Book Title: Titthayara Bhavna Author(s): Pranamyasagar Publisher: Unknown View full book textPage 5
________________ अर्थात् 'जिसने समस्त आचार शास्त्र का अध्ययन किया है तथा अन्य शास्त्रों के अध्ययन से जिसने समस्त श्रुतज्ञान का विस्तार प्राप्त किया है और जिसका आचरण विशुद्ध है ऐसा साधु तीर्थंकर पद की भावनाओं का अभ्यास करे। सम्यग्दर्शन की विशुद्धि रखना आदि जिसके लक्षण हैं, जो महान् ऐश्वर्य को देने वाली हैं तथा पहले जिनका विस्तार के साथ वर्णन किया जा चुका है, ऐसी भावनाएँ सोलह मानी गयी हैं। यह छब्बीसवीं(२६वीं) तीर्थकृद्भावना नाम की क्रिया है।' इस तरह यह ग्रन्थ इस क्रिया का संस्कार डालने में सभी भव्य जीवों को सहयोगी बने इसी भावना से 'तित्थयर भावणा' नाम से यह ग्रन्थ प्राकृत की १३० गाथाओं और हिन्दी व्याख्या के साथ लिखा गया है। पद्यानुवाद और अन्वयार्थ करके इसको परिपूर्ण सुगम बनाने का प्रयास किया है। माँ जिनवाणी की प्रसन्नता में यदि यह कृति साधक बन सकी तो यह नन्हा पुत्र अपना जीवन सफल अनुभव करेगा। आचार्य परमेष्ठी श्री विद्यासागर की की चरण सेवा से यत् किञ्चित् ज्ञानावरण कर्म का क्षयोपशम हुआ और चारित्रमोहनीय की तीन चौकडी के अनुदय से जो संयम लब्धिस्थान प्राप्त हुए हैं उसी ज्ञान और संयम का यह परिपाक गुरुदेव के चरणों में ही समर्पित है। मुनि प्रणम्यसागर बरेला ग्रीष्मयोग ३१ मई २०१२Page Navigation
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