Book Title: Uttaradhyayansutram Part 02
Author(s): Vadivetal, Shantisuri,
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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उत्तराध्य.
बृहद्वृत्तिः
याध्य
॥४९६॥
CREARRECTRONICLES
ततश्च श्रामण्यं 'निश्चलं' स्थिरं 'फासे'त्ति अस्पाक्षीद-आसेवितवान् , शेषं स्पष्टमिति सूत्रद्वयार्थः ॥ उभयोरप्युत्तर- रथनेमी६ वक्तव्यतामाह
उग्गं तवं चरित्ता णं, जाया दुन्निवि केवली। सव्वं कम्म खवित्ता णं, सिद्धिं पत्ता अणुत्तरं ॥४८॥४ | उग्रं कर्मरिपुदारणतया 'तपः' अनशनादि 'चरित्ता णं'ति चरित्वा 'जातो' भूतौ 'द्वावपीति रथनेमिराजीमत्यौ | 'केवली'ति केवलिनौ 'सर्व' निरवशेषं 'कर्म' भवोपग्राहि 'खवित्ता णति क्षपयित्वा सिद्धि प्राप्तावनुत्तरामिति सूत्रार्थः ॥ सम्प्रति नियुक्तिरनुश्रियतेसोरियपुरंमि नयरे आसी राया समुद्दविजओत्ति। तस्सासि अग्गमहिसी सिवत्ति देवी अणुजंगी ४४३३ तेसिं पुत्ता चउरोअरिट्रनेमी तहेव रहनेमी। तइओ अ सच्चनेमी चउत्थओ होइ दढनेमी ॥४४४॥ जो सो अरिटुनेमी बावीसइमो अहेसि सो अरिहा । रहनेमि सच्चनेमी एए पत्तेयबुद्धा उ॥ ४४५॥ रहनेमिस्स भगवओ गिहत्थए चउर हुँति वाससया।संवच्छर छउमत्थो पंचसए केवली हुंति ॥४४६॥ | ॥४९॥ नववाससए वासाहिए उ सवाउगस्स नायवं । एसो उ चेव कालो रायमईए उ नायवो ॥ ४४७ ॥
अत्र च प्रथमगाथया रथनेमेरन्वय उक्तः। 'तेसिं'ति 'तयोः' समुद्रविजयशिवादेव्योः, प्रसङ्गतश्चेह शेषपुत्राभिधा
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