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परिवार में अशांति का प्रमुख कारण होता है। जिन परिवारों में मित्रवत् संबंधों की कमी है अथवा जो समाज से कटे हुए हैं वे पारिवारिक अशांति के अधिक शिकार होते हैं।
समाजशास्त्रीय सिद्धान्त के अनुसार छोटे-छोटे समूहों में हिंसा की उप संस्कृति हो जाती है, जो वर्तमान मूल्यों एवं मापदण्डों को भिन्न संदर्भो में प्रतिस्थापित कर कलह एवं हिंसा फैलाती हैं, जिनका शिकार परिवार भी हो जाता है। यहां रोकथाम के उन प्रयत्नों की अपेक्षा है जिससे हिंसा भावी पीढ़ी में संक्रान्त न हो।
सामान्य व्यवस्था सिद्धान्त के अनुसार पारिवारिक व्यवस्था अशांति के लिए जिम्मेदार होती है। संसाधन सिद्धान्त के अनुसार जिन व्यक्तियों के पास सामाजिक वैयक्तिक संसाधन कम होते हैं, ऐसे व्यक्ति प्रभुत्व स्थापित करने की दृष्टि से परिवार के अन्य सदस्यों के साथ या तो दुर्व्यवहार करते हैं अथवा शारीरिक प्रताड़ना द्वारा उन पर प्रभुत्व स्थापित करने की कोशिश करते हैं। पारिस्थितिकी सिद्धान्त के अनुसार पारिवारिक अशांति बच्चों एवं अभिभावक, परिवार एवं पड़ौस के बीच बेमेल संबंधों से उत्पन्न होती है अर्थात् ऐसे संबंधों में या तो तनाव की स्थिति हो अथवा लक्ष्य प्राप्ति में कोई रुकावट हो तो पारिवारिक अशांति पैदा हो जाती है। सामाजिक नियंत्रण सिद्धान्त के अनुसार पड़ोसियों के साथ बेमेल संबंध परिवार के परिवेश पर कुप्रभाव डालते हैं। पुरुषप्रधान पारिवारिक ढ़ांचा पारिवारिक अशांति का ऐतिहासिक कारण है ही। पारिवारिक शांति एवं अनेकान्त
अशांति का मूल आग्रह है तथा आग्रह की स्थिति में अपने विचारों के प्रति मोह एवं दूसरों के विचारों के प्रति तिरस्कार का भाव रहता है। आग्रह असहिष्णुता को एवं असहिष्णुता संघर्ष, हिंसा एवं अशांति को जन्म देती है। अनेकांत जगत की स्थूल और सूक्ष्म दोनों अवस्थाओं को जानने की दार्शनिक विधि है जिसके द्वारा अनाग्रह का विकास किया जा सकता है, विवादों को सुलझाया जा सकता है तथा संघर्ष को समाप्त कर पारिवारिक शांति प्राप्त की जा सकती है। परस्पर विरोधी रुचि, आदत, संस्कार आदि के फलस्वरूप आज प्रत्येक परिवार विवाद, संघर्ष, हिंसा एवं अशांति से पीड़ित हैं। जब हम परस्पर विरोधी लगने वाले तथ्यों को अनेकान्त की दृष्टि से देखते हैं तो समाधान मिलने की संभावना प्रबल हो जाती है । पारिवारिक शांति हेतु अनेकान्त सहिष्णुता, सामंजस्य, सहअस्तित्व, सापेक्षता एवं समन्वय - ये पांच सूत्र देता है, जिनके आधार पर शांतिपूर्ण पारिवारिक सहवास संभव हो सकता है।
अनेकांत सह-अस्तित्व की व्याख्या व्यावहारिकता के धरातल पर करता है। पदार्थ की प्रकृति ही ऐसी है कि उसमें परस्पर विरोधी तत्त्वों का समावेश होता है। अनेकान्त को समझ लेने पर पारिवारिक जीवन में व्यक्ति भिन्न रुचि, आदतें एवं संस्कार आदि को भिन्न दृष्टि से समझने के योग्य हो जाता है। वह दूसरों के विचारों को आदर देने लगता है तथा इस तरह परिवार में शांत सहवास की भावना का विकास होता है। 60 -
तुलसी प्रज्ञा अंक 113-114
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