Book Title: Uvassaggaharam stotra Swadhyay
Author(s): Bhadrabahuswami, Amrutlal Kalidas Doshi, Subodhchandra Nanalal Shah
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 257
________________ श्री उवसग्गहरंस्तोत्रपादपूर्तिरूपं ॥ श्रीपार्श्वस्तोत्रम् ॥ (श्री तेजःसागरप्रणीतम् ) श्री गुरुभ्यो नमः । उवसम्गहरं पासं. वंदिअ नंदिअ गुणाण आवासं । मइसुरसूरि सूरिं, थोसं दोसं विमुत्तूणं ॥ १ ॥ जह महमहिममहग्घ, पासं वंदामि कम्मघणमुकं । तह मह गुरुकमजुअलं, थोसामि सुसामि भिच्चुव्व ॥ २ ॥ . संसारसारभूअं, कामं नामं धरति निअहिअए । विसहरविसनिन्नासं, धन्ना पुन्ना लहंति सुहं ॥ 3 ।। सारयससिसंकासं, वयणं नयणुप्पलेहि वरभासं । कुणइ कुकम्मविणासं मंगलकल्लाण आवासं ॥ ४ ॥ विसहरफुलिंगमंतं कुम्गहगहगहिअविहिअपुव्वत्तं । कुवलयकुवलयकंत, मुहं सुहं दिसउ अच्चतं ॥ ५ ॥ गुरुगुरुगुणमणिमालं, कंठे धारेइ जो सया मणुओ । सो सुहगो दुहगो णो, सिवं वरइ हरइ दुहदाहं ॥ ६ ॥ गुरुपायं गुरुपायं, गयरायगई हु नमइ गयरायं । तस्स गहरोगमारी-सुदुट्ठकुट्ठा न पहवंति ॥ ७ ॥ भूवालभालमउड-द्विअमणिमालामऊहसुइपायं । जो नमइ तस्स निच्चं, दुट्ठजरा जंति उवसामं ।। ८ ।। चिट्ठउ दूरे मंतो, तुह संतो मज्झ तुझ भत्तोए । सव्वमपुव्वं सिज्झइ, झिज्झइ पावं भवारावं ॥ ९ ॥ अहवा दूरे भत्ती, तुझ पणामो वि बहुफलो होइ । संसारपारकरणे, सुजाणवत्तु (तं) व्व जाणाहि ॥ १० ॥ ॥ . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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