइ ॥३॥ यथा नव परिग्रह विना घर न चालइ । तथा तुझ शरीर विहारो न चालइ || ४ || यथा सिंधु जलवासु विणु नाव न चालइ । तथा तुझ शरीरइं समासन न चालि ॥५॥ १०० यथा शासनं साधु विणु नैव चालइ ।
तथा तुझ शरीरइं वेयावच्च न चालइ ||६| १०१ यथा आजीविका आलसू (सू) खा न चालइ । यथा जूठ बोला प्रति कुणि न चालइ ॥७॥ १०२ यथा दान पुण्यं विना यश न चालई । प्रतिलेखनादिक तथा तिं न चालइ ॥ ८ ॥ १०३ यथा गुरु विना पठन-पाठ न चालइ । यथा पंच भूतं विना जगि न चालई ||९|| १०४ यथा आहार निहारविणुं तणुं न चालइ । तथा वंदणावर्त्तपणितिं न चालई ॥ १० ॥ १०५ यथा पंचनिश्रा विना गुरु न चालइ । तथा तिं गुरुकाय विनयो न चालई ॥ ११ ॥
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सुणि निजसरुप चिति भावीउ रे बहु उपशम रायनई आवीउ रे ॥१०॥ भवतारणी तपन मुनिपासइ नामइ तपस्या जेणि सर्व सुख शांति
जाई ॥ १ ॥
भणि तपन वर राजऋषि तुझ शरीरई । विसकोव छइ जिम सदा फल करी रई ॥२॥
अनुसंधान- ३०
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१०६ तुं तो चरम शरीरीय मुक्तिगामी ।
तेणि देशविरति सुगुरुपाश पामी ॥१२॥ १०७ गजराउ जाण जे अवधिनाणी ।
सुदृष्टिसु साधार्मिको बुद्धि आणी ॥१३॥ १०८ सुपुण्याढय राजा सुहस्ति उपासई ।
सदा देव गुरु धर्मास्युं नगरवासि ॥१४॥ १०९ सो ई तए न मुनिराज प्रतिबोध देई ।
विहारो करइ तिहां बहु लाभ देई ॥१५॥ दूहा ॥ ११० ग्रहणगे रविचंद्र विणु, काल न वरतिइ कोइ ।
तिम नरनई पठु पिंड विणु मुगति म साधइ कोइ ॥१६॥ राग - परजिओ अधरस ।। प्रणमी तुम्ह सीमंधरुजी नरसेर भेढीउ साहसवीर
ए ढाल । १११ विमलबोध मंत्री भणइजी सुणी पदमोत्तर राय ।
गजसरूप चिति भावतांजी बहु भव पातक जाइ ॥१॥ ११२ सहोदर तुझ मुझ पुण्यइ योग । कहइ पुण्याढ्य नरेसरोजी ।
गज ल्यो भोजनभोग ॥२॥ सहोदर. । ११३ गज साधर्मिक लेखवीजी गज बहु कीजइ सार ।
नृप राजरुद्धि मोहिओजी कीजइ भगति अपार ॥३॥ सहोदर० । ११४ आधोरण सब वारिआंजी गजनि बंधन-रोह ।।
त्रिकाल जगनई आरतीजी अति माहोमाहि मोह ॥४॥ सहोदर० । ११५ गज जयणास्युं संचरइजी जीवदयानि हेति ।
अलपाहारी उपशमइजी कहइ निज चेतन चेति ॥५॥ सहोदर० । ११६ चेद्रअ-परिवाडी करीजी सिंहसहित गजराज ।
धर्म पर्व सवि साचवइजी गजनी सब बहि लाज ॥६॥ सहोदर० ।
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अनुसंधान- ३०
इक दिन तस गजनई चढ्योजी अवि दुर्धर तनु ताव | राय सुणी गज पूछिओजी कुण तुझ दुखनो भाव ॥७॥ सहोदर० ।
औषध विविधा वैधनांजी कीजि जीवनकाजि ।
गज निज मरणं जाणतोजी कीधुं अनशन काज ॥८॥ सहोदर० ।
अक्षर लखी जणाविउजी नृप म करिसि मुझ मोह |
पुर बाहिर जाइ संठिओजी तिहां बहु अनशन सोह || ९ || सहोदर० ।
ढाल आवो आवो सित्रुंजइ जईए ॥
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अनशन इम आराधीइ कहइ मुझ खामण तेह रे । जे मई त्रिविध विणासिआ त्रसनई थावर जेह रे ||१||
१२१ पंचाचार विराधीया । मैं भवि भमतां जेह रे । मिच्छा दुक्कड ते हज्यो शरण जिनादिक तेह रे ||२|| अनशन० ।
अनशन इम आराधीइ ।
१२२ पाप अढार जे मई कऱ्यां भवि भवि भमतां जीव रे ।
जीव हण्या त्रस थावरा करता अति दुख राव रे ||३|| अनशन० । १२३ जगि त्रस थावर नई शस्त्राधिकरणुं देह रे ।
मुझ भवि भमतां जेहवुं मइ वोसिरिडं तेह रे ||४|| अनशन० || १२४ मुझ त्रस थावर जीव तुं धर्मोपगरण देह रे ।
भवि भमतां जगि जेहवुं हुं अनुमोदु तेह रे ||५|| अनशन० ॥ १२५ अनशन पाली गज गयो सौधरमई सुर लोगि रे ।
तिहां जिनघर जिन पूजतां हरख रमइ सुर लोग रे ||६|| अनशन० || १२६ राजा गज - दुखि मोहीओ रुदन करइ अति - शोग रे ।
गज बंधव मुझ विणुं गयो वारइ पुरजन - लोग रे ||७|| अनशन० || १२७ दिइ दरिसन मुझ आपणो तुझ विण मुझ न समाधि रे । असमाधि रे ||८|| अनशन० ॥
गज- देवो अवधि सुणी टालइ नृप
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१२८ गज- - देवो तिहां आवी ओ दिइ नृपनई आलिंग रे ।
सुरतरु इक फल आपीओ नरपति अति मन रंग रे || ९ || अनशन० ॥ १२९ तनु संकोच विणासगं निशि नृप करइ फलभोग रे ।
इम कही गज सुरपदि गयो राय हुओ नीरोग रे ॥१०॥ अनशन० ॥ ढाल चंदन उत्कंठा सुरपुरी ॥
राग
कल्याण ॥
१३०
—
-
गज अनशन ठामि जिनतणो प्रासाद करावी बहुगुणो । गज अन० । तिहां जिन प्रतिबिंब सरूपस्युं नृप शुभ परिणामई मन वस्युं ॥१॥
गज अन० ॥
१३१ जगि जे त्रिदंड योगइं करी चडी नृप जीवइ कर्म्मतती घडी । गज० । जे जिन प्रदेशस्युं अतिजडी घनघाति तीअ तेहमां वडी ||२ गज० ॥ १३२ अति विषमी ते जिम उंटडी भव भमतां जे नृपनई नडी । शुभ ध्यान गगनि भर तडतड उछलवा लागी जिम दडी ॥३॥
गज० ।
१३३ गज पर नरपतिथी जावा घडघडी ते कर्मतती होइ सांकडी । संध्याई जिम कज - पांखडी लय लागो जब नृप बहु घडी | ||४||
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गज० ।
१३४ तिहां खिपकश्रेणी नृपकर चडी तब कर्म राशि त्रूटी पडी । नृप हुई अंतगड केवली । निर्वाण नम्युं सुर तिहां मळी ||५|| गज० ॥ १३५ इति विमलबुद्धि मंत्री कह्या जिम न्यानी गुरुमुखिथी लह्या । पुण्याढ्य राय - चरितं सुणी । प्रतिबुद्धि राजसभा घणी || ६ || गज० ॥
ढाल
राग केदारु ॥ सरसति अमृत वसि मुखी- ए ढाल ॥
१३६ एक दिनि मणि सिंहासन बइठो जिम रोहणगिरि दिनकर पइठो ॥१॥
-
-
१३७ पदमोत्तर नरनाथो शोभति जिम गयणंगणि चंदो ।
राजसभा देतो आणंदो बोलति उपसम कंदो ॥२॥
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अनुसंधान- ३०
१३८ व्रत विचार व्रतनां फल जायां पूछइ राजा कहो मुझ साचां । विमलबुद्धि मंत्रीशो ||३||
१३९ विमलबुद्धि मंत्री तिहां बोलइ राजन व्रतनां फल कुण तोलइ । सुरगिरि कुण तोलइ ||४||
30
१४० मुनिनि कंटकिउ जिणि लोचनं । तस फल चहवु भव मोचनं । विशद संयम जइ प्रभु पालि तिणि कां न विमुक्ति निहालइ ॥५॥
राग - मल्हार || एक वरसीजी ऋषभ करइ - ए ढाल ॥
१४१ इणइ अवसरि रे पंचवरण जगि विस्तर्युं । अजूआलू रे नगर मांहि ते अति भयुं ॥१॥ त्रोटक
