Book Title: Tulsi Prajna 2001 07
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 11
________________ व्याख्यायित की जाए तो सह-अस्तित्व की, समन्वय की, अमन शांति की स्थिति संभव हो सकती है। अनेकान्त से सह-अस्तित्व, सापेक्षता और स्वतंत्रता का विकास होता है। अनेकान्त चिन्तशैली है सत्य को सझने की। अनेकान्त एक दिशायंत्र है सही दिशा में सही रास्ता पाने का। अनेकान्त एक विश्वास है दो विरोधी गुणों में परस्पर सह-अस्तित्व के होने का। अनेकान्त एक दिशा-दर्शन है 'ही' नहीं, 'भी' के साथ चलने का जहां सारे वैचारिक, मानसिक द्वन्द्व, संघर्ष खत्म हो जाते है। विचार-भेद, आस्थाभेद और रुचिभेद के बीच भी सत्य को तलाशा जा सकता है, यदि सापेक्ष चिन्तन हो । सह-अस्तित्व की स्वीकृति हो । अनाग्रही जीवनशैली हो । सम्यक् दृष्टिकोण हो । संभावनाओं की प्रस्तुति में हमारा विश्वास हो।। वस्तु में अनन्त पर्यायें होती हैं। इसका मतलब है कि विकास की अनन्त संभावनाएं अस्तित्व में छुपी हैं। जरूरत है दृष्टि परिष्कार की। पर्याय परिवर्तन का शाश्वत नियम अनेकान्त का व्याख्या सूत्र कहा जा सकता है। व्यक्त में जो कुछ हम देखते हैं, सुनते हैं, सोचते हैं, स्वीकार कर जीते हैं वह सत्य का सिर्फ वह एक अंश है, इसलिए उसे ही अन्तिम सत्य मानकर नहीं चल सकते, क्योंकि इस स्वीकृति में अनेक आग्रह, विरोध, संशय, विचार, भय, भेद पैदा हो सकते हैं। अव्यक्त की सत्ता भी स्वीकार कर चलें। ज्ञान और आचार की समन्विति हर युग की मांग रही है, क्योंकि कोरा ज्ञान दीवार पर टंगी तस्वीर है जो सौन्दर्य देती है मगर प्राणवत्ता नहीं। कोरा व्यवहार लक्ष्यहीन सफर है जो चलता है मगर दिशाविहीन । सिद्धान्त को जानकर प्राप्त ज्ञान को चरित्र में ढालना जीवन की सार्वभौम सत्ता की खोज में उठा सही कदम कहा जा सकता है। अनेकान्त केवल तत्त्वदर्शन नहीं है, सम्पूर्ण जीवन का दर्शन है। इसे समझने के लिए हमें आस्था और अभ्यास दोनों की जरूरत है। हम संकल्पित होकर साधना करें कि हम में - • सापेक्षता का विकास हो • सह-अस्तित्व की स्वीकृति हो अनाग्रही चिन्तन शैली जागे सहिष्णुता और समन्वय का अभ्यास हो विधायक दृष्टिकोण बने • अहिंसक चेतना का उदय हो 6 Jलता जरा - तुलसी प्रज्ञा अंक 113-114 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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