Book Title: Titthayara Bhavna
Author(s): Pranamyasagar
Publisher: Unknown

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Page 3
________________ सोलहकारण भावनाओं के नाम एवं क्रम षटखण्डागम सूत्र में (प्राकृत) तत्त्वार्थ सूत्र में (संस्कृत) १. दर्शनविशुद्धता २. विनय सम्पन्नता ३. शीलव्रतों में निरतिचारता ४. छह आवश्यकों में अपरिहीनता ५.क्षण-लव-प्रतिबोधनता ६. लब्धि संवेग सम्पन्नता ७. यथाशक्ति तथा तप ८. साधुओं की प्रासुक परित्यागता ९. साधुओं की समाधि संधारणता १०. साधुओं की वैयावृत्य योगयुक्तता ११.अरहन्त भक्ति १२. बहुश्रुत भक्ति १३. प्रवचन भक्ति १४. प्रवचन वत्सलता १५. प्रवचन प्रभावना १६. अभीक्ष्ण-अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगयुक्तता १. दर्शनविशुद्धि २. विनय सम्पन्नता ३. शील, व्रतों में अनतिचार ४. अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग ५.अभीक्ष्ण संवेग ६.शक्तितः त्याग ७. शक्तितः तप ८. साधु समाधि ९. वैयावृत्यकरण १०.अर्हद्भक्ति ११. आचार्य भक्ति १२. बहुश्रुत भक्ति १३. प्रवचनभक्ति १४. आवश्यक अपरिहाणि १५. मार्ग प्रभावना १६. प्रवचन वत्सलत्व इस तरह हम देखते हैं कि चौथी भावना से क्रम एवं नाम में अन्तर दिखने लगता है। षट्खण्डागम सूत्र में कुछ नाम ही भिन्न दिखते हैं, इनका अर्थ श्रीधवला टीका में जो लिखा है उसी को यहाँ मात्र लिखते हैं ५.क्षण-लव-प्रतिबोधनता- क्षण और लव ये काल विशेष के नाम हैं। सम्यग्दर्शन, ज्ञान, व्रत और शील गुणों को उज्जवल करने, मल को धोने अथवा जलाने का नाम प्रतिबोधन और इसके भाव का नाम प्रतिबोधनता है। प्रत्येक क्षण या लव में होने वाले प्रतिबोध को क्षण-लव-प्रतिबुद्धता कहा जाता है। ६. लब्धि संवेग सम्पन्नता- सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र में जो जीव का समागम होता है उसे लब्धि कहते हैं। हर्ष और सन्तोष का नाम संवेग है। लब्धि से या लब्धि में संवेग का नाम लब्धि संवेग और उसकी सम्पन्नता का अर्थ सम्प्राप्ति है। ८. साधुओं की प्रासुक परित्यागता- साधुओं के द्वारा विहित प्रासुक अर्थात् निरवद्य ज्ञान-दर्शन आदिक के त्याग से तीर्थंकर नाम कर्म बंधता है। विशेष- छठवीं भावना की दूसरी गाथा में देखें।

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