Book Title: Updeshpad Part 01
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Lalan Niketan Madhada
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लोकापवादजयेन रामेणावज्ञायां कृतायां शोके च संपन्ने कदाचित् सपत्नी प्रयुक्ता सीता--प्राबिहे इति-आलिखितवती चरणौ रावणसंबंधिनौ-नपरि पादप्रदेशाद
क् न दृष्टो मया असावित्ययोगो लेखनस्य सीतया कृतः . ततः सपत्न्या लब्धलिपया-अस्थित्तासासणेचेवत्ति-अथितायाः अर्थित्वस्य शासना कयना च समुच्चये एवं पादाले-खदर्शनन्यायेन कृता . अत्र च अर्थिताशासने व्याख्यातेपि अस्थित्ता सासणे इति यः पाठः स प्राकृतलक्षणवशात्.
___तच्चेदं—नीया लोय मभूया य-आणिया दोवि बिंदुदुब्जावा अत्यं वहंति तंचिय-जो एसिं पुव्वनिदिछो. ॥ १॥
(मूळगाथा)-गंही मुरुंगूढं-सुत्तं समदंग मयणवट्टो य, पावित्त मयणगाएटले सीता तेनु रावणे हरण कर्यु. बाद ते पाठी आवतां बोकापवादनी बोकथी रामे अवज्ञा करी एटले तेणीने शोक थयो. एवामां कोई शोक्यनी प्रेरणाथी सीताए रावणना पग चितर्या अने कां के पायी ऊपर में जोएन नथी तेथी तेणे वाको चित्र नहि चितयु. बाद शोक्ये लाग जोइ ते पगनां रामचंद्रने बतावी कयुं के हजु पण ए रावणनी इच्छा राख्या - करे छे. यहां अर्थिताशासने " ए संस्कृत पदनुं प्राकृतमां " अत्थियासासणे " एवं रूप थाय तेना बदले अत्थितासासणे एवू रूप कर्यु ले ते प्राकृतना प्रयोगोनी विचित्रताना लीधे छे..
प्राकृतमा एम कहे छ के बिंदु (अनुस्वार) अने हिर्जाव लोप कया होय अगर न होय त्यां प्राण्या होय तो पण अर्थ तो जे पूर्वे रहेलो होय ते ज कायम रहे छ. ? .. ( मळ गायाना अर्थ )-ग्रंथिना घारमा मुरुंगराजाने गूढ छेमावाळु सूत्र, सरखी करेली लाकरी अने मीणनो
श्री उपदेशपद.

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