Book Title: Updeshpad Part 01
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Lalan Niketan Madhada

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Page 346
________________ 18 ॥३४३ 13 तेण नवाओ-विणएण जहा सुरा पसीयंति, तो उत्तमविणयसमन्निएण मे इत्थ हो य व्वं. ॥ १५ ॥ विहियं उठक्खमणं-बंतच्चराइओ तहा विणो, वन्नगकुञ्चगमनग–माइ सव्वं नवं च कयं. ॥ १६ ॥ हाम्रो सदसे वत्ये-परिहित्था पोत्तियाइ मुहवंधं, काऊणगुणाए-कलसेहिं नहिं एहावित्ता.-॥ १७ ॥ तं चिंतेइ सपणयं -पना पाएसु निवमिओ लणइ, खमह जमेत्थ वरवं-मए तो तोसमावलो.-॥ १०॥ जक्खो नणेश जं तुज्झ-रोयए तं वरेहि वरमेगं, सो नणइ लोगमारिं-मा कुण एसुच्चिय वरो मे. ॥ १५ ॥ नणियं जक्खण जहा-जं तं न हओ हणामि नो अन्ने, तो अन्नं वरचेत्तो—मग्गसु दूरं पसन्नो ते. ॥ २०॥ तो जस्स एगदेसंपि-क हवि पासामि उपयमाश्स्स, चित्तमि तस्स दिठाणु-सारिरूवं समग्गंपि.-॥२१॥ * के देवो बिनयथी प्रसन्न थाय छे, माट मारे यहां अति उत्तम विनय साचववो. १५ तेणे वे उपवास कर्या तया ब्रह्मचर्य र वगेरे पाळी विनय साचव्यो, तेमज त्यां नवो रंग लगाव्यो अने वालाकुंची तथा सरावळां वगेरे सघळां नवां दाखल कर्या. १६ बाद स्नान करी दशीवाळां वे वस्त्र पढेरी आठ फमना रुमालथी मुख बांधी नवा कळशोयी याने नवराव्यो. १७ पनी प्रीतिपूर्वक तेनुं चिंतन करी पगे पर ने कहवा लाग्यो के में जे तमारो अपराध कर्यो होय ते माफ करो. आ उपरथी यक संतोष पाम्यो. १० ते या कहवा लाग्यो के जे तने रुचे ते एक वार माग. त्यारे तेणे कर्दा के हुं एज वर मागुं बु के तारे लोकोने मारवा नहि. १ए त्यारे यह कयु के तन में न मायों एटले हवे बीजाप्रोने पण नहि मारुं. माटे तुं हजु ए उपरांत वीजें कंडक माग, केमके हुं तारा पर खूब खुशी थया बुं. १० त्यारे तेणे माग्यु के हुं जे कोइ धिपदादिकनुं एक र देशनाग जोडं तेनुं सघळु रूप दीवानी माफक चितरी शकुं एम करो. २१ एम तणे मागतां यह ते वात बरोबर कबूल श्री उपदेशपद.

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