Book Title: Vairagya Shataka
Author(s): Purvacharya, Gunvinay
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar

View full book text
Previous | Next

Page 4
________________ اللى انهيانغلق حان 15// आ. (संसारंमि के०) संसारने विषे [सुहं के०] सुख जे ते (नत्थि के०) नथी. (जाणंतो के०) ए प्रकारे जाणतो एवो |३६ वैराग्य-561 (जीवो के०) जीव जे ते (जिणदेसियं के०) जिनराजाना प्ररूपेला (धम्म के०) धर्मने (न कुणइ के०) नथी करतो! ॥१॥ || भाषांतर शतकम् भावार्थः-अनेक प्रकारना आधि, व्याधि, अने उपाधि तेणे करीने आ संसार भरेलो छे, एटले आ असार ) सहित ॥ २॥ | संसारमा काइ पण सुख नधी. एवी रीते आ जीव जाणे छे, देखे छे,अने अनुभवे छे तोय पण आ मूढ जीव जिन bril परमात्माना कहेला धर्मने नथी करतो!! ____ आ प्रथम गाथामां एम कधु के, आ जीव संसारनु असारपणुं जाणे छे, तोये पण श्रीजिनप्रणीत धर्मने नथी | | करतो; एवं कहूं. परंतु न्हानी उम्मरवाला अने तेज भवने विषे मोक्ष जनारा अने श्रोधोरभगवाननी देशना फक्त | JE | एकज वार सांभलवायी दृढ वैराग्यवान् धएला, एटलुंज नही पण ते संसारना असारपणा संबंधी माता पिता साथे | प्रत्युत्तर करी छेवटे माता पितानी आज्ञा लेह जेणे बाल्यावस्थामां दीक्षा अंगीकार करी, एवा श्रीअतिमुक्तकुमारनु वृत्तांत श्रीअंतगडदशांग अने भगवत्यादिसूत्रने अनुसारे नीचे प्रमाणे जाणवू. कथा. पोलासपुर नगरने विषे विजय नामे राजा, तेनी श्रीनामनी पट्टदेवी एटले पट्टराणी, ते बे जणनो | अतिमुक्त एवे नामे पुत्र हतो. ते पुत्र बहु इत्यमे करीने महोटो भयो, अनुक्रमे करीने छ वर्षनो थयो, ते अवसरे JCJDDLDADबाबासाDDODCOM للنا للفعالياللاكا للخالق المكالما Jain Education Interne 010_05 For Private & Personal use only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 176