Book Title: Tulsi Prajna 2001 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 6
________________ चिन्तन-दिशा समाज व्यवस्था और धर्म के प्रयोग -आचार्य महाप्रज्ञ अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह—ये धर्म के पांच प्रयोग हैं। धर्माराधना के क्षेत्र में इनका सर्वोपरि मूल्य है। सामाजिक क्षेत्र में भी इनका मूल्य कम नहीं है। अहिंसा का धार्मिक मूल्य है असत् प्रवृत्ति का संयम और सत् प्रवृत्ति का विकास । उसका सामाजिक मूल्य है-समाज व्यवस्था को भंग करने वाली घटना पर नियंत्रण | अहिंसात्मक प्रतिरोध के द्वारा अन्यायपूर्ण प्रवृत्ति को रोका जा सकता है। महात्मा गांधी ने अहिंसात्मक प्रतिरोध की पुरानी परम्परा को नया रूप दिया और वह राजनीति के क्षेत्र में भी प्रतिष्ठित हुई। मार्क्स ने साधनशुद्धि को अनिवार्य नहीं माना । उन्होंने साधन के चुनाव को सामाजिक या शक्ति की दृष्टि से देखा । उन्हें ऐच्छिकता में साध्य की प्राप्ति संभव नहीं लगी, इसीलिए हिंसात्मक नियंत्रण को बहुमूल्य दिया। हिंसा का परिणाम अहिंसा नहीं हुआ। व्यक्तियों की आपसी हिंसा ने सामुदायिक व्यवस्था को विखण्डित कर दिया। अपरिग्रह का आध्यात्मिक मूल्य है-इच्छाजनित क्लेश से मुक्ति । उसका सामाजिक मूल्य है सम्पत्ति के वैयक्तिक प्रभुत्व का समाजीकरण | उसे स्पष्ट करना आवश्यक है। अहिंसा और अपरिग्रह सिद्धान्त से फलित नहीं होते। उनकी सिद्धि के लिए चेतना का रूपान्तरण आवश्यक है। अहिंसा की चेतना केवल वैचारिक परिवर्तन नहीं है। वह अभ्यास और प्रयोग से होने वाला परिवर्तन है। प्रयोग के सूत्र ये बन सकते हैं 1. हिंसा के परिणाम का दीर्घकालिक चिन्तन और ऐतिहासिक विश्लेषण | 2. प्राणी-मात्र की एकता की भावना से चित्त को भावित करना । 3. दूसरों पर अधिकार स्थापित करने की मनोवृत्ति ही मानवीय एकता का सबसे बड़ा विघ्न है : इस भावना से चित्त को भावित करना। तुलसी प्रज्ञा जनवरी-जून, 2001 AMITINI VITITION 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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