________________
अनुसंधान-३० ३२२ कंठि वरमाला दिवरावीइ ए धनि बहु जेणि जिनकर धारीइ ए ।।३।। ३२३ माहिरामांहि पधारीइ ए मुख-जोअणि बहु जन आवीइ ए ॥४|| ३२४ वहूतणो हाथ-मेलावडो ए जाणे बहु वर-सुखतणो डाबडो ए ॥५।। ३२५ धवलडां सामसाहमा होइ ए तिहां अपछरा कोतिकडां जोइ ए ॥६॥ ३२६ इंद्र ते धवलडां सांभलइ ए तव घमरीय सर्व गावा मिलइ ।।७।। ३२७ वर मुख-जोयणि मणि ठाइ ए जिण दरशन सिंधु डोहि ए ॥८॥ ढाल - घोडीनो ॥ ३२८ इक धन धन रे । वसुपूज्य नरपति जस कुलि जिन आयो ।
जिणइ आव्यइ रे सुर नरपति घरिघरि घंटानाद वजाय ।।१।। ३२९ इक धन धन रे जयाराणी कूख जिणि ए वर जायो ।
जिणइ जिणनइ रे छप्पन्न दिशि कुमरीइ श्रीजिनगुणगायो ।।२।। ३३० एक धन धन रे पदमावति वहु जेणि जिन वरिओ ।
जिणिवरनइं रे चंपापुरी जनपद बहु धन भरिओ ॥३॥ ३३१ इक धन धन रे सुर-नरपतितति जिणि ए जिन थविओ ।
जेणइ थवतइ रे सुरगिरिशिर उपरि ए जिन न्हविओ ॥४॥
एक धन धन रे चंपापुरि जन जेणि ए नित दीर्छ जेणिए दीठइ रे । ढाल - अम्ह त्रिभुवननो पातक नीउ ए ढाल || ३३२ अगनिनइ दिउ प्रदक्षणा श्री जिन दक्षविचक्षणाए !
देवरावीए अग्नि प्रदक्षणाए केडि पदमा पि सुलक्षणाए ।
तिहां याचक दीजीइ दक्षिणाए ॥१॥ ३३३ सुरनरनायक साखिया ए जिनराजि ते पांचीय राखीयाए ।
इंद्रइ जिनवर भाखिया ए तुझ लाहूआ सब जगि चाखीया ए ॥२॥ ३३४ अतिमीठडा कुण नवि नांखीया ए तिणि त्रिभुवन लोक संतोषीयाए।
अनी टाढडा तई अम्ह आंखि आए ॥३॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org