Book Title: Uvassaggaharam stotra Swadhyay
Author(s): Bhadrabahuswami, Amrutlal Kalidas Doshi, Subodhchandra Nanalal Shah
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal
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(૨) તેર ગાથા પ્રમાણ શ્રી ઉવસગ્ગહર સ્તોત્ર
उपसग्गहरं पासं पासं वदामि कम्मघणमुक्क। विसहरविसनिन्नास मंगलकल्लाणआवासं ।।१।। विसहरफुलिंगमंतं कंठे धारेइ जो सया मणुओ। तस्स गहरोगमारिदुद्वजरा जति उवसाम ॥२॥ चिट्ठ र दु (दू) रे मतो तुझ पणामो वि बहुफलो होइ । नरतिरिएसु वि जीवा पावति न दुक्खदोगचं ।।३।। ॐ हाँ श्रीँ ऐ ॐ तुह सम्मत्ते लद्धे चिंतामणिकप्पपायवमहिए । पावंति अविग्घेण जीवा अयरामरं ठाणं ।।४।। ॐ हाँ श्री क्लीं तुहदसणेण सामिय पणासइ रोगसोगदोहग्गं । कप्पतरुमिव जायइ ॐ तुहदसणे मे सफलो होउ ||५|| . ॐ अमरतरूकामघेणु चिंतामणिकामकुंभमाइये । सिरिपासनाह सेवा गहा सव्वे वि दासत्तं ॥६।। ॐ नमयदाणे पणट्टयकम्मटुसंसारे । परमटूनिटिअट्ठे अट्ठमहागणाधिसिरि वंदे ।।७।। इह संथुओ महायस भत्तिभरनिब्मरेण हियएण । ता देव दिज्ज बोहिं भवे भवे पास जिणचंद ।।८।। ॐ ह्रा नमिउण विपणासय मायावीएण धरणनागिंदं । सिरिकामराज कलो पासजिणदं नमसामि ।।९।। ॐ तं नमह पासनाहं धरणिंदनमंसियं दुहप्पणासेइ । तस्स पभावेण सया नासंति सयलदुग्आिई ॥१०॥ एए समरंताण मुणि न होइ वाहि न तं महादुक्खं । नामंपि हु मंतसमं पयंडनस्थित्थ संदेहो (॥११॥) जल जलण भय तह सप्प सिह चोरारी संभवे खिप्पं । जो समरेइ पासपहुं पूहवि न कयावि किं तस्स (॥१२।।) इह लोगट्ठी परलोगढी जो समरेइ पासनाहं तु । सो सिज्झइ उक्कोसं इय नाहं सरह भगवंतं ॥१३।।
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