१४२ तिहां तेज - भरिडं लोक देखइ गगनिथी बहु उतरि । सुर विमाना मधुरगानां नगर वनमां संचरइ । देव देवी तणां भूषण रयण जे चित्रविचित्र रे । तेणि अचिरज नगरजननां नयन होइ पवित्र रे ||२||
१४३ इणि अवसरि रे वनपाल नृप वीनव्यो । तुझ वनमां रे मुनिवर आव्यो सुरि नम्यो ||३|| त्रोटक
१४४ सुर नम्यो कंचण सहसदल वर- कमलि बइठो सोहइ । तिहां मिल्या बहुविध भाविक नयनां चंद्रनी परि भोहए । सुवज्रनाभ मुणिंद केवलनाण दिनकर तम हरइ ।
तस नमइ मुनिनि नगरि आवइ ते नरा भवदुःख तरइ ||४|| १४५ सुणी हरख्यो रे राय दिइ तस भूषणां । तस हरिआं रे रायई दरिद्र दूखणां ॥ ५ ॥ त्रोटक
१४६ दूखणां हरतो राज चिन्हह अति महोत्सव वंदीउ । वज्रनाभ केवली चरण वंदी राय अति आनंदिओ । वज्रनाभ मुणिंद सुगुरो आज धन मुझ वासरो । हूओ हूति: पापदर्शनि हूओ पुण्यउपासरो ||६||
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ढाल सरसति अमृतनो ॥
राग
केदारो ॥
१४७ तिहां प्रणमती सुरीय धुणंति वज्रनाभ मुनि सुगुण गणंती ।
कहइ जग-जीव - दयालो ॥१॥
w
-
१४८ अमरसंघ आवइ इक जावई देखी नरपति अचिरज पावइ । गुरु महिमा चित्त भावइ ||२||
त्रोटक
१४९ पुर - नरा तिरिआ तिहां मोहिआ । सुगुरुनादि रह्या निहा रोहिआ । तिहां मिल्या भविआ बहु देशना । ते सुणइ गुरु अमृत देशना ॥३॥ १५० वाघ सिंह जरखादि सीआला । जे हूंता जगि अतिविकराला । तेपि हूआ सुकुमाला ॥४॥ १५१ वानर मांकड़ रानबिलाडा ।
गज दीसई दंतूसलि जाडा । दीसंति सूअर काला ॥५॥
त्रोटक
१५२ रिंझरोझ ससला मृगला मिल्या | चीतरा नकुला हय गोधला । अरिहधर्म्म सुणइ श्रवणंजलि । ते पिबंति मुदंति गुरु मिलइ ||६||
ढाल सामि सुहाकरनी ।
१५३ मुनिवर जाण्यउ त्रिभुवन दीवडओ । बारम जिनवर ए नृप जीवडो ॥ १ ॥ त्रोटक
१५४ एवडु मोटा जीव जाणी गुरु करइ गुरु देशनां । संवेगजनकी कथा कहइ -- भवि सुणइ बहु-देशनां ।
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अनुसंधान-३०
दानशील तपो जगमा भावनां जेणइ अणुसरी ।
संसार सागर सुणो भविआं गया ते सुखि उतरी । १५५ तरिओ दानिय महति सागरो । . तिम तपि तरिओ संवर मुनिवरो ॥३॥
त्रोटक १५६ सनतकुमारो सील तरिओ तरी सिणगारसुंदरी ।
भावि चंद्रोदरो वरिओ गुरइं च्यार कथा कही ॥ अथिर तनु धनु राज यौवन युवति भोगा भंगुरा ।
विविध रोगई विविध शोकई विविध दुखिआ किंकरा ||४|| १५७ राजन सुणि तुं जगि जे दोहिलां । ते तई पाम्या पुण्यई सोहिला ॥५।।
त्रोटक १५८ सोहिला पाम्यां पुण्य योगई पंच इंद्रिय पडवडां ।
मनुज भव शुभ देश शुभ कुल देवगुरु शुभ वचनडां । आराधि तुं ए भव महोदधि तरण कारणि प्रवहणां ।
विविध भवमां जीव कीधा जननी-सुख(त) सगपण घणां ॥६॥ १५९ बोल्या नरपति गुरुवयणां । जननी जायो गुरु तुं वर धणी ॥७॥
त्रोटक १६० धणी तुं मुझ होइ मुनिवर देहि दीख्या आपणी ।
घरि नई निज राजचिंता पुत्र थापी पुर धणी । भणइ तव गुरुराजराजन, धर्म विलंब न कीजीइ ।
धम्मि आलस करइ जो जगि तेहि दुर्गति लीजीइ ॥८॥ ढाल - राग - गढडी ।। १६१ दिइ दिइ दरिशन आपणुं निज सुत राजधणी करी ।
छंडी सब संयोगो दिख्या-नाव जलनिधि तरी । छंडी अंतिम सब भोगो ||१||
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त्रोटक
१६२ भोग छंडी बहु महोत्सवि लेइ दिख्या गुरुतणी । संवेगि गुरुकुलवासि विनयई एकादश अंगी भणी | संवेग वास्यो देश विचरी विषय- इंद्रिय वशि करी । वीस थाव (न) कि रमइ मुनिवर शुद्ध करतो गोचरी ॥२॥ १६३ राजऋषि पदमोत्तरो फासति अभिनव सूरो । विंशति थान मंजल चरण कारण गति पूरो ||३|| त्रोटक १६४ चरण पूरो मनि अंकुरो प्रथम थानक जिनतणी । भाव - पूजा भगति करतो प्रणमतो जिन गुण थुणी । इंद्र चंद्र नरेंद्र पूजा द्रव्यनी अनमोदतो । सकल जंतु दयालू जिनना गुण समुद्र विलोलतो ||४||
१६५ बीजि थानकि सिद्धनि ध्यान रमी मुनि राजो | त्रीज प्रवचन संघनी भगति करी बहु काजो ||५|| त्रोटक१६६ काज गुरुना करीइ चउथई भगति गुरु गुणगान रे । श्रुत वयो व्रतधर भगती पंचमइ तस मांन रे । सूत्रधरथी अर्थधरनई विशेषि बहुमान रे । थानक छच्चर करी श्रुतधर - भगति अन्नह पान रे ||६|| १६७ तपसीय- भगतीय सातमई अठमई अभिनव-नाणो । पठन गुणन तस चिंतनं नवमइ समकित ठाणो ॥७॥ १६८ नाणविनयो करइ दसमहं सर्व गुणमणिसार मई । षडावश्यक करइ मुनिवर एक चिंतइ ग्यारमई ॥८॥ १६९ बारमइ शुचि शील पालइ सर्व शुद्धाचारस्युं ।
शीलधर अवदानथि तन करइ मुनि विस्तारस्यु ||९|| १७० परिहरीय कुशील संगति सुशीलह संगति कारी सर्व थानकी रमइ मुनिवर अरिह भगति चित धरी ॥१०॥
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इति खट् पदी ।
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अनुसंधान-३०
१७१ एक खिण लव परमादमां न वसइ तेरमइ, थानइं विविध तप करइ चउदमइ । पनरमइ दि मुनि दानइं ॥११॥
त्रोटक १७२ दान विविधा दिइ मुनिनई, वेयावच करइ सोलमई ।
सतरमई निज अपद मुनिनइं समाधि दि अढारमई ॥१२।। १७३ ध्यान अष्टादशइ ए गुण वीसइ श्रुत भगती करइ ।
वीसमइ शासनप्रभावक मुनिश तीर्थ पदं वरइ ॥१३॥ ढाल - डुंगरीआनो । १७४ वीस थानक वर मंडलं नमी सूय परिवार रे ।
तीर्थंकर नाम तिहां बंधीउं निरतिचार आचार रे ॥१|| वीस थानक० । १७५ विहार भूमी पवित्री करी करी अनशन मासि रे ।
केवली वज्रनाभांतिके निजालोचना भासि रे ॥२॥ वीस था० । १७६ पंच आचारमा जे हवा अतिचार प्रकाशि रे ।
पंच महाव्रत ऊचरी वशी उपशम वासि रे ॥३॥ वीस था० । १७७ मुनि खमावइ गुरु-साखिस्युं जगि जीवनी रासि रे ।
पंच थावर त्रस जे हण्या, मिच्छा-दुक्कड तासि रे ॥४॥ वीसथा० ।। १७८ अशुभ परिणामई भमतां भवइ हण्या जीव जे चोर रे
राजमद धनमद हेतुमां हण्या जीव जे ढोर रे ॥५॥ वीस था० ॥ १७९ छाग मृग वाघ जे हण्या हण्या सीट सीयाल रे ।
मूषक मांजार सेहला हण्या सर्प विकराल रे ||६|| वीस था० ॥ १८० गोण वृषा हय उंटडा जरखां रोजडां नउल रे ।
माछला वानर मांकडा महीष मारीआ कोल रे ॥७॥ वीस था० ॥ १८१ मस्तकछेद सूली दीया हण्या होममां यागि रे ।
