________________ December-2004 61 482 श्रीवासुपूज्य पुण्य प्रकाशो वसु श्रवण हृदयांबुजे जीव सूरो / सकलमुनि चिंतिउ श्रीसंघसंतिउ / निर्मलो सुरभि जिन जगि कपूरो // 3 // श्रीमदा० / 483 नगरी त्रंबावती जेणि बहु धनवती / जयति जिहां थंभणो पासनाहो / सतत धरणेंद्र पद्मावती पूजितो / सकल सिरिसंघ मुख विजयलाहो // 4 // श्रीमदा० / इति श्रीवासुपूज्यजिनपुण्यप्रकाश संपूर्णः ॥श्री।। संवत 1738 वर्षे / वैशाखवदि 1 शुक्रे / श्रीमदणहिल्लपत्तनपुरे / चातुर्वेदी मोढज्ञातीय / लेखक वृंदावनेन लिखितमिदं पुस्तकं ॥श्री। बाई / जतन बाई पठनार्थाय: / शुभं भवतुः // श्री // श्री || श्री // C/o. आं.रा.जैनविद्याअध्ययन केन्द्र गुजरात विद्यापीठ अमदावाद-३८००१४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org