________________
46
३०१
आवीआ अणतेडीआ रे इंद्र घरणी साथि ।
वैमानिक तिहां देव आवइ श्रीफला फला धुज नइ हाथिकि ॥३॥
कुलवधू० ।
३०२ धराधव आमंत्रीआ रे आवीआ बहु साथि ।
वधामणा डांबहु तत्पावइ शोभति शोभति जिमणइ हाथिकि ||४||
कुलवधू० ।
ढाल
धनवणानो ।
३०३ श्रीवासुपूज्य नरिंद सुत दिनकर आव्यो । अनोपम एह वणकराव्यो सुर सम नारियां ए ॥१॥ ३०४ उढणि चूनडीए पहिरणि वरफाली ।
कंठि कुसुम धरी माल अंगि अलंकरी ए ॥ २ ॥ ३०५ कोकिलकंठी नारि मुखि धवल देयती । तेल सुगंधि कचोलि मर्दन कीजीइ ए ||३|| ३०६ मणि कनका सरि कासिमि वासुपूज्य पधारो । अम्ह मनि हर्ष अपार मर्दन कीजीइ ए ||४|| ३०७ जक्षसुकद्दम देह प्रभु ऊगद देई ।
मंगल लण्हवण करति तीरथ नीरस्युं ए ॥५॥ ३०८ इंद्रमुकुट वर खूप सिरि तुंगल कानि । मणिमुगताफलमाल भूषण कुसुमनां ए ॥६॥
ढाल
उलीलानी ॥
३०९ कुंकुम तिलक सिरि सुरपति भूपति सोहइ । वरघोडइ जग मोहर केसर छांटणां कीजइ ॥१॥
३१० अगुरुधूप तनु कीजइ साजन भूषणां दीजि । कुलधर चीर आपीइ पुर पहिरामणि कीजइ ॥२॥
अनुसंधान- ३०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org