Book Title: Vairagya Shataka Author(s): Purvacharya, Gunvinay Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar View full book textPage 6
________________ वैराग्य शतकम् 118 11 Jain Education Interna ते धर्म करवानो मने अभिलाष थयो छे." ते अवसरे से माता पिता कहेतां हवा. "हे पुत्र ! तुं धन्य छं, तुं कृतपुण्य छं तुं कृतार्थ हुं. एटले तने धन्य छे अने कर्यु छे पुण्य ते जेणे एवो तुथयो, अने कर्यो छे अर्थ नाम प्रयोजन ते जेणे एवो तु थयो. जे कारण माटे तें वीरस्वामीजीनी समीपे धर्म सांभल्यो, अने वली ते धर्म तने रुच्यो, ते कारण माटे." त्यारपछी ते कुमार फरीने ए प्रकारे कहेतो हवो. "हे अंब! हे तात! हुं ते धर्म सांभलवादिके करीने संसा|रना भये करीने उनि एटले उपरांठा मनवालो एवो अने जन्म मरणना भयथकी भय पामेलो एवो थयो छं, ते | कारण माटे तमारी अनुज्ञाए करीने एटले रजाए करीने श्रीवीरप्रभुजीनी समीपे प्रवज्या ग्रहण करवाने इच्छं छं," एवं क. त्यारपछी ते कुमारनी माता अनिष्ट कहेतां वल्लभ नहीं एवं अने एकांतपणे अगगमतुं एवं अने अप्रिय एवं अने प्रथम कोइ दहाडो न सांभळेलं एवं, ते कुमारनं वचन सांभळीने तत्काल शोकना समूह | प्रत्ये पामी. एटले शोकातुर थई, अने दीन अने उदास एवा भने करीने सहित छे मुख ते जेतुं एवी थइ सती, मूर्छा | पामीने अंगणतलनें विषे एटले घरनाआंगणामां घसती सर्व अंगोए करीनें पडी. ते अवसरे दासीओए शीघ्र, सोनानो कलश लावीने ते कलशना मुखथकी नीकलतुं एवं शीतल अने निर्मल एवं जल तेनी धाराओए करीने एटले सुगंधवाली पाणीनी धाराओए छांटी, अने कर्यो छे ठंडा वायरानो उपचार ते जेने एवी करी सती चेतना पामीने विलाप करती थकी पुत्र प्र ये आ प्रकारे कहती हवी, "हे जात! तु अमारे एकज पुत्र छे, अने अमने इष्ट | कहेतां वल्लभ, अनेकांत कहेतां मनोज्ञ, अने प्रिय कहेतां प्रियकारी एवो, अने आभरणना करंडिया समान, एटले 2010_05 For Private & Personal Use Only भाषांतर सहित ॥ ४ ॥ www.jainelibrary.orgPage Navigation
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