Book Title: Vasupujya Jin Punya Prakash Stavan
Author(s): Shobhna R Shah
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 11
________________ December-2004 25 ८२ हसति राम कुमर पणि बोल्यो हूं पशु परि तुम्ह कीनो रे । कहइ संग्राम रामनि हसतां हीन फलई शुभ दीनो रे ॥३॥ मुनि० । अनुक्रमि ते निजजीवित पाली सवि परलोक पहुतारे । राम-जीव तुझ हस्ति हुईनई तुम्ह तो मोहिं पूता रे ॥४॥ मुनि० । ८४ सो संग्राम जीव तपनो हुँ राजऋषि तुझ मिलीओ रे । तुं वामण निज जीवित पाली सुणि तुझ जिम भव फलीओ रे ॥५॥ मुनिः । ढाल - चेतन सांभलि ॥ राग - गोडी ॥ सासनादेवीय पाय पणमेविय-ए ढाल । ८५ राजन सांभलि तुं निज भव कजि जेणि तुं करम संकोचिउ ए । बहु धनवंतीय पुरी अवंतीय जन भरि पुरजन सुखकरिए ॥१॥ ८६ तिहां सुबाहु सुबाहुअ नर नायको राज करि अतिलोभिओ रे ॥२॥ ८७ तस इक किंकरो हीन-जातीय-कुलो छत्रनो धारक किंनरो ए ॥३॥ त्रोटक० । ८८ धरणी एक तस तरुणी हरणी नामई कूखई अवतरयो । सोइ वामण जीव तेणई सुपन लखमीनो धरयो । दोहलो रत्नाकर सुपानि अतिहिं दुःखभरि पूरीओ। सुत जण्यो तेर्णि रूप सुंदर राज लक्षण पूरिओ ॥४॥ ८९ नामई सो सीदत थाप्यो रायनई बाध्यो सो मनि नवि गमइ रे ।।५।। ९० रायना मूंकीया घायक चूकीया मरण काजि तेणि जाणीआए ॥६॥ ९१ मरणना भय तणो ताणीओ निशि निज प्राणस्युं श्री दत वनि गयो रे ॥७॥ ९२ भूख्यो तरस्यो सातमि वासरई तरुतलि प्राणधारणि रह्यो रे ।।८।। त्रोटक ९३ ते रह्यो तरुतलि अतिहिं भूख्यो भख्यउं फल अणजाणीउ । साधु मल दुर्गंध पूरव कमि तुझ तनु ताणीउ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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