Book Title: Vairagya Shataka Author(s): Purvacharya, Gunvinay Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar View full book textPage 7
________________ भाषांतर सहित वैराग्य- Thd| अमूल्य रत्नतुल्य एवो, अने हृदयने आनंद उत्पन्न करनार एवो, अने उंबराना फूलनी पेठे दुर्लभ एवो तुं | शतकम् | Ka अमारे छे. एज कारण काटे क्षणमात्र पण तारा वियोगने अमे सहन करवाने समर्थ नथी. ते कारण माटे अमारे हे जात! ज्यांसुधी अमे जीवीए खांसुधी तुं घरमा रहे. पछौं सुखे करीने प्रवज्या ग्रहण करजे, एटले दीक्षा D) लेजे.” त्यार पछी ते कुमार कहेतो हवो. "हे अंब ! तमारूं कहे सत्य छे. परंतु आ मनुप्यनो भव अनेक Inf| जन्म जरा मरण रूप, तथा शरीर अने मन संबंधि अतिशे दुःखनुं वेदq पटले भोगवQ ते रुप डपद्रवे करीने पराI भव पामेलो एवो, अने अध्रुव कहेता अशाश्वत एवो; अने संव्या समयनां वादलांना रंग सरखो एवा, अने जलना परपोटा सरखो एवो; अने वीजलीना सरखो चंचल एवो; अने सडी जवु. पडी जवु, नाश पामधुं, ए छे | धर्म कहेतां स्वभाव ते जेनो एवो छे. ते प्रथम अथवा पछी जरूर खागवा योग्य छे. एटले मकवोज पडशे. A हवे कोण जाणे आपणा मध्ये कोण पहेलू परलोके जशे? अथवा कोण पछी जशे? एवी खबर पडती नथी. ते कारण माटे तमारी आज्ञाए करिने हमणांज हुं दीक्षा लेवाने इत्थं इच्छु छु." ए रीते कुमारे का. त्यार पछी | फरीने माता पिता ते कुमारने कहेतां हवा. "हे पुत्र! आ तहार शरीर विशेष रूपवालं एg, अने लक्षण xव्यंजन रूप गुणे करीने सहित एवू, अने नाना प्रकारनी व्याधिए करीने रहित एवं, अने सौभाग्यपणाए करीने | सहित एवू अने न हणाएलां एवां, अने उदात्त फहेता मनोहर अने कांत कहेता मनोज्ञ एवां, पांच इंद्रिओ * लशण-हाथ पगनी रेखादिक... - व्यंजन-प्रप तिलकादिक. TOGADAMGUninsuminuMMADHNAAD Jain Education Internal 1110_05 For Private & Personal Use Only Mww.jainelibrary.orgPage Navigation
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