Book Title: Vasupujya Jin Punya Prakash Stavan
Author(s): Shobhna R Shah
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 26
________________ अनुसंधान-३० २४१ कुलवधु सीमंतिनी रे गाइ घरि सीमंत । जया अतिरूपई चडी देखीय देखीय मोहति कंति कि ॥३॥ पुण्यकरो०॥ २४२ नित नवां मंगलीक जोती करइ गर्भनो पोष । विविध तनु-मन-सुखइं रमती न विरलइ कुण पति-रोषकि ॥४|| पुण्यकरो० । २४३ मास पूरइ आवीओ रे मधुकर फागुण भासा किशन चउदसि निशा समए शतभिषा शतभिषा उडुपति वारतो ।।५।। पुण्यकरो० । २४४ त्रिजगदीवो जाईओ रे जगि सुखी सब कोई । त्रिभुवन उद्योत कीधु नारकि नारकि पणि सुख होइ कि ॥६|| पुण्यकरो। २४५ त्रिदश आसन कंपीआ रे दश दिशी पि हसंती । हुती सलाख विमानघंटा नादिइ नादिइ ए सुर विकसंत कि ॥७॥ पुण्यकरो० । २४६ दिशा कुमरी छपन्न आवी सूतिक कर्म करंति । अरिह जननी पद नमी नई निज निज धर्म धरंति कि 11८॥ पुण्यकरो! ढाल - घोडीनो । २४७ माई धन्न सपन तुं जिन जननी जिन स्युं । अति भगति न्हवरावी सुर चीर मणिना अलंकार पहरावी ॥९।। पुण्यकरो० । २४८ जिन जननी जनम धवल गवरावी । जिन रख्यापोट्टलि श्रीजिनकर बंधावी ॥२॥ २४९ धन तूं सोभागिणि लालमणी तई जायो । तुझ नंदन देखी अम्ह आणंद न मायो ॥३॥ २५० कल्याणककंदो तई जायो कुलचंदो । तई आव्यो जननई त्रिभुवन तमहरु दीवो ॥४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47