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५।३७-३८ ]
पचम अध्यायः
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या रूक्ष परमाणु के साथ भी बन्ध नहीं होगा। तीन गुणवाले स्निग्ध परमाणुका पाँच गुणवाले स्निग्ध या रूक्ष परमाणु के साथ ही बन्ध होगा अन्य गुणवाले परमाणुके साथ नहीं। इसी प्रकार दो गुणवाले रूक्ष परमाणुका चार गुणवाले रूक्ष या स्निग्ध परमाणु के साथ ही बन्ध होगा और तीन गुणवाले रूक्ष परमाणुका पाँच गुणवाले रूक्ष या स्निग्ध परमाणु के साथ ही बन्ध होगा, अन्य गुणवाले परमाणुके साथ नहीं। अतः दो गुण अधिक होनेपर समान और असमान जातिचाले परमाणुओं का परस्पर में बन्ध होता है ।
Fastest पारिणामिकौ च ॥ ३७ ॥
बन्ध में अधिक गुणवाले परमाणु कम गुणवाले परमाणुओं को अपने परिणत कर लेते हैं। नूतन अवस्थाको उत्पन्न कर देना परिणामिकत्व है। जैसे गीला गुड़ अपने ऊपर गिरी हुई धूलिको गुह रूप परिणत कर लेता है उसी प्रकार चार गुणवाला परमाणु दो गुण अपने पति का है अर्थात् उन दोनोंकी पूर्व अवस्थाएँ नष्ट हो मार्गदर्शक :जाततै ष्वाय एक तीसरी हो अवस्था उत्पन्न होती है। उनमें एकता हो जाती है। यही कारण है कि अधिक गुणवाले परमाणुओं का ही बन्ध होता है। समगुण वाले परमाणुओं का नहीं । यदि अधिकगुण परमाणुओं को पारिणामक न माना जाय तो बन्ध अवस्था में भी परमाणु सफेद और काले तन्तुओं से बने हुए कपड़े में तन्तुओंके समान पृथक पृथक ही रहेंगे उनमें एकत्व परिणमन न हो सकेगा। इसी प्रकार जल और सत्तू में परस्पर सम्बन्ध होने पर जल परिणामक होता है।
इस प्रकार बन्ध होने पर ज्ञानावरण, दर्शनावरण आदि कर्मोकी तीस कोड़ाकोड़ी सागरकी स्थिति भी बन जाती है क्योंकि जीवके साथ पूर्व सम्बद्ध कार्मणद्रव्य स्निग्ध आदि गुणसे अधिक है।
द्रव्यका लक्षण --
गुणपर्ययवद् द्रव्यम् ॥ ८ ॥
जो गुण और पर्यायवाला हो वह द्रव्य है । गुण अन्वयी ( नित्य ) होते हैं अर्थात् द्रव्यके साथ सदा रहते हैं, द्रव्यको कभी नहीं छोड़ते गुणों के द्वारा ही एक द्रव्यका दूसरे द्रव्यसे भेद किया जाता है। यदि गुण न हों तो एक द्रव्य दूसरे द्रव्यरूप भी हो जायगा । जीवका ज्ञानगुण जीवको अन्य द्रव्योंसे पृथक करता हूँ। इसी प्रकार पुद्गलादि द्रव्योंके रूपादि गुण भी उन द्रव्योंको अन्य द्रव्यों से पृथक करते हैं ।
पर्याएँ व्यतिरेकी (अनित्य ) होती है अर्थात् द्रव्यके साथ सदा नहीं रहती बदलती रहती हैं। गुणोंके विकारको ही पर्याय कहते हैं जैसे जीवके ज्ञान गुणकी घटज्ञान, पटज्ञान आदि पर्याएँ हैं । व्यवहारनयको अपेक्षा से पर्याएँ द्रव्यसे कथंचित् भिन्न हैं । यदि पर्याएँ द्रव्य से सर्वथा अभिन्न हों तो पर्यायके नाश होने पर द्रव्यका भी नाश हो जायगा ।
कहा भी है कि द्रव्यके विधान करनेवालेको गुण कहते हैं। और द्रव्यके विकार को पर्याय कहते है । अनादि निधन द्रव्यमें जल में तरोंके समान प्रतिक्षण पर्याएँ उत्पन्न और यिनष्ट होती रहती हैं। द्रव्यमें गुण और पर्यायें सदा रहती हैं। गुण और पर्यायों के समूहका नाम ही द्रव्य है । गुण और पर्यायको छोड़कर द्रव्य कोई पृथक् वस्तु नहीं है।