जीवता अगनिज बालीआ हण्या जीव सवादि रे ॥८॥ वीस था० ॥ १८२ जीवता खाल उखेलीआ हण्या वनपुर बांधि रे ।
गाम नगर जे बालीआं हणाव्या पसू वाघ रे ॥९॥ वीस था० ।।
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१८३ त्रिवधि मिच्छादुक्कडं खमार्बु मन साखि रे ।।
ते सवे जीव खमावीआ शरण च्यार मुख भाखि रे ॥१०॥ वीस था० । १८४ पापथानक सवि वोसिरयां सदा मोहनां हेतु रे ।
उपकरणां सवे वोसिरयां नवकार धरइ चित रे ॥११॥ वीस था० । १८५ पंच नवकार चिति राखता देह पंजिरं छंडि रे
प्राणत देवलोकई गयो लिओ सुर सुखपिंड रे ॥१२॥ वीसथा० । ढाल - अढीय द्वीपमा जे त्रिकाल पुरुषोत्तम हूओ आसनकए-ए ढाल । १८६ देवो पुण्य निधान चंद्रासासविमानमां ए सुर शय्या थी ।
ऊठि पुण्यविचार ज्ञानमा ए ॥१॥ १८७ उदयाचल जिम सूर उग्यो शोभति तमहरुए ।
देह अनोपम रूप तिम तिहां शोभति सुर वरुए ॥२॥ १८८ जय जय तुं चिरंजीव सामि हमारो उपनो ए ।
सेवक सुर परिवार कहइ कुण पुण्यइं जीवनो ए ॥३।। १८९ पुस्तक वी(वां)चीय सार सुर शुभ करणी आदरइ ए ।
जिनघर प्रतिमा रूप सत्तर भेद पूजा करइ रे ॥४॥ १९० नाटक सुर सुख भोग सुखसागरमां झीलता ए ।
काल न जाणइ देव जिम हंसा सरि कीलतां ए ॥५॥ १९१ जिन कल्याणक काज करीअ सुणइ जिनदेशनाए ।
नंदीसरवर यात्र महरिसी वंदइ देशनाए ॥६॥ १९२ केवलनाण-निहाण विणुं संयम नवि पामीइ रे ।
विणु माणव अवतार तिणि नरभव सुरि कामीइ ए ॥७॥ ढाल - त्रिभुवन जिनपति वीर । १९३ दीप असंखई वेढिउं धुरि जंबूअदीवो रे ।
जीवो रे जिहां आवइ छइ जिणवर तणो ए ॥१॥
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अनुसंधान-३० १९४ तिहां दक्षिण वर भरतमां रिपुजन-वद्धिअ-कंपारे ।
चंपा रे तिहां नगरी चंपावन घणां रे ॥२॥ १९५ ग्रहणं जिहां रवीचंद्रनइं पणि नवि कुणनी रातई री ।
तातई रे जिहां जन न पडइ मुनीजन तणी रे ॥३॥ १९६ संयम न जिहां केशनइं पाणि कुण नई वि अपराधि रे ।
बांधि रे जिहां घर न पडइ सूतडां रे ॥४॥ १९७ ग्रहगणवर तइ लगनमां कटक समासई विग्रह रे ।
विग्रह रे जिहां नवि वरति जनमां ए ||५|| १९८ थउट पडइ मादल सिरइं तिम वमय वरत गज कुंभि रे ।
दंभइ रे जिहां नवि वरतइ जिन धर्म मा रे ॥६॥ १९९ अगुरुवास जिन केशि रे जिहां आरति जिन धूपई रे ।
कूपई रे जिहां जड वरतइ पाणि नवि पुरीइ रे ॥८॥ २०० संकडतां युवतीकडइ जिहां वरतिउ पण नवि घरमां रे ।
घरमां रे दिसइ जिहां नवनिधि लोकनई रे ॥९॥ २०१ जिहां जिनभवन-पातकिनी जाणई नभ-शशिनइं चाहइ रे ।
चाटइ रे जगि जिन यश दिशि आंतरां ए ॥१०॥ २०२ तिहां वसुपूज्य नराधिपो देविंद सरिखो राजइ रे ।
वाजइ रे जिन घर-बार नफेरीआं रे ॥११॥ २०३ जांणि जिहां जिनधर्म नई जिनचैत्य धजा प्रचलती रे ।
चलती रे कवि लूंछणां रे ॥१२॥ २०४ नामि जया तस राणी रे धरि रूपई जिम इंद्राणी रे ।
जाणी रे सा शीलइ मरुदेवी जसी रे ॥१३॥ ढाल - प्रथम पूरव दिशि ।। २०५ सरस वरकुसुमस्युं सुरभिभर धूपिओ ।
गोपीउं वासघर कनक देहं ॥१।।
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२०६ विविध मणि दीपतो उद्योति मणिमंडिउं ।
खिडिउं बहु धनि वास गेहं ॥२॥ २०७ तिहां सुखि सुतीय शुभ दिशि सूतीय
सा जया श्रीवसुपूज्यराणी ॥३॥ २०८ जेठ शुदि नवमीय शतभिखा शशि त(ठ)इं ।
सुरघरि वीस सागर रमीए ॥४॥ २०९ चउदसुपनि जया कुखइं वरसीपमां ।
सुर मुगताफल अवतर्यो ए ॥५॥ २१० जांणीइं सुपनला तीर्थंकर मातनइं ।
जूजूआ भाव आपई कहइ ए ॥६॥ ढाल - घोडीनो ॥ सोभागिणी जाणे । २११ एणइ कारणि हुं आव्यो तुझ प्रथम सुपनमां ।
वरगुण लक्षण भाव्यो ॥१॥ २१२ मुझ सामीय इंद्रो तुझ सुत सेवक होस्यइं ।
ऐरावण गज हूं तुझ सुत पणि मुख जोस्पइ ॥२।। २१३ तुझ नंदन मुझ परि पंच महाव्रत धोरी ।
हूं वृषभो सुपनि बीजइ आवीओ जोरी ॥३॥ २१४ तुझ सुत नरसीहो मुझ परि मद-गज.. भेदी ।
तेणइं सीहो हूं छु त्रीजउ दुखुनो छेदी ॥४॥ २१५ मुझ चापल जास्याइ तुझ सुत पासि आवइ ।
हूं लखमी चउथी आवी मुझ जोउ भावि ॥५॥ . २१६ मुझ परि तुझ नंदन कीर्ति सुगंधी जाणइ ।
हूं विविध कुसुमनी माला पंचवखाणि ॥६॥ २१७ मुझ मंडल मित्रो तुझ सुत वदनं होसी ।
हूं पूनिम चंदो छठो जो निरदोसी ॥७॥
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अनुसंधान-३०
२१८ हणस्यइ तुझ पुत्रो मोह-तिमिरनइं जाणे ।
सुभगे सत्तम हूं आदित जो सुभनाणे ॥८॥ २१९ कुल धज तुझ नंदन होस्यइ आठमइ जोई ।
विणु पुण्यइं सुपनि नारि न देखति कोई ॥९॥ २२० न्यानादिक गुण-मणि-कुंभो छि तुझ कूखि ।
हूं नवमो कुंभो देखि म जाइ सि दूखइं ॥१०॥ २२१ जन तृष्णावेदी मुझ परि तुझ सुत देवई ।
तिणि पद्मोत्त(र) सरोवर दसमु तुं मुझ सेवी ॥११॥ २२२ सुत गुण रत्नाकर गंभीरो मुझ मित्र ।
सुभगे रत्नाकर एकादशम पवित्र ॥१२॥ २२३ दूर्लभ हूं जाणे अपुण्याजन नई देवी ।
तुझ पुण्यवंतीनइं सुरविमान मुझ सेवी ॥१३॥ २२४ तुझ सुत मुझ मित्र अनंता गुण मणिवासी ।
हूं सुपनइं आव्यो विविध रतननो रासी ॥१४॥ २२५ सुत कम्मिधणनि ध्यानागनिइ दहेसि ।
निधूम अगनि हूं सुपनई जो शुभवेसी ॥१५॥ ढाल ॥ राग-अधरस ॥ २२६ अनुपम सुपनला रे प्रिय मइ आज सुपनमई देख्यां ।
प्राणनाथ तस फल मुझ कहीइ एहवां कहीं न देख्यां ।।१।। अनुपम० । २२७ सुपन चउद देखी अति हरखी सुमुखी जिननी जननी ।
सुपनतणां फल प्रिय प्रति पूछइ अतुरति गजगति-गमनी ॥२।। अनुपम० । २२८ वसुधाधिप वसुपूज्य सुणीनई एणइ वचंनि अतिहरखइ ।
जया राणि ते अनुक्रमि कहितां राजा निजमति निरखइ ॥३॥ अनुपम० । २२९ निजमति सुपन विचारी बोलइ निज-धरणी प्रति भूप ।
अतुली-बल तुझ नंदन होस्यइ तस सुरपति-समरूप ॥४॥ अनुपम० ।
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२३० सुपननुं फल निसुणी राणी हरखइ हृदय भराणी ।
सुपन प्रमाण करोनि निज पदि जिन गुरु कथा कहि राणी ॥५॥
अनुपम० ।
२३१ नरपति सुपन पाठकि नइ तेडी पूछइ सुपन विचारो । अनुक्रमि सुपन पाठक आगलि राजा वदति उदारो || ६ || अनुपम० ।
ढाल - राग- धन्यासी ।
२३२ प्रथम एरावण दीठो नयणे अमीअ पइठो । बीजइ वृषभ उदारो दीठो अति सुखकारो ॥१॥ २३३ त्रीजइ मृगपति देखइ दर्शन दुरित उवेखउ !
