Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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इन सभी क्षेत्रों और पर्वतों के क्षेत्रफलों की गणना हेतु मूलभूत सूत्र गाथा २३७४, स्तुप मधिकार में इसप्रकार दिया गया है : "बाण के चतुषं माग से गुरिणत जीवा का जो वर्ग हो उसको वा से गुपित कर प्राप्त गुणनफल का वर्गमूल निकासने पर धनुष के आकार वाले क्षेत्र का सूक्ष्म, क्षेत्रफल जाना औसा in E XTER
भात, धनुषाकार क्षेत्र का क्षेत्रफल=Vारण xxजीवा 12xT.
I इस सूत्रानुसार सर्वप्रथम हिमवान पर्वस का क्षेत्रफल निकालने के लिए दो धनुषाकार क्षेत्रफल निकालते है जिनका अन्तर उक्त क्षेत्रफल होता है । इसप्रकार
हिमवान पर्वत का क्षेत्रफल = ( हिमवान् पर्वस का क्षेत्रफल + मरत कोत्र का क्षेत्रफल ) .... तरजीमा = ... . -(भरत का क्षेत्रफल होता है जो धनुष के
रूप में उपसम्म होते हैं। यहाँ हिमवान् पर्वत पर है, .भरत क्षेत्र गचप है। हिमवान् पर्वत के क्षेत्रफल को प्राप्त करने हेतु पूर्ण धनुषाकार क्षेत्र क ग घ घव पर विचार करते है जिसका बारा
:10 योजन प्राप्त होता है। इसमें भरत क्षेत्र का विस्तार भौर हिमवान् क्षेत्र का विस्तार सम्मिलित किया गया है।
इसप्रकार हिमवान् पर्वत का क्षेत्रफल
___exx Xxvi x०
= ३.१५२२७७१३
दसोक गणक मधीन द्वारा उक्त की गणना करने पर, जाति लिया गया है तब
क्षेत्रफल = ११२३४६६५४... २१७३७४२२२१