Book Title: Tulsi Prajna 2001 07
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 13
________________ अनेकान्तवाद -आचार्य महाप्रज्ञ जैन-दर्शन ने सम्यक्दर्शन को बहुत महत्व दिया है। हम देखते हैं किन्तु देखने के पीछे एक विशेष प्रकार का बोध होता है। हम पदार्थ को जानते हैं किन्तु द्रव्य को नहीं जानते। हमारा सारा दृष्टिकोण पदार्थवादी है। हम मनुष्य को जानते हैं, आत्मा को नहीं जानते । हम कीड़े-मकोड़ों को जानते हैं, आत्मा को नहीं जानते। हम पेड़-पौधों को जानते हैं, आत्मा को नहीं जानते। पेड़-पौधे, कीड़े-मकोड़े, गाय, भैस और आदमी मूल वस्तु नहीं है, मूल द्रव्य नहीं है, मूल द्रव्य सदा पर्दे के पीछे रहता है। जो सामने आता है, वह उसका एक कण या एक पर्याय होता है। हम पर्याय को देखते हैं, द्रव्य को नहीं । पेड़-पौधे, कीड़े-मकोड़े, गाय, भैस और आदमी ये सब पर्याय हैं। हम पर्याय को देखते हैं, पर्याय को जानते हैं। इसीलिए हमारा आग्रह पर्याय में आबद्ध हो जाता है। सरल है पर्याय का दर्शन पर्याय का दर्शन बहुत सरल है। इसीलिए पर्यायवादी दर्शन बहुत वैज्ञानिक दर्शन लगता है। पर्यायवादी दर्शन जो सामने है उसका निरूपण करता है और जो सामने नहीं है उसे अस्वीकार कर देता है। यह बहुत सीधा मार्ग है । जो सामने है, उसे व्याकृत कर दिया गया और जो सामने नहीं है उसे अव्याकृत कर दिया गया। यह पर्यायवादी दर्शन है। मनुष्य एक पर्याय है। किन्तु क्या वह केवल पर्याय ही है? पर्यायवादी के आधार पर पहले और पीछे की बात नहीं सोची जा सकती। मनुष्य पर्याय है। उससे पहले क्या था और बाद में क्या होगा? पर्यायवाद के आधार पर इसका निर्धारण नहीं किया जा सकता। जो व्यक्ति अभी है, वह बाद में क्या होगा और वह पहले क्या था, यह पर्यायवादी दृष्टिकोण से नहीं सोचा जा सकता। - - तुलसी प्रज्ञा अंक 113-114 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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