Book Title: Vajsaney Samhita Mantranamkaradya Anukramanika
Author(s):
Publisher:
View full book text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit नोविदधातुरायो माटुंतन्योयद्विलिष्टम् // 24 // दिविविष्ण्णुः॥ द्विविधि ष्णुऱ्याकस्तजागतेनुच्छन्दसाततोनि कोयोस्म्मान्द्वेष्ट्रियञ्चव्यन्छि सम्मोन्तरिक्षेधिष्ष्णुर्यक्रस्तुत्रैष्टुभेनच्छन्दसाततोनिभक्तीयोस्म्मान्वे / ष्ट्रियञ्चव्यन्द्विष्म्मपृथिव्यांधिष्ण्णुर्व्यवस्तगायत्रेणच्छन्दसाततोनि भक्तोयोस्म्मान्द्वेष्ट्रियञ्चव्यन्द्विष्ष्मोस्म्मादन्नादस्यैप्रतिष्ठायाऽअगन्म स्व-सञ्ज्योतिषाभूम // 25 // स्वयम्भूरसि // स्वयम्भूरैसिश्श्रेष्ठौर रिम्मर्वरोंदाऽअसिवोंमेदेहि // सूर्य्यस्यावृतमन्न्वावर्ते // 26 // अग्ने गृहपते / सुगृहपतिस्त्वयाग्नेहङ्ग्रहपतिनाभूयासम्सुगृहपतिस्त्वम्मयाग्ने, For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112