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अनुसंधान-३० १९४ तिहां दक्षिण वर भरतमां रिपुजन-वद्धिअ-कंपारे ।
चंपा रे तिहां नगरी चंपावन घणां रे ॥२॥ १९५ ग्रहणं जिहां रवीचंद्रनइं पणि नवि कुणनी रातई री ।
तातई रे जिहां जन न पडइ मुनीजन तणी रे ॥३॥ १९६ संयम न जिहां केशनइं पाणि कुण नई वि अपराधि रे ।
बांधि रे जिहां घर न पडइ सूतडां रे ॥४॥ १९७ ग्रहगणवर तइ लगनमां कटक समासई विग्रह रे ।
विग्रह रे जिहां नवि वरति जनमां ए ||५|| १९८ थउट पडइ मादल सिरइं तिम वमय वरत गज कुंभि रे ।
दंभइ रे जिहां नवि वरतइ जिन धर्म मा रे ॥६॥ १९९ अगुरुवास जिन केशि रे जिहां आरति जिन धूपई रे ।
कूपई रे जिहां जड वरतइ पाणि नवि पुरीइ रे ॥८॥ २०० संकडतां युवतीकडइ जिहां वरतिउ पण नवि घरमां रे ।
घरमां रे दिसइ जिहां नवनिधि लोकनई रे ॥९॥ २०१ जिहां जिनभवन-पातकिनी जाणई नभ-शशिनइं चाहइ रे ।
चाटइ रे जगि जिन यश दिशि आंतरां ए ॥१०॥ २०२ तिहां वसुपूज्य नराधिपो देविंद सरिखो राजइ रे ।
वाजइ रे जिन घर-बार नफेरीआं रे ॥११॥ २०३ जांणि जिहां जिनधर्म नई जिनचैत्य धजा प्रचलती रे ।
चलती रे कवि लूंछणां रे ॥१२॥ २०४ नामि जया तस राणी रे धरि रूपई जिम इंद्राणी रे ।
जाणी रे सा शीलइ मरुदेवी जसी रे ॥१३॥ ढाल - प्रथम पूरव दिशि ।। २०५ सरस वरकुसुमस्युं सुरभिभर धूपिओ ।
गोपीउं वासघर कनक देहं ॥१।।
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