Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 04
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भाषांतर अध्य०१५ ८६४॥ [थायरक्खिए] पोतार्नु दुर्गतिथी रक्षण करतो होय (पण्णी) प्राज्ञ तथा जे [अभिभूय] परिषहने सहन करी रहेतो होय तथा जे उत्तराध्य- [सव्वदंसी) सर्वने पोता जेवाज जोता होय [जे] जे(कम्हिवि)कोइने विषे(न मुछिए)मूर्छावाळो न होय(स भिक्खू)ते भिक्षु कहेवाय यनमूत्रम् ___व्या०-पुनः स भिक्षुरित्युच्यते. स इति कः ? यो रागोपरतं यथा स्यात्तथा रागरहितं यथा स्यात्तथा चरेत्. ८६४॥ परं कीदृशः सन् ? विरतोऽसंयममार्गान्निवृत्तः पुनः कीदृशः सन् ? वेदविदात्मरक्षितः, वेद्यते ज्ञायतेदर्थोऽनेनेति वेदः S सिद्धांतस्तस्य वेदनं विद् ज्ञानं वेदवित् सिद्धांतज्ञानं, तेनात्मा रक्षितो दुर्गतिपतनायेन स वेदविविदात्मरक्षितः पुनः कीदृशः? पन्ने पाज्ञो हेयोपादेयधुद्धिमान, पुनर्योऽभिभूय परीषहान् जित्वा तिष्टतीत्यध्याहारः पुनः कीदृशः? सर्व| दर्शी, सर्व प्राणिगणमात्मवत्पश्यतीति सर्वदर्शी. पुनर्यः कस्मिंश्चित्सचित्ताचित्तवस्तुनि न मूछितोऽलोलुप इत्यर्थः॥२॥ पुनः ते भिक्षु कहेवाय. ते कोण ? जे रोगोपरत राग रहित जेम थाय तेम विचरे, केवो थइने ? विरत असंयम मार्गथी निवृत्त थइने, तेमज वेदविदात्मरक्षित-सिद्धांत ज्ञानवडे दुर्गति पतनथी जेणे पोतानो आत्मा रक्षित छे एवो, वळी माज्ञ=आ वस्तु हेय-त्याज्य छे तथा आ उपादेय ग्राह्य छे; आवी विवेक बुद्धिवाळो, तथा जे अभिभूय परीषहादिकने जीतीने (स्थित थयेलो)। DEL आटलो अध्याहार छे. पुनः ते केवो ? सर्वदर्शी सर्व पाणिगणने आत्मसमान जोनारो, तथा कोइपण सचित्त अथवा अचित्त वस्तुमा odil मूर्छित लोलुप न थाय तेवो. २ आकोसवहं विदित्तु धीरे । मुणी चरे लाढे निच्चमायगुत्ते । अविग्गमणे असंपहिहे । जे कसिणं अहियासए स भिक्खू।। [आक्कोसवहं] आक्रोश थये सते [चिहत्तु] स्वकृत कर्मचें फळ छे जाणी (धीरे मुणी) धीर एवो साधु (लाढे) संयममा तत्पर तथा For Private and Personal Use Only

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