चउथीथि लखमीअ सोहइ जिण दीठि जग मोहइ ||२|| २३४ पंचमइ कुसुमनी माल छट्ठइ चंद्र विशाल ।
सातमइ तमहरु दिनकर आठमइ इंद्र धज जयकर ॥३॥ २३५ नवमइ कलस मनोहर दसमई पदम सरोवर |
इग्यारमई सागर सुंदर बारमइ अमरनुं मंदिर ||४|| २३६ तेरमई मणिभर गगनि चउदमइ निरधूम अगनि । इति सुणी सुपनना पाट्ठी बोल्या निज मनि गाडी ॥५॥ २३७ राजन तुझ सुत होस्यइ त्रिभुवन तस मुख जोस् । नरपति अहव जिणिदो आव्यो ए कुलचंदो ||६||
२३८ राय दीइ बहुमान पाठकनइ बहु दान | पाठक कथन सुणावी घरणीइं घरि आवी ॥७॥ ढाल - सेहो ॥
२३९ धवल विमल सोहामणो रे पुण्यई विमला डोहला रे । जया सफला होइ धन्य जीव्युं जग मनोरथकां । न वि का नवि सफला होइ तो || १ ||
२४० पुण्य करो जगि जीवन ए, पुण्यई ए पुण्यइ मंगल होड़ तो ।
पुण्यई धरी मणि डाबडाए ॥२॥
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अनुसंधान-३० २४१ कुलवधु सीमंतिनी रे गाइ घरि सीमंत ।
जया अतिरूपई चडी देखीय देखीय मोहति कंति कि ॥३॥ पुण्यकरो०॥ २४२ नित नवां मंगलीक जोती करइ गर्भनो पोष । विविध तनु-मन-सुखइं रमती न विरलइ कुण पति-रोषकि ॥४||
पुण्यकरो० । २४३ मास पूरइ आवीओ रे मधुकर फागुण भासा किशन चउदसि निशा समए शतभिषा शतभिषा उडुपति वारतो ।।५।।
पुण्यकरो० । २४४ त्रिजगदीवो जाईओ रे जगि सुखी सब कोई । त्रिभुवन उद्योत कीधु नारकि नारकि पणि सुख होइ कि ॥६||
पुण्यकरो। २४५ त्रिदश आसन कंपीआ रे दश दिशी पि हसंती । हुती सलाख विमानघंटा नादिइ नादिइ ए सुर विकसंत कि ॥७॥
पुण्यकरो० । २४६ दिशा कुमरी छपन्न आवी सूतिक कर्म करंति । अरिह जननी पद नमी नई निज निज धर्म धरंति कि 11८॥
पुण्यकरो! ढाल - घोडीनो । २४७ माई धन्न सपन तुं जिन जननी जिन स्युं । अति भगति न्हवरावी सुर चीर मणिना अलंकार पहरावी ॥९।।
पुण्यकरो० । २४८ जिन जननी जनम धवल गवरावी ।
जिन रख्यापोट्टलि श्रीजिनकर बंधावी ॥२॥ २४९ धन तूं सोभागिणि लालमणी तई जायो ।
तुझ नंदन देखी अम्ह आणंद न मायो ॥३॥ २५० कल्याणककंदो तई जायो कुलचंदो ।
तई आव्यो जननई त्रिभुवन तमहरु दीवो ॥४॥
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२५१ तुझ लाडिकडो ए सुरगिरि जीवित जीवो । तुझ लालमणीनां पगलां इंद्र न लाडनं । तस मुकुट मणी मां हरसि लागी जाडि ||५|| २५२ बलीहारी करस्यइ इंद्रभवननी नारी ।
चउसठि सुरनायक सुत तुझ सेवक बारि ||६|| २५३ छपन्न दिशिकुमरी इम हरषिं गायंति । वरवीणा उभी जिन आगलि वायंति ||७|| २५४ जिन आगलि हरखी दिशिकुमरी नाचंति । जिन - जनम - महोत्सव करती शुभ याचंति ॥ ८ ॥
ढाल
२५५ सुणि जिन त्रिभुवन वेधनो गिरि शिर परि अवलाई । आसन इंद्रनां श्री जिन जन्मि हलावीओए || १ ||
२५६ हरि चडीओ अति कोपि अवधि जाणीउं । अम्ह जन्ममंगल आवीआं रे ||२||
२५७ सुरपति हवो प्रमोद सुरवर घंटना । नादि सुरवर मेलिआए ॥३॥
२५८ सुर वाहनि विमानि अंबर मारगिं । सुरनी कोडि भेलीआए || ४ ||
२५९ हरि जिनजननी पासि आवी प्रणमीय । जिनजननी कीरति करइए ॥५॥
२६० रयणकूखनी धारि हूं हरि मन धरे । तुझ सुतनो हुं किंकरो ॥६५
२६१ इम कही श्रीजिनराय लाइ करतलि । एक जिनबिंब तिहां धरइ रे ||७||
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अनुसंधान-३०
२६२ मेरु शिखर तुझ पूत जनम महोत्सव ।
करि निज दुरितां कापसिउरे ॥८॥ २६३ भय म धरिसि मनि मात बलतो तुझ सूत ।
लालमणी तुझ आपसिउं रे ॥९॥ २६४ पंच हूआ तिहां इंद्र छत्रादिक धरी ।
मेरु जमइ तीर्थजला रे ॥१०॥ २६५ सर्वोषधि गोशीर्ष बावन चंदनां ।
मेली ते सवि निर्मलाए ॥११॥ २६६ अठ्ठ सहस्र चउसठि कलसा जलभरी ।
चउसठि इंद्रइ न्हवरावीउ रे ॥११॥ २६७ विविध महोत्सव रंग नाटक सुर करी ।
रयण राशि उच्चारीओ रे ।।१२।। २६८ पूजी प्रभूनइं इंद्र अंग अलंकारी ।
प्रभु आगलि मणि-तंदुलइए ॥१३॥ २६९ मंगल आठ लिखंती अवगुण न वि पडइ ।
तिहां जिम बीबूं कांबइए ॥१४॥ २७० अमर गुण थुणंती प्रभु गुणगीतमां ए ।
गुंथी नंदीसर जईए ॥१५॥ २७१ यात्र करी सुर शृंगि प्रभु गुणगातीय ।
___ मुद माती निज पदि गईए ।।१६।। ढाल - क्षत्रिय कुंड सोहामणुं रे ॥ राग-देशाख । २७२ सुरि घरि करी कोडि बत्रीस लेखइ ।
वर कनक मणि रजतनी राय देखइ ॥१॥ २७३ सुरि प्रभाति दस दिवस चंपापुरीए ।
करी जनम महोत्सवइ सुरपुरीए ॥२१॥
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२७४ तिहां घरि घरि मंगल कुसुम माला ।
जिनपूजा वधामणां दिइ विशाला ॥३॥ २७५ पिता वासुपूज्योभिधान च थापइ ।
जेणि नाम ली घरइं जनो दुरित कापइ ॥४॥ २७६ सुरतरु परि श्रीजगदीश वाधइ ।
घरे नव नवि उत्सव विघन बाधइ ॥५॥ . २७७ जया सुरपतिइं पूजिउ पूत देखी ।
जाणे जनक-जननी हुई निनिमेषी ॥६॥ २७८ जया पूतनई हृदय ऊपरि जडावइ ।
सुत-चंदनई विविध गुणस्युं लडावइ ॥७॥ ढाल - देखण दइरी देखण दे || राग - आसाउरी ॥ २७९ लालमणी रे लालमणी इंद्र मुकुटको लालमणी । तूं मुझ पूर्ति लालमणी जीत्यउ पद नखरुचइ । तेरी कंति हणी ।।१।।
लालमणी रे० । २८० पूति जीति लाली तनु जाई जाणेश लाल गुलाल तणी । परिमल पणि उस जीति लगायु वदन गुलाल ए गंधि घणी ॥२॥
लालमणी रे० । २८१ बाल-तरणी किम मित्र किओ तई ।
तुझ तनु लाली बहुत गणी ॥ लालमणी रे० ॥३॥ २८२ कमल बंधु सोइ तुं जगबंधव ।
तेणइं जग तापइं अप्रीतिकरी ॥४|| लालमणी रे० । २८३ गंधि हुआ जासूणां ऊणां ।
जेणि तुझ कंतीय नैव थुणी ॥५॥ २८४ चोलमजीठीय खंडखंडीइ ।
जेणइ तुझ कीरति नेव भणी ॥६॥ लालमणी रे ला० ।
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२८५ तुं त्रिभुवनजन - मोद विधायी तुं मुझ नंदन त्रिजगधणी । तुं जव जाय तुं जगसुख दायक तव सुर
२८६ सुरपति नारी हूलाई लडायो हूं पणि इंद्र तुं सुत रवि जायो तस दिनथी घरि पाय
२८७ मात हुलावति चंद्र देखावति रयणमाल सुत गलि रोपी । चंद्र-बिंब मागई जब नंदन तव दीसइ प्रभु सिर टोपी ॥ ९ ॥ लालमणी रे ला० ।
२९०
२८८ नीलकमल दल लोचन मोहन चंद्र वदन सुत हरि रूपी । होठ गुलाल रंग परि शोभित नाभि सुधारस भर कूंपी ||१०|| लालमणी रे ला० ॥
...
