Book Title: Tulsi Prajna 2001 07
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 9
________________ आलोक भी नहीं होता और अपने पर नियंत्रण भी नहीं होता वहां खतरा बढ़ जाता है। ऐसे लोगों द्वारा आज ही खतरा बढ़ रहा है। धर्म, अहिंसा, शांति जैसे शब्दों के सामने ही आज बड़ा प्रश्न पैदा हो गया है। मूल प्रश्न है कि व्यक्ति कैसे बदले? ऐसा कौन-सा उपाय हो जिससे आदमी की चेतना बदल सके । बदलाव की दिशा में सबसे बढ़िया उपाय है प्रशिक्षण का। अध्यात्म के प्रशिक्षण से, अहिंसा के प्रशिक्षण से व्यक्ति को बदला जा सकता है। चेतना का रूपांतरण किया जा सकता है। केवल उपदेश या प्रचार-प्रसार से कभी परिवर्तन हो नहीं सकता । केवल सिद्धान्त की शिक्षा से भी चेतना को बदला नहीं जा सकता। परिवर्तन की बात प्रयोगात्मक प्रशिक्षण से ही संभव हो सकती है। प्रयोगात्मक प्रशिक्षण से अभ्यास का क्रम आगे बढ़े। अभ्यास से संस्कार और संस्कार से नए विचार उद्भूत होते हैं। विचार को संस्कार में न बदलें, तब तक लाभ नहीं हो सकता। विचार संस्कार में आए, संस्कार आचार में आए, यह अपेक्षा है। इसके लिए प्रशिक्षण आवश्यक है। जिस वातावरण में, जिस परिस्थिति में आज विश्व है, जो घटनाएं हमारे सामने से गुजर रही हैं, इन परिस्थितियों में आज हिन्दुस्तान को भी बहुत कुछ सोचना है। जो परिकल्पनाएं की जा रही हैं, जो घटनाएं घटित हो रही हैं, नये वर्ष के संदर्भ में उनका प्रतिबिम्ब तो अभी देखा जा सकता है। अधूरे चित्र से भी बहुत कुछ समझा जा सकता है, अनुमान किया जा सकता है। पर अनेक तरह की विवशताएं भी हैं। किसी भी समस्या को पड़ौसी या दूसरा व्यक्ति न सुलझाना चाहे तो समस्या बनी की बनी रहती है। यह समझ जगाने की जरूरत है कि हिंसा से कभी समाधान नहीं हो सकता | आखिर हर राष्ट्र को संधि करनी पड़ती है। एक दिन हिंसा को विराम देना ही पड़ता है। आज समस्या यह है कि इस सच्चाई को जानते हुए भी अनजान बना जा रहा है, हिंसा में समाधान खोजा जा रहा है। समाज में व्याप्त अनैतिकता भी हिंसा का बड़ा कारण है। इस पर विचार करना, ध्यान देना अपेक्षित है। शिक्षा में प्रारम्भ से ही अहिंसा, नैतिकता आदि की शिक्षा देते हुए इनकी चेतना जगाने का प्रयास किया जाए, तो समाधान की दिशा में एक सार्थक कदम हो सकता है। इन सब समस्याओं पर मिलजुल कर विचार किया जाए, ठोस चिन्तन पूर्वक निर्णय की दिशा में गति की जाए तो नए वर्ष के लिए शुभ भविष्यवाणी की जा सकती है, अन्यथा तो कोई भविष्यवाणी न करना ही ठीक है। हम चिन्तन पूर्वक जीवन को अच्छा बनाने का प्रयास करें। संकल्प करें- आने वाला वर्ष कल्याणकारी हो। 2002 जनवरी-मार्च का अंक आपके पास विलम्ब से पहंचेगा, इसलिए आचार्य श्री महाप्रज्ञ का यह प्रेरक संदेश इसी अंक में आप तक पहुंचा रहे हैं। - तुलसी प्रज्ञा अंक 113-114 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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