Book Title: Vasupujya Jin Punya Prakash Stavan
Author(s): Shobhna R Shah
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ 26 ढाल-राग- देशाख ९४ ९५ ९६ ९७ तरुतलि तुं सोडिताणी उंघि सूतो घोरतो । हस्ति आवी राज दीधुं विचरि कर्मह चूरतो ॥ ९ ॥ ९८ यथा गलिय - बलदीई रथ न चालइ | तथा तुझ शरीरई किरिया न चालइ ॥३॥ यथा नव परिग्रह विना घर न चालइ । तथा तुझ शरीर विहारो न चालइ || ४ || यथा सिंधु जलवासु विणु नाव न चालइ । तथा तुझ शरीरइं समासन न चालि ॥५॥ १०० यथा शासनं साधु विणु नैव चालइ । तथा तुझ शरीरइं वेयावच्च न चालइ ||६| १०१ यथा आजीविका आलसू (सू) खा न चालइ । यथा जूठ बोला प्रति कुणि न चालइ ॥७॥ १०२ यथा दान पुण्यं विना यश न चालई । प्रतिलेखनादिक तथा तिं न चालइ ॥ ८ ॥ १०३ यथा गुरु विना पठन-पाठ न चालइ । यथा पंच भूतं विना जगि न चालई ||९|| १०४ यथा आहार निहारविणुं तणुं न चालइ । तथा वंदणावर्त्तपणितिं न चालई ॥ १० ॥ १०५ यथा पंचनिश्रा विना गुरु न चालइ । तथा तिं गुरुकाय विनयो न चालई ॥ ११ ॥ ९९ सुणि निजसरुप चिति भावीउ रे बहु उपशम रायनई आवीउ रे ॥१०॥ भवतारणी तपन मुनिपासइ नामइ तपस्या जेणि सर्व सुख शांति जाई ॥ १ ॥ भणि तपन वर राजऋषि तुझ शरीरई । विसकोव छइ जिम सदा फल करी रई ॥२॥ Jain Education International अनुसंधान- ३० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47