Book Title: Uttaradhyayansutram Part 02
Author(s): Vadivetal, Shantisuri, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 568
________________ केशिगौत मीयाध्य० उत्तराध्य. संथुया ते पसीयंतु, भयवं केसी गोयम् // 88 // तिमि / बृहद्वृत्तिः ___ // केसिगोयमिजं // 23 // // 512 // संथुएत्युत्तरार्द्ध / 'संस्तुतौ' सम्यगभिवन्दितौ 'तो' उक्तरूपो प्रसीदता' प्रसादपरौ भवतां भगवत्केशिगौतमाविति | हासत्रार्थः / 'इति' परिसमाप्ती. ब्रवीमीति पर्ववत / उक्तोऽनुगमः, सम्प्रति नयास्तेऽपि प्राग्वत // इत्यत्तराध्ययनश्रत-15 स्कन्धटीकायां श्रीशान्त्याचार्यविरचितायां शिष्यहितायां केशिगौतमीयं नाम त्रयोविंशमध्ययनं समाप्तमिति // KARARGARRIA Grzooxesxx.sx6idesxecxasatande.sxxesxex86266366x66265265366305206305:4sxesxebi66162 इति श्रीशान्त्याचार्यकृतायां शिष्यहितायामुत्तराध्ययनटी० त्रयोविंशमध्ययनं समाप्तम् // इति श्रेष्टि देवचन्द्र लालभाई-जैनपुस्तकोद्धारे-ग्रन्थाङ्कः 36. // 512 // Jain Education International For Personal &Private Use Only www.jainelibrary.org

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