Book Title: Tattvarthvrutti
Author(s): Jinmati Mata
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 555
________________ तत्त्वार्थवृत्ति हिन्दी-सार [७१८-१९ राग, द्वेषादिको ही मुख्य रूपसे परिप्रह कहते है। कहा भी है कि-अपने पापके कारण बाह्मपरिग्रहरहित दरिद्र मनुष्य तो बहुतसे होते है लेकिन अभ्यन्तर परिग्रह रहित जीव लोकमें दुर्लभ है। व्रतीकी विशेषता निःशल्यो व्रती ।। १८॥ शल्यरहित जीव ही व्रती है। शल्य वाणको कहते हैं। जिस प्रकार वाण शरीरके अन्दर प्रवेश करके दुःखका हेतु होता है उसी प्रकार प्राणियोंकी शारीरिक मानसिक आदि बाधाका कारण होनेसे कर्मोदयके विकारको भी शल्य कहते हैं । शल्यके तीन भेद है-माया मिथ्यात्व और निदान । छल कपट करनेको माया कहते हैं। तस्यार्थश्रद्धानका न होना मिथ्यात्व है और विषयभोगोंकी आकांक्षाका नाम निदान है। जो इन तीन प्रकारको शल्योंसे रहित होता है वही ती कहलाता है। प्रश्न-शल्य रहित होनेसे निःशल्य और व्रत सहित होनेसे ब्रती होता है। अतः जिस प्रकारावर्षकर देसाई समिविलापनहली कहलाता है उसी प्रकार शल्य रहित व्यक्ति भी व्रती नहीं हो सकता है। उत्तर-निःशल्यो व्रती कहनेका तात्पर्य यह है कि शल्यरहित और प्रतसहित व्यक्ति ही ती कहलाता है केवल हिंसादिसे विरक्त होने मात्रसे कोई ब्रती नहीं हो सकता । इसी तरह हिंसादिसं विरक्त होने पर भी शल्यसहित व्यक्ति व्रती नहीं है किन्तु शल्य रहित होने पर ही वह व्रती होता है। जैसे जिसके अधिक दूध घृत आदि होता है वहीं गोयाला कहलाता है, दूध घृतके अभावमें गायोंके होने पर भी बाह ग्वाला नहीं कहलाता उसो प्रकार अहिंसादि व्रतोंके होने पर भी शल्यसंयुक्त पुरुष व्रती नहीं है । तात्पर्य यह है कि अहिंसा आदि ब्रतों के विशिष्ट फलको शल्यरहित व्यक्ति ही प्राप्त करते हैं शल्यसहित नहीं। प्रतीके भेद अगायनगारश्च ॥ १९ ॥ व्रतीके दो भेद हैं--अगारी और अनगारी । जो घरमें निवास करते हैं वे अगारी (गृहस्थ ) हैं और जिन्होंने घरका त्याग कर दिया है वे अनगारी (मुनि) हैं। प्रश्न- इस प्रकार तो जिनालय शून्यागार मठ आदिमें निवास करनेवाले मुनि भी अगारी हो जायगे और जिसको विपयतृष्णा दूर नहीं हुई है लेकिन किसी कारणसे जिसने धरको छोड़ दिया है एसा बनमें रहनेवाला गृहस्थ भी अनगारी कहलाने लगेगा। उत्तर—यहाँ घर शब्दका अर्थ भायघर है। चारित्रमोहके उदय होनेपर घरके प्रति अभिलाषाका नाम भावघर है। जिस पुरुपके इस प्रकारका भावघर विद्यमान है वह वनमें नग्न होकर भी निवास करें तो भी वह अगारी है। और भावागार न होनेके कारण जिन चैत्यालय आदिमें रहनेवाले मुनि भी अनगारी है। प्रश्न-अपरिपूर्ण प्रत होने के कारण गृहस्थ प्रती नहीं हो सकता।

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