Book Title: Vasupujya Jin Punya Prakash Stavan
Author(s): Shobhna R Shah
Publisher: ZZ_Anusandhan
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December-2004
त्रोटक
१६२ भोग छंडी बहु महोत्सवि लेइ दिख्या गुरुतणी । संवेगि गुरुकुलवासि विनयई एकादश अंगी भणी | संवेग वास्यो देश विचरी विषय- इंद्रिय वशि करी । वीस थाव (न) कि रमइ मुनिवर शुद्ध करतो गोचरी ॥२॥ १६३ राजऋषि पदमोत्तरो फासति अभिनव सूरो । विंशति थान मंजल चरण कारण गति पूरो ||३|| त्रोटक १६४ चरण पूरो मनि अंकुरो प्रथम थानक जिनतणी । भाव - पूजा भगति करतो प्रणमतो जिन गुण थुणी । इंद्र चंद्र नरेंद्र पूजा द्रव्यनी अनमोदतो । सकल जंतु दयालू जिनना गुण समुद्र विलोलतो ||४||
१६५ बीजि थानकि सिद्धनि ध्यान रमी मुनि राजो | त्रीज प्रवचन संघनी भगति करी बहु काजो ||५|| त्रोटक१६६ काज गुरुना करीइ चउथई भगति गुरु गुणगान रे । श्रुत वयो व्रतधर भगती पंचमइ तस मांन रे । सूत्रधरथी अर्थधरनई विशेषि बहुमान रे । थानक छच्चर करी श्रुतधर - भगति अन्नह पान रे ||६|| १६७ तपसीय- भगतीय सातमई अठमई अभिनव-नाणो । पठन गुणन तस चिंतनं नवमइ समकित ठाणो ॥७॥ १६८ नाणविनयो करइ दसमहं सर्व गुणमणिसार मई । षडावश्यक करइ मुनिवर एक चिंतइ ग्यारमई ॥८॥ १६९ बारमइ शुचि शील पालइ सर्व शुद्धाचारस्युं ।
शीलधर अवदानथि तन करइ मुनि विस्तारस्यु ||९|| १७० परिहरीय कुशील संगति सुशीलह संगति कारी सर्व थानकी रमइ मुनिवर अरिह भगति चित धरी ॥१०॥
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इति खट् पदी ।
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