अनुसंधान- ३०
२८९ जितसुरशाखि सुचीवरयुगलो वदन केतकीगंधो री । सत्तर देह मणिबंधो सकल कलागुण सिंधो रे ॥११॥
रणझणी घाट घणी ॥७॥ लालमणी रे ला० ।
प्रणमि धुणी । ठेलीइ कोडि मणी ॥८॥ लालमणी रे० ॥
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ढाल । राग - सबाख ॥ इहा पोसोई तुं ढाल 1 २९१ चलो पूता पाठशाला नरा जे ज्ञानहं विशाला ।
सहस अठोत्तर लक्खण धारक प्रकृति विचक्षण वाधइ रे । रूपई सुंदर विजितपुरंदर सर्व कामगुण साधइ रे ॥ १२ ॥
लालमणी रेला० ॥
शोभति ते जिम सुरतरुडाला सोभति नरा - निव-सभामां हि नाणिवाला । राजति जिम नवि नारीसिर टाला ॥१॥ चलो पूता पाठशाला ॥
लालमणी रेला० ॥
२९२ खोलीइ उरडे ताला । भरी लाइ कनक थाला
भरी निपकवान थाली । प्रीसीइयु जिमइ साजन थाला ॥२॥ २९४३ भणि कंचण दोऊ साजन सार भूषणां देती । मत करो किसइ कूरी टाला ॥३॥
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२९४ प्रभो गलिं मंदार माला भरो प्रभु तंबोल गाला । . गल तलवर मुगताफल हारा जाला ।
मस्तकि मुकुट स्युं लटकति कानि कुंडल ।
प्रभु तनुभूषण झाकझमाला ||४|| २९५ नालिकेरां भरोरी डाला खजूरां केलेई जाला ।
धउ साजन तु रीझा बाल गोपाला पंच शबद नीसाण वाजइ ।
गगनि तस नाद गाजइ तिलक करो सब साजन भालि ॥५॥ २९६ मेलीइ तिहां भूमीपाला दिइ धवलां देवी बाला ।
नाचति नाटक मेलति ताला देखति पुरजन कुमर ने साला ।
उत्सव छात्रह दीजति विहार विशाला ॥६|| २९७ श्याम जईसा मेघमाला पंथि गाजइ हस्ती काला ।
चपला करइ निज सुंडिना चाला । आगलि ति जाइ तुरकी तोसार माला । पुर नृप कुमरा देवा तिफाला
॥७॥
२९८ प्रभो तुं सब कला शाला बालको प्रणितां ही बाला ।
इति निपुण ति मुगधा महीपाला | चलितासन इंद्रो आई साजण सभा बोलइ प्रभु पंडित ।
तुंही किसी नेसाला ॥८॥ ढाल - जाननो विवाह अवसर आवीओ रे । राग - मारुणी ॥ २९९ इंद्राणी सारिखीअ आणी वधू प्रभुनि काजि राजवत्सल तणी ।
पदमावती रे प्रभु परणो आज कि कुलवधू किम कहेई । धरणी विणु घर नवि होइ घरणी घर-सार करेई ।
धरणी तिणि लोक चरेई रे पूता कुलवधू इम कहेई ॥१॥ ३०० विविध मोटा मांडवा रे कनकमणिना थंभ ।।
मत्रत पकवान करस्यं भोजनना आरंभ तो ।
: तिहां नरनारी वृंदकि जोइ ज्योतिषी व्यंतर इंदा । सुरो धवल दिइ आनंद रे पूता ।।२।। कुलवधू० ।
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३०१
आवीआ अणतेडीआ रे इंद्र घरणी साथि ।
वैमानिक तिहां देव आवइ श्रीफला फला धुज नइ हाथिकि ॥३॥
कुलवधू० ।
३०२ धराधव आमंत्रीआ रे आवीआ बहु साथि ।
वधामणा डांबहु तत्पावइ शोभति शोभति जिमणइ हाथिकि ||४||
कुलवधू० ।
ढाल
धनवणानो ।
३०३ श्रीवासुपूज्य नरिंद सुत दिनकर आव्यो । अनोपम एह वणकराव्यो सुर सम नारियां ए ॥१॥ ३०४ उढणि चूनडीए पहिरणि वरफाली ।
कंठि कुसुम धरी माल अंगि अलंकरी ए ॥ २ ॥ ३०५ कोकिलकंठी नारि मुखि धवल देयती । तेल सुगंधि कचोलि मर्दन कीजीइ ए ||३|| ३०६ मणि कनका सरि कासिमि वासुपूज्य पधारो । अम्ह मनि हर्ष अपार मर्दन कीजीइ ए ||४|| ३०७ जक्षसुकद्दम देह प्रभु ऊगद देई ।
मंगल लण्हवण करति तीरथ नीरस्युं ए ॥५॥ ३०८ इंद्रमुकुट वर खूप सिरि तुंगल कानि । मणिमुगताफलमाल भूषण कुसुमनां ए ॥६॥
ढाल
उलीलानी ॥
३०९ कुंकुम तिलक सिरि सुरपति भूपति सोहइ । वरघोडइ जग मोहर केसर छांटणां कीजइ ॥१॥
३१० अगुरुधूप तनु कीजइ साजन भूषणां दीजि । कुलधर चीर आपीइ पुर पहिरामणि कीजइ ॥२॥
अनुसंधान- ३०
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३११ बरगडवा गाय दीजइ बंदी मुख शिवबोलइ । नाटक होइ सुर तोलई जन उगट हस्त बोलs || सुरपति घांट घंघोलइ दान भरइ जन खोलइ ||३|| ३१२ प्रभु वरघोडो ए शोभइ वार्जित्र गगनि ए षोभइ । हस्तिघडा पंथि क्षोभइ हस्तिपुर - घर शोभइ ||४|| ३१३ ढाला ॥ जलहीनो हाथ जाडीयाए ।
त्रिभुवनपति वर गज चडी वरे ऐरावण सरखइ रोहणगिरि तरणी यम | देखीय त्रिभुवन हरख ||१|| ३१४ सुर नर कोडि परिवरय अंबर वार्जित्र घोषा । दान होइ बहु तोकणि लूण हरइ बहु दोषा ||२|| ३१५ छत्र पविशं सिरि ढलइ चमरीअ चामर ढालइ । चंद्र मुखी चांदरणीय पूंठिगीत न टालइ । धवल दिइ ते रसाल ॥ ३ ॥
३१६ पूंठि लामण-दीवडो - ए जिन अविहड होस् । मुझ परि झगमगतो प्रभु निजमतिं त्रिभुवन जोस्य ॥४॥ ३१७ राय कहइ वेवाहणि पइसी रहो छउ कां सूणइ । बाहरि वेग पधारी बहु मणिथालो रे गुणइ ||५|| ३१८ वासुपूज्य वर तोरणि ते मणि मोती वधावो ॥ अर्थ दिओ वरारायनहं पुंहकणडाई करावो ||६||
३१९ तव जिन सासू अधसमसा अर्घ दिई शुचि नीरई । वसुपूज्य वेवाहीय इंद्र रह्या सम तारई ||७||
ढाल ॥
३२० तोरणि जिनवर आवीआए सासूंइ श्रीजिन पुंहकिया रे । ताणीय श्रीजिन आपण बारणि मूंकीआए || १ ||
३२१ पाए सराव चंपावीउं रे जाणि अशुभनूं मूल कंपाविउ रे ॥२॥
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अनुसंधान-३० ३२२ कंठि वरमाला दिवरावीइ ए धनि बहु जेणि जिनकर धारीइ ए ।।३।। ३२३ माहिरामांहि पधारीइ ए मुख-जोअणि बहु जन आवीइ ए ॥४|| ३२४ वहूतणो हाथ-मेलावडो ए जाणे बहु वर-सुखतणो डाबडो ए ॥५।। ३२५ धवलडां सामसाहमा होइ ए तिहां अपछरा कोतिकडां जोइ ए ॥६॥ ३२६ इंद्र ते धवलडां सांभलइ ए तव घमरीय सर्व गावा मिलइ ।।७।। ३२७ वर मुख-जोयणि मणि ठाइ ए जिण दरशन सिंधु डोहि ए ॥८॥ ढाल - घोडीनो ॥ ३२८ इक धन धन रे । वसुपूज्य नरपति जस कुलि जिन आयो ।
जिणइ आव्यइ रे सुर नरपति घरिघरि घंटानाद वजाय ।।१।। ३२९ इक धन धन रे जयाराणी कूख जिणि ए वर जायो ।
जिणइ जिणनइ रे छप्पन्न दिशि कुमरीइ श्रीजिनगुणगायो ।।२।। ३३० एक धन धन रे पदमावति वहु जेणि जिन वरिओ ।
जिणिवरनइं रे चंपापुरी जनपद बहु धन भरिओ ॥३॥ ३३१ इक धन धन रे सुर-नरपतितति जिणि ए जिन थविओ ।
जेणइ थवतइ रे सुरगिरिशिर उपरि ए जिन न्हविओ ॥४॥
एक धन धन रे चंपापुरि जन जेणि ए नित दीर्छ जेणिए दीठइ रे । ढाल - अम्ह त्रिभुवननो पातक नीउ ए ढाल || ३३२ अगनिनइ दिउ प्रदक्षणा श्री जिन दक्षविचक्षणाए !
देवरावीए अग्नि प्रदक्षणाए केडि पदमा पि सुलक्षणाए ।
तिहां याचक दीजीइ दक्षिणाए ॥१॥ ३३३ सुरनरनायक साखिया ए जिनराजि ते पांचीय राखीयाए ।
इंद्रइ जिनवर भाखिया ए तुझ लाहूआ सब जगि चाखीया ए ॥२॥ ३३४ अतिमीठडा कुण नवि नांखीया ए तिणि त्रिभुवन लोक संतोषीयाए।
अनी टाढडा तई अम्ह आंखि आए ॥३॥
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ढाल - नीमालीनो । ३३५ चतुर चीतारडइ चीतरीए बे फूलनी मालईए ।
चउरीय मांडइ ठामि वरवधू तिहां पधरावीयाए । बे फूलनी मालनी मालइए । चउरीय मांडइ ठामि ।
वरवधू तिहां पधरावीयाए ॥१॥ बे फूल० ।। ३३६ जोइ छइ कौतुक गाम गाम पहिलूंअ मंगल चरती हुए ।
लक्ष तुरंगम दान ॥२॥ बे फूल ॥ ३३७ बीजूंअ मंगल वरतीइए । बे फूल० ।
हस्ती सहस्र परधान त्रीजू मंगल वरतीइए ॥३॥ बे फूल० । ३३८ जोडि मूल अलंकार चउथइ मंगल बेटडीए ॥४॥ बे फूल० । ३३९ वरतणी हो संभारि बेटडी मातपिता समोयीइ । बे फूल० ॥५।। ३४० सासू हर्ष अपार ॥६|| बे फूल० । ३४१ श्री वसुपूज्यनि उदय । बे फूल परणीय रूपिं उदार ॥ बे फूल० ॥७॥ ढाल - कंसारनो ॥ ३४२ जिन सासू निजकरि केलव्यो बहु मेवा मांहि मेलव्यो ॥१॥ ३४३ पसवा तिमजांचारुली तिहां लघु बदाम-मीजी मली ॥२॥ ३४४ कंसार लद्यग मल्यां मिरी तिणि अति प्रभूति पितली करी ॥३॥ ३४५ तिहां साकर एलादल भरी तेम द्राख प्रभृति शीली करी ॥४|| ३४६ अखोड खंड तिहां वलवलइ लघु चारवली स्यु तवि मलइ ।।५।। ३४७ तिहां चापट बइठी चारबी तिणि नालिकेर कुटवी छवी ।।६।। ३४८ धनसार रहूं तिहा मसमसइ सुरपति तेणि षांवा मनि वसई ॥७॥ ३४९ सुविशाल कनकमणिथालमां पीस्यो कंसार सुसीलमां ॥८॥ ३५० बइठां वरवहू जिमवा भणी रमीओ वहूस्युं जिन जगधणी ॥९॥ ढाल - आंदविआनो । ३५१ इंद्र इंद्राणीइं परवच्यो जिम राजइ सुरलोकि ।
तिम पदमावती नारिस्युं थविओ तिम पुरलोकि ॥१॥ परणी जिन घरि आवीआ मंगल गाइ छइ नारि ।
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अनुसंधान-३०
३५२ जनती करतीय लूंछणां वाजां वाजइ छइ बारि ॥
आछणपाणी उतारता धवल दिइ बहुनारि ||२।। ३५३ पंच विषय सुख भोगवइ पुत्र हवो इक सार ||
नार्मि मधवान थापिउं मघवा सम अवतार ॥३|| ३५४ एक दिन मित्रस्युं परवर्यो लीला वनमां जाइ ।।
रमति वसंतनी जन रमइ जिन मनि ते न सुहाइ ॥४॥ ३५५ मूढ नरा मोह मोहीया हारइ नर अवतंस रे ।
त्रिभुवनमांहि जे दोहिलु नरभव विणुं नवि पार ।।५।। ३५६ मूढा मोह अंगीकरइ ते मुझ वियरी होइ ।
मोहो उपशम वेरीओ सूक्यो सब जिनि जोइ ।।६।। ढाल- ॥ करुणासागर देवनो । ३५७ वरसह लाख अढार जनमथी प्रभुनिं हवाए ।
भावइ जिन नित चीति उपशमथानक नवनवाए ॥१॥ ३५८ लोकांतिक सुरश्रेणि आवी प्रभुनई पगले पडीउए ।
कहइ प्रभु तीरथ थापि वर संयम शिबिका चढीए ॥२॥ ३५९ तुं सुबुद्धि निधान तुझ विणु जग कुण बूझवइए ।
मोहि पड्यो जगजीव तुझ विणु कुण तस बूझवइए |३|| ३६० अवसर जाणीय इंद्र बारम जिन दीख्या तणोए ।
जिनघर सेवक पाई कनकराशि मुंकइ घणोए ॥४॥ ३६१ विविध ठामिथी आणि श्री जिनवरघर पूरिउं रे ।
प्रभु वरसी दिइ दान जग जन दारिद च्चूरिउ रे ॥५॥ ढाल - वइराडी ।। ३६२ लीलारामि रमति मइं न रमी ते विरमी मई भाई ।
अंब तात मुझ अनुमति आपो मई निज हितमती लाई ॥१॥ माई अनुमति आपो० ।
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३६३ ग्रसति जीवजीवित वडवाई जिम मूंसो खिणि खाई । माईअ० ।
ए तनु सोनिक हाथि कपाई । हाटि हाटि विकाई ॥२॥ माई अ० । ३६४ भवि अनंत भमतां बहु भाई जीवो विषय कषाई ।
भूख्यो जीव भखइ षटकाई भवि भवि करति सगाई ॥३॥ माईअ० । ३६५ बहु जन मिथ्यामति लगाई पापइं हूओ री सखाई ।
पापी जन यशकीरति गाई जिन कीरति न कराई ॥४॥ माईअ० । ३६६ पूज्य पुरुष पूजा न रचाई नेव अमारि रखाई ।
जिनवाणी नवि चीति लखाई धर्मि करीअ ठगाई ॥५॥ माईअ० । ३६७ दान विना बहु भगरि मगाई जीवि धर्म न थाई ।
धर्म विना जीव दुर्गति जाई अनुमति दिओ मुझ माई ॥६॥माई अ० । ३६८ माता वचन सुणी अतिकडंउ भूमि पडी अति मोही ।
खिण उठि रोवति मुखि बोलइ किम रहूं जात विबोही ||७|| ३६९ पूता तुं ही एक प्राणाधार पूत तुं मेरो ।
कुसुमहथी सुकुमारो केशलोच प्रमुखो अति दुष्कर । दुष्कर संयम भारो।
पूता तूंही एक सखाई ॥८॥ ३७० मूंकि म लोचनि मरीच-चूरणं । रंभा थंभि कुठारो ।। अब कुसुम नवि अगनि मूंकीइ । काच कुंभि असिधारो ॥९॥
पूता तूं ही एक । ३७१ वासुपूज्य जननी प्रति बोलइ धरमई विघ्न न कीजइ । सुत प्रति व्रतनो निश्चय जाणी कहइ जिन सुख तिम कीजइ ॥१०॥
पूता तूं ही एक । ढाल - ईशानेंद्र खोलइ लिइ || ३७२ वासुपूज्य जिन मांडी व्रत सुरगिरि आरोह रे ।
जे चरणोत्सव भवि जोइ तस नवि सुकृत विछोह रे ॥१|| वासुपूज्य० । ३७३ इंद्र सवे मिली आवीया हरखि सुर नाचंति रे ।
मादल मस्तक घमघमइ तालिइ सची राचंति रे ॥२॥ वासुपूज्य० ।
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३७४ सर्व विरति नीसरणीइं चउस्यइ शिवप्रासादि रे ।
चउसठि इंद्र तिहां मिलइ गाजति दुंदुभिनाद रे || ३ || वासुपूज्य० । ३७५ तीरथनीर अणावी जिनसुरतरु सिचित रे ।
सुरचीवर सुचिलेपनां जिनभूषण विरचंति रे ||४|| वासुपूज्य० । ३७७ माणिकली जिन- पालखी हरि निज अंस वहंति रे । तदनु सुरासुर दुंदुभि अंबरि नाद सहंति रे ॥ ५ ॥ ३७७ चामर छत्र परंपरा आगलि थीय वहंति रे ।
वासुपूज्य० ।
विविध कुसुम वर टोडरा धूपघटीय महंति रे || ६ || वासुपूज्य० । ३७८ जीव नंद जय जय कहइ जन आसीस देअति रे ।
षटशत मित्रसमो प्रभु शिवपुरि पंथ वहिंति रे ॥७॥ वासुपूज्य० । ३७९ वनि आभरण ऊतारतां मातपिता ते रुदंति रे ।
पंचमुट्ठि लोच न करइ संयमरथ रोहंति रे ||८|| वासुपूज्य० । ३८० चरण महोत्सव करी गया नंदीसर सुरजात रे ।
प्रभु मनपर्यव - न्याननो अंतराय होइ पात रे ||९|| वासुपूज्य० । हूं बलीहारी यादवा - ए ढाल ॥
अनुसंधान- ३०
३८१ फागुणमासि अमावासि रे चउथ तपइ मुनि होइ ।
अनुमति माग विहारनी रे तव सुजना रे पुरजन होइ ||१|| पाछू वाली पूत जो मुझ तुझ विण रे खिण न सुहाइ । ३८२ सुत जोती री जया रोइ रे तिम वसुपूज्यो वि रोइ ।
प्रभु निरीह निरागीओ रे तस आपणो परही (न) कोई ||२|| पाछू वाली० । ३८३ पूता तूं अम्ह आंखडी रे हूंतो अम्ह आधार ।
निरधार मूंकी गयो रे कुण करस्यइ रे तुझ विणु सार || ३ || पाछू वाली० । ३८४ लालमणी पुरि आवयो रे पारण विहरण काजि ।
हइ मसि पणि देखाइ रे देई दर्शन अम्ह दुख भाजि || ४ || पाछू वाली० ३८५ तुझ मिलवा घरि आवता रे चउविह देवीदेव ।
तुझ पुण्यई हम पूजीआ रे मनिं धरजेरे अम्ह नईहेव ||५|| पाछू वाली |
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३८६ पगिपाला किम चालस्यो रे पूत अमारा भूमि ।
किमपरि भिख्यां मागस्यो रे किम सूस्यो उपर भूमि ||६|| पाळू वाली० ।। ३८७ विलविलती रांणी जया गई तिम वसुपूज्य नरंद ।
प्रभु निरागी वहि गयो तिहां प्रणमइ रे भविजन वृंद ॥७॥ पाळू वाली० । ३८८ बीजइ दिनि त्रिभुवनपती रे एक महापुरि जाइ ।
पारणि काजि मधुकरी तिहां पुरजननई हरख न माइ ॥८॥ पाडूं वाली० । ढाल-राग - केदारो || ३८९ लोगो वासुपूज्य जिन आयो सुर कल्याणाके जो जिन गायो ।
वासुपूज्य जिन आयो, लोगा वासुपूज्यः । सो धन जीव गुणो तुम्ह लागो जस जिनदानह योगा । सो पामइ सुर शिव सुख भोगा रोग न शोग ति जोगा ॥१॥
लोगो वा० ।
३९० प्रमुदित पुरजन घरि घरि पंथि दान कुलाहल चाल्यो ।
जिन-मुनि-दान हेतुइ जस हाथि तिणि जीवित आल्यो ॥२॥ लोगो वा० । ३९१ सहसच्यार मुनि ऋषभदेवनां दाता तेणि निहाल्यो ।
पात्र दान दाता विणुं तेणई संयम आपणो टाल्यो ॥३॥ लोगो वा० । ३९२ ऋषभदेव-तनु-सुरतरु सिंच्यउ सिरि सेअंश कुमारि ।
पात्रदानफल जे जिन बोल्यां तस को मांन विचारि ॥४॥ लोगो वा० । ३९३ लोचन नाके विना नवि शोसि नरनारी मुख अंगो ।
दान विवेक विना नवि पामइ मनुज सभामा रंगो ।५।। लोगो वा० । ३९४ जिनशासन राख्यं तिणि पुरुषइ तिम मुनि दशविध पंथा ।
दान शील तप भाव उधरिआ दानि रह्या जिनग्रंथा ।।६।। लोगो वा० । ३९५ छतइ योगई दान न दीधुं कीधुं कृपण निदानं ।
उदर भरयुं जिनभगति विणुं सो नर हुरित निधानं ॥७|| लोगो वा०। ३९६ दान वात कोलाहल निसुणी राय सुनंदो धायो । .
मोजा चामरं छत्र त्यजीनिं प्रभु समीपि लघु आयो |८|| लोगो वा०
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अनुसंधान- ३०
धन मुझ पुर धन हूं प्रभु पूर मुझ करि घरि आज पवित्र । तस घरि परमान्न लीउ जब उत्सव होइ विचित्र रे || ९ || लोगो वा० ।
३९८ पंच दिव्य देवइ तिहां कीधां श्रीजिनपारण-ठामि ।
रयणपीठ राजा बंधावति प्रभु विचरति बहु गामि ||१०|| लोगो वा० । चालो रे भविका जिन भाव धरी नई ढाल
३९९ वासुपूज्य जिन वाववपूजित अनुपम संयमधारी रे ।
अनुपम उपशमरस रयणायर सुमति गुपतिनो धारी रे | अनुपम० ॥१॥ ४०० त्रिभुवन जन उपगारी दरिशन दुरित निवारी रे । अनुपम त्रिभुवन हितकारी गतप्रतिबंध विहारी रे ||२|| ४०१ विहार करंता त्रिभुवनतारक चंपापुरीइं पधारि रे ।
पाडलि - तरुतलि प्रभु परिवसिओ तिहां प्रभु ध्यान वध्यावि रे ||३|| ४०२ क्षिपक श्रेणि नीसरणी चढीओ घनघाती मल झडीओ रे । केवलनाण - महोदधि जडीओ अमरिं तीन गढ घडीउ रे ॥४॥ ४०३ माघ मास शुदि दुतीया दिनमा जिम जगि चंद्र प्रकाश्यो रे । तिणि दिन वासुपूज्य जिन कीनो केवलनाणिं वासो रे ||५||
सुणि जिन त्रिभुवन वेद्य- ए ढाल ।
४०४ रूप- कनक-मणि तीन समवसरण घडी । सिंहनाद सुर मूंकता ॥ १२ ॥
४०५ अशोकतरुतलि पीठ सुरमणि छंदमां । सिंहासन मणि रयणनूं ए |२|| ४०६ छत्र त्रयनी श्रेणि चामर धोरणी धर्मचक्र धज झगमगइ ए || ३ || ४०७ कनककमल प्रभु पाय ठवतो आवीय अशोक दिइ प्रदक्षणा ए || ४ || ४०८ वासुपूज्य जिनराय लालमणी समरूपे अनंतो शोभतो ए ॥५॥ ४०९ प्रभु प्रतिबिंबा तीन परषद बार नई प्रभुपरि तनु मनमोहतां ए ॥ ६ ॥ ४१० जिनपति योजनि धर्मुपदेश देतो त्रिभुवन मन संशय हरइए ||७|| ४११ समवसरण नवि होए प्रभुनी द्रष्टई ए कुण नइ नवि भय यंत्रणा ए ॥८॥
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४१२ विकंथा मत्सर शोक वैर विरोद्धाए तिर्यंत्त्वादिकनां समइ ए ॥९॥ ४१३ श्रीवसुपूज्य नरेश पदमावति जया राणी स्यु अति उत्सवइ ए ॥१०॥ ४१४ देखी निजसुतऋद्धि अति मनि हरखतां वंदी प्रभु देशन सुणइ ए ॥११॥ ४१५ अति लघुकरमी जीव सुक्षिम प्रमुखाए गणधर श्रीजिन दिखीया ए ॥१२॥ ४१६ घरणी पदमा होइ जिननी महासती सुखशादिक वर श्राविका ए ॥१३॥ ४१७ जननी जयादिक होइ जिननी श्राविका संघ चतुर्विध थापीया ए । ४१८ श्रीवासुपूज्य जिनराय सूक्ष्म प्रमुखा ए बासठि गणधर थापी ए ॥१४॥ ४१९ शासनसुरो कुमार चंडा देवीय प्रभुनी शासनदेवता ए ॥१५॥ ढाल - सरु विण गछ नही । ४२० समवसरण सुर मंडीउं बारवती वन मांहि रे ।
लालमणी सारिखो आवि अरिहा लांबीअं बाह रे । लालभणी सारिखो आविओ ॥१॥ .... । नि(ति?)म विजयो बलदेवो रे ।
इम वनपालि ते विनवीउ नरहरि करि जिन सेवो रे ॥२॥ लालमणी० । ४२२ इति वनपाल वचन सुणी हरखई दिइ बहु दान रे ।
निजऋधि हरि-बल नीसरी जिन वंदइ बहुमानइ रे ॥३|| लालमणी० । ४२३ तिलक करी इक नर चड्या घोडइ तिलकीटा कुंकइ रे ।
महीपति गज चडी इक नरा इक नर वेसर मूंकइ रे ॥४॥ लालमणी० । ४२४ एक सुखासण पालखी इक चडइ चकनोलि रे ।
एक रथवाहणि रथ चड्या एक नर उठत टोलइ रे ||५।। लालमणी । ४२५ एक नर पाला नीसरइ धर्मी धर्मनि काजिरे ।
एक नर कौतुक पेरीया एक नर मित्रनी लाजि रे ॥६॥ लालमणी । ४२६ श्रीजिन मधुरीय देशना योजनगामिनी वाणी रे ।
द्राख साकरनइं हरावती शुचि जिम गंगानुं पाणी रे ॥७॥ लालमणी० ।
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धर्म विवेकनो आगरो दोहिल्या नरभव पामी रे ।
मोहमां मूह्यां रे जीवडा धर्म करइ नवि कामी रे || ९ || लालमणी० । नरभव विणुं नवि पामीइ संयम शिव सुखदायी रे । संयम सतर ते भेदस्युं लीजइ मुगतिविधायी रे ॥ १० ॥ लालमणी० । समकित व्रत धरइ श्रावका वे (जे) पणि सुरपुर गामी रे । समकित व्रति जे हीणडा ते नर दुरगति गामीरे ॥ ११ ॥ ४३१ जे जिनधर्म - प्रभावका जिन मुनि धर्म आधारा रे ।
समकितदृष्टि जे जगि नरा जननी जण्या ते सारो रे || १२ || लालमणी ० । इति सुणी ते जिनदेशना बहु भवि मुनिपरा होइ रे । सुराकित दो पुत्री हरी धरइ (समकित पुणि हरी धरइ) विजयो श्रावक होइ रे ॥ १३॥
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अनुसंधान- ३०
भमतां रे भवमांहि अनुभव्यां भागि जीवइ अनंता रे । जीवनई नर भव दोहिलो समरो श्रीअरिहंता रे ॥८॥ लालमणी० ।
ढाल
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ऋषभ घरि आवइ छइ ।
I
चउसठि वासव पूजीओ वासुपूज्य जिनराय । नमो परिवार स्युं, देश पवित्र होइ बहु जिहां । जिहां प्रभु दिई निज पाय || २ || नमो । श्रीवसुपूज्य जया समा स्वर्गि गया जिनतात । नमो । राज करइ मघवाधिपो वासुपूज्य जिनजात || २ || नमो | ४३५ तस घरणी लखमी समी लखमी शीलपवित्र । नमो । अर्जुसेनादिक सूता चरिता ताण पवित्र | ३ | नमो ।
४३४
—
४३६ तस उपरि एक बेटडी नाम रोहिणी जाणि । नमो । रोहिणी सरखी चंद्रनई रोहिणी तपनी खाणि ||४|| नमो । ४३७ सहस दुसत्तरि मुनिवरा बासठि गणधर सीस । नमो ।
एक लाख प्रभु महासती चितड़ जिन निशिदीस ||५|| नमो | ४३८ जिन पूखधर बारसइं केवलि परिखा पासि । नमो । अवधिन्यानधर ध्याईइ चउपन शत ते तासि ||६|| नमो ।
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४३९ मणनाणी एकसठी सइ छ सहस केवलनाण । नमो ।
दस सहसा सुरसारीखा वैक्रियलबधि निधान ॥७॥ नमो । ४४० चार सहसनई सातसई वादीय वादविसार । नमो ।
सहस पन्नर होइ लाखस्युं श्रावक समकित धारी ||८|| नमो । ४४१ च्यार लाख वर श्राविका बे सहस उपरि जाण । नमो ।
चउपन लाख वरस प्रभु केवलस्युं विचरंति ॥९|| नमो । ४४२ जीवादिक षट्भावना भावप्रकाश करंति । नमो ।
लाख दुसत्तरि वरसनो प्रभु जीव्यो जगभाण ॥१०॥ नमो । ४४३ जनमभूमि चंपापुरी होसि प्रभु निरवाण ॥११॥ नमो । ढाल-राग- सींधूउ सामेरी ॥ ४४४ जाणेरी संकेत करी प्रभु मुगति मिलन चंपापुरी ।
पनि धरि प्रभु चंपावनि आवीया ए ॥१॥ ४४५ षटशत मुनिवर साथस्युं मुगति गमन प्रभु मन वस्युं ।
कसकस्यउं जनम मरणनां दुख थकी ए ॥२॥ ४४६ पादोपगमनमनशनं पर्यंकासन निवसनं
शसनं त्रिभुवन करतां प्रभु करइ ए ॥३॥ ४४७ चंपा सन्ति रे सुरा मिलीया ।।
ते अणवेसरा (अवसरा) सुरवरा अवधि जाणी आवीआ रे ॥४॥ ४४८ प्रभुनई देई प्रदक्षिणा धर्म विरणि विचक्षणा ।
सुलक्षणा प्रभु मूरति दिइ शुभतणीए ॥५॥ ४४९ इंद्रा प्रभु रागातुरा प्रभु दर्शन विणुं आतुरा ।
कातुरा प्रभु विरहानल जालतीए ||६|| ४५० आषाढी शुदि चउदसि उत्तरभद्रई शशि वसइ ।
प्रभु घसइ मुगतिराज लेवा भणीए ॥७||
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अनुसंधान-३०
४५१ ऋजुगति सिद्धिवधू वरी आनुचर निजसीसा करी ।
शिवपुरी रहिया नितवासी थई ए ॥८॥ ४५२ भूमीपति प्रमुखा नरा प्रभु विणु ते शोकातुरा ।
सुरवरा प्रभु विरहई मूंझी रह्या ए ॥९॥ ४५३ नारकीनई पणि सुख दिऊ निर्वाणि अहि दुख कीउं ।
सुख कीउं छई प्रभु जगनेइं जनमथी ए ॥१०॥ ४५४ प्राणनाथ जगदीस रे प्राणो तुम्ह सम वीसरो ।
ईसरो त्रिभुवनपति मुगति गयो ए ॥११|| ४५५ तुझ ठामि तुझ बिंब स्युं तुझ परि तिहां चित राखस्युं ।
सुणस्युं जी मुझ वयणां गुरुदेशना ए ॥१२॥ ढाल - तेतलीसुत मुनिनई केवली । ४५६ एक भाविका इम वीनवइ प्रभो उठि दिइ बोल रे ।
चउसठि इंद्र उभा रह्या रे तो देशनाए लोल रे ॥१॥ भविसा० । ४५७ प्रभु कृपा करी लोचनई जोईइ कृपा सिंधु तुं उठि रे ।
प्राण अकह्या करी अम्ह तणा तुझ आ नावि पूंठि रे ॥२॥ भविसा० । ४५८ जगगुरु रो उठिद्यो देशना मल्या भविकना वृंद रे ।
देवछंदई प्रभो आवीइं दिओ सीखण गणिंद रे ॥३॥ भविका० । ४५९ तुं प्रसिद्धो सुखदायको जगि टालिं तुं शोक रे ।
तुझ दरिशन तणो रागीओ जोइ रूप तुझ लोक रे ॥४॥ भविका० । ४६० इम विलवंति जे रागीआ निवारिति सुरिंद रे ।
खीरसमुद्रनां पाणीआं मिली चंदनवृंद रे ॥५॥ भविका० । ४६१ प्रभुशरीरं पखालइ सुरा तिम साधुशरीर रे ।
लीपीयां बावनाचंदनां भला वाटीआं चीर रे ॥६॥ भविका० । · ४६२ वर अलंकार पहिरावीआ दिया तिहां वर धूप रे ।
सुरनरि दामली तिहां नमइ प्रभो सुंदररूप रे ॥८॥
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४६३ सहसवाहणि करी पालखी अपर मुनितणी दोइ रे ।
तिहां जिन साधु बइसारीया सुरा रास दिइ जोइ रे ॥९॥ भविका० । ४६४ देव गांधर्व गायंति तिहां सुरा तुर्य गायंति रे ।
धूप उषेवणां बहु करइ सुरा प्रभु पूजा करंति रे । ४६५ कुसुमनी वाल वरसइ सुरा प्रभु पूजा करंति रे ।
अनई सुगंधी घणां चूरणां घनसार वरसंति रे ॥११॥ भाविका० । ढाल । राग - मारूणी ॥ ४६६ शिव मंगल कल्याणकारणी पूजीइ रे ।
डाढा राढा काजि जिननी रे रयणडाबिडा-वासिनी रे ॥१॥ ४६७ दाढा राढा काजि जिननी । सकल इंद्र आराधीइ रे ।
आशातन-निवारि मेहूण रे मेहुण रे तिणि थानकि निवारीइ रे ॥२॥ ४६८ चिंताहरणी सामि चिता दिशि पूरवइ रे ।
बावनचंदन पूर पूरी रे पूरी रे ।
अगुरु कपूरइ मृगमर्दि रे ॥३॥ ४६९ अगनि दिइ तिहां अगनि कमारा।
देवता रे वायुकुमारो वायु सींचइ रे ।
सींचति रे अमृत जलई जलदेवता रे ॥४॥ ४७० जिनमुखि जिमणी ऊंची सोधर्मो लिइ रे ।
तिम डाबी चमरिंद लीजइ रे ।
वासुपूज्य दाढा जडी रे ॥५॥ • ४७१ जिन मुखि डाबी उंची ईशानो लिइ रे ।
हेठा लेई बलिद दंता रे दंता रे इंद्र अनेरे लीजइ रे ॥६॥ ४७२ कीकस जिननां देवे जो नवि मूंकीइ रे ।
रक्षा लिइ राजानक रेणूं रे रेणूं रे । अपर नरा लेई रमइ रे ॥७॥
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४७३ रेणु लीआं ती खाड पडइ ते पूरीइरे । रत्नराशि करी धून ( थूभ) कीजइ रे । कीजइ रे चिताथानि जगदीसनई रे ॥८॥
ढाल | राग धन्यासी ॥
४७४ माई हमेथी तूं नीकी वपुरी माई जस घरि जोईइ । सुख मंगल वासो सुणवो तेणइ वासुपूज्य पुण्यप्रकाशो || १ ||
४७५ वासवपूजित वासुपूज्य नमीजइ । कल्याणकदिन तस विधि रमीजइ ॥ २ ॥
४७६ वासुपूज्य कल्याणकतिथि न तोडी ।
जिणि नरि तेणइ न तेडी कल्याणक कोडी ||२|| माई० । ४७७ जस घरि वूठी जोइ कल्याण कोडी ।
कल्याणक तिथि तिणि कहे न तेडी ||३|| माई० |
जस घरि जोइ राजमणी रजत होडी । जन्मकल्याणकतिथि काहे न तेडी ||४|| माई० । ४७९ वासुपूज्य पूजा शुभ ध्याननी कोडी ।
तेणि करी तस होइ मुगती चेडी ||५|| माई० । ढाल - राग- धन्यासी
४८० श्रीमदानंदविमलेदुं गुरु वंदीइ । पाटि तस श्रीविजयदानसूरो । तास पटि प्रशमनो कूपलो वंदिइ । हीरविजयो गुरु सुगुण पूरो ॥१॥ श्री भदा० ।
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४८१ सकलमुनि सुखकरो सकल संयम धरो दिनकरो श्री तपागच्छ केरो । हीरविजय गुरुराजथी आज जगि, कोपि अधिको न दीसह अनेरो ||२|| श्रीमदा० ।
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________________ December-2004 61 482 श्रीवासुपूज्य पुण्य प्रकाशो वसु श्रवण हृदयांबुजे जीव सूरो / सकलमुनि चिंतिउ श्रीसंघसंतिउ / निर्मलो सुरभि जिन जगि कपूरो // 3 // श्रीमदा० / 483 नगरी त्रंबावती जेणि बहु धनवती / जयति जिहां थंभणो पासनाहो / सतत धरणेंद्र पद्मावती पूजितो / सकल सिरिसंघ मुख विजयलाहो // 4 // श्रीमदा० / इति श्रीवासुपूज्यजिनपुण्यप्रकाश संपूर्णः ॥श्री।। संवत 1738 वर्षे / वैशाखवदि 1 शुक्रे / श्रीमदणहिल्लपत्तनपुरे / चातुर्वेदी मोढज्ञातीय / लेखक वृंदावनेन लिखितमिदं पुस्तकं ॥श्री। बाई / जतन बाई पठनार्थाय: / शुभं भवतुः // श्री // श्री || श्री // C/o. आं.रा.जैनविद्याअध्ययन केन्द्र गुजरात विद्यापीठ अमदावाद-३८००१४