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सहिष्णुता एवं उनको समझने की कोशिश ही पारिवारिक शांति को फलित कर सकती है। उग्र स्वभाव वाले सदस्य के साथ व्यवहार चिकित्सा प्रभावी होती है । इस चिकित्सा में विधेयात्मक व्यवहार का शिक्षण दिया जाता है तथा उस सदस्य को यह सिखाया जाता है। कि कैसे विधेयक व्यवहार के लिए पुरस्कृत किया जाय एवं कैसे अहिंसात्मक अनुशासन की आदत डाली जाये। अनेकान्त आधारित प्रयोगों में विधेयात्मक दृष्टिकोण के विकास हेतु अनुप्रेक्षाओं के अभ्यास का सहारा लिया गया। यद्यपि अल्पकालिक प्रयोगों से उग्र व्यवहार पर पूर्ण नियंत्रण तो नहीं हो सका किन्तु उग्र व्यवहार के स्थान पर शांति पूर्ण विकल्पों को विकसित करने में सहयोग अवश्य मिला। एक बार जब उग्र स्वभाव वाला व्यक्ति यह अनुभव कर लेता है कि उसके व्यवहार ने किसी को कष्ट पहुंचाया है तो अगले स्तर पर उसमें आत्मनिरीक्षण एवं संबंध निर्माण की तत्परता रहती है। इस स्तर पर यह सदस्य दूसरों की अनुभूतियों को अनुभव करता है तथा अपने उग्र व्यवहार के लिए उत्तरदायी कारणों को उद्घाटित करता है। इस सदस्य की अनुभूति दूसरों के प्रति संवेदना एवं सहानुभूति का आधार तैयार करती है ।
समूह सहभागिता के अन्तर्गत जब समूह में किसी समस्या पर एक दूसरे के विचार सुनते हैं तथा समान समस्या पर एक दूसरे के विचारों एवं दूसरे व्यक्तियों के क्या निष्कर्ष हैं; इनके आदान-प्रदान से उद्घाटित विचार एवं अनुभवों का उपचारात्मक प्रभाव देखने को मिलता है । ऐसे एक उपचारात्मक सत्र, जिसमें 15 दिनों में 12 घण्टे का समय दिया गया एवं व्यक्तिगत परामर्श भी समाविष्ट रहा, के निष्कर्ष ये दर्शाते हैं कि सहभागी व्यक्ति में चिन्ता, अवसाद एवं द्वेष की भावना में कमी तथा त्रुटियों के आत्म-स्वीकरण से आत्म-सम्मान की अनुभूति हुई । यद्यपि इस कार्यक्रम का अनुवृत्ति कार्यक्रम नहीं किया जा सका जिससे यह पता लग सकता कि इन व्यक्तियों पर उस सत्र का प्रभाव दीर्घावधि तक बना रहा या नहीं। यह प्रयोग पारिवारिक समस्याओं के निदान हेतु सहासिका का अनेकान्त आधारित प्रयोग था जो पारिवारिक शांति की दृष्टि से कारगर कहा जा सकता है।
पारिवारिक शांति हेतु अनेकांत के मुख्य प्रयोग अहिंसा प्रशिक्षण एवं अनुप्रेक्षाओं पर आधारित है.
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(i) अन्तर्जगत् में प्रशिक्षण का महत्त्वपूर्ण तत्त्व संवेग संतुलन है। क्रोध, भय, घृणा, द्वेष आदि संवेग पारिवारिक अशांति के रूप में अपनी प्रतिक्रिया प्रकट करते हैं। संवेग संतुलन के लिए अनुप्रेक्षाओं का अभ्यास अत्यन्त कारगर है।
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(ii) मानवीय संबंधों का परिष्कार, प्राणी जगत् के साथ संबंधों का विस्तार एवं पदार्थ जगत् के साथ संबंधों की सीमा - ये तीन सूत्र बाह्य जगत के प्रशिक्षण के लिए हैं।
पारिवावारिक शांति हेतु प्रयुक्त प्रशिक्षण के चार आयाम हैं - हृदय परिवर्तन, विचार परिवर्तन, जीवन-शैली परिवर्तन एवं व्यवस्था परिवर्तन । हृदय परिवर्तन मूलतः व्यवहार
। तुलसी प्रज्ञा अंक 113-114
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