Book Title: Vajsaney Samhita Mantranamkaradya Anukramanika
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Page 67
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संहि. पू.अ. हन्तान्दु-पृथिव्यामुळन्तरिक्षमन्न्वेंमिपृथिव्यास्त्त्वानाभौसादयाम्म्यदि त्याऽउपस्त्ग्ग्ने हव्यरक्ष // 11 // [7] पवित्रेस्त्थह // पवित्रेस्त्थोबै Pण्णव्यौसवितुर्व-प्रसुवऽउत्त्पुनाम्म्यच्छिद्रेणपुवित्रैणसूर्यास्यरश्म्मिभिः // देवीरापोऽअग्ग्रेगुवोऽअग्ग्रेपुवोग्यममद्ययज्ञन्नयताग्नेयज्ञपति सुधातु यज्ञपतिन्देवयुवम् // 12 // युष्म्माऽइन्द्रः॥युष्म्माऽइन्द्रोवृणीतवृत्रतूथ्य यूयमिन्द्रमवृद्धिंवृत्रतूर्येप्प्रोक्षितास्त्थ // अग्नयेत्त्वाजुष्टम्प्रोक्षाम्यग्नीषो / गाभ्यान्त्वाजुष्टम्प्रोक्षामि॥ दैव्यायकर्मणेशुन्धद्वन्देवयज्यायैयद्वोशुद्धा 'जग्नुरिदंवस्तच्छुन्धामि // 13 // [2] शम्मासि // शर्मास्यवधू For Private and Personal Use